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Saturday, 21 December, 2024
होमदेशकेरल विधानसभा में राज्यपाल ने कहा- मुख्यमंत्री चाहते हैं कि मैं सीएए विरोधी प्रस्तावों को पढूं

केरल विधानसभा में राज्यपाल ने कहा- मुख्यमंत्री चाहते हैं कि मैं सीएए विरोधी प्रस्तावों को पढूं

राज्यपाल ने कहा, ‘मैं यह पैरा (पैराग्राफ 18) पढ़ने जा रहा हूं क्योंकि माननीय मुख्यमंत्री चाहते हैं कि मैं यह पढूं. हालांकि मेरी यह राय है कि यह नीति या कार्यक्रम की परिभाषा के तहत नहीं आता है.’

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तिरुवनंतपुरम: केरल के राज्यपाल मोहम्मद आरिफ खान ने हैरत में डालते हुए बुधवार को सदन में वाम सरकार का अपना नीतिगत संबोधन देते हुए राज्य विधानसभा द्वारा पारित संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) विरोधी प्रस्ताव पर संदर्भों को पढ़ा.

विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव और कानून के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करने के कदम को लेकर राज्य सरकार के साथ टकराव रखने वाले खान ने कहा कि हालांकि उनकी इस विषय पर ‘आपत्तियां और असहमति’ है लेकिन वह मुख्यमंत्री की इच्छा का ‘सम्मान’ करते हुए नीतिगत संबोधन के 18वें पैराग्राफ को पढ़ेंगे.

पैराग्राफ 18 सीएए विरोधी प्रस्ताव से संबंधित है.

उन्होंने कहा, ‘मैं यह पैरा (पैराग्राफ 18) पढ़ने जा रहा हूं क्योंकि माननीय मुख्यमंत्री चाहते हैं कि मैं यह पढूं. हालांकि मेरी यह राय है कि यह नीति या कार्यक्रम की परिभाषा के तहत नहीं आता है.’

इस संबंध में माकपा के नेतृत्व वाली एलडीएफ सरकार के साथ हालिया संवाद का जिक्र करते हुए खान ने कहा कि मुख्यमंत्री ने खुद उनसे पत्र में कहा था कि ‘यह सरकार का रुख है.’

राज्यपाल ने कहा कि हालांकि वह इस पर असहमत है लेकिन वह मुख्यमंत्री विजयन की इच्छा का सम्मान करते हुए इस पैराग्राफ को पढ़ रहे हैं.

राज्य सरकार के सीएए विरोधी रुख भरे संदर्भों को पढ़ते हुए उन्होंने कहा, ‘हमारी नागरिकता धर्म के आधार पर नहीं हो सकती क्योंकि यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है जो कि हमारे संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है.’

उन्होंने कहा, ‘केरल विधानसभा ने सीएए 2019 को रद्द करने का केंद्र से अनुरोध करते हुए सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया. मेरी सरकार को लगता है कि यह कानून हमारे संविधान में प्रदत्त प्रमुख सिद्धांतों के खिलाफ है.’

खान ने कहा कि सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 को हटाने का अनुरोध करते हुए उच्चतम न्यायालय में एक याचिका भी दायर की.

उन्होंने कहा, ‘मजबूत राज्य और मजबूत केंद्र हमारे संघवाद के स्तंभ हैं. जब संवैधानिक मूल्यों की बात हो और बड़े पैमाने पर आपत्तियों हो तो राष्ट्र के व्यापक हित को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार को राज्यों की असली आपत्तियों पर विचार करने की जरूरत होनी चाहिए.’

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