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शुक्रवार, 16 मई, 2025
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बाल देखभाल संस्थानों में गोद लिए जा सकने वाले बच्चों की पहचान के लिए अभियान चलाएं सरकार: न्यायालय

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नयी दिल्ली, 20 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने गोद लिये जाने के लिए कानूनी रूप से उपलब्ध बच्चों और गोद लेने के लिए इच्छुक पंजीकृत भावी अभिभावकों की संख्या के बीच ‘‘असंतुलन’’ का जिक्र करते हुए सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को सोमवार को निर्देश दिया कि वे बाल देखभाल संस्थानों में परित्यक्त एवं सौंपे गए (ओएएस) श्रेणी के बच्चों की पहचान करने के लिए हर दो महीने में मुहिम चलाए।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि इस तरह की पहली कवायद सात दिसंबर तक की जानी चाहिए।

उसने कहा, ‘‘सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि प्रत्येक जिले में 31 जनवरी, 2024 तक विशिष्ट दत्तक ग्रहण एजेंसी (एसएए) की स्थापना की जाए।’’

पीठ ने कहा, ‘‘किशोर न्याय (बाल देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 को लागू करने का प्रभारी नोडल विभाग 31 जनवरी, 2024 तक केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (सीएआरए) के निदेशक और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव को अनुपालन के बारे में सूचित करेगा।’’

पीठ ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को हिंदू दत्तक ग्रहण एवं रखरखाव अधिनियम (एचएएमए) के तहत गोद लेने संबंधी आंकड़े 31 जनवरी, 2024 तक संकलित करने और सीएआरए निदेशक को सौंपने का भी निर्देश दिया।

शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि भारत में बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया ‘‘बहुत थकाने वाली’’ है और प्रक्रियाओं को ‘‘सुव्यवस्थित’’ करने की तत्काल आवश्यकता है।

शीर्ष अदालत ने ‘द टेम्पल ऑफ हीलिंग’ की एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान ये निर्देश दिए। इस याचिका में भारत में बच्चे को गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया को सरल बनाने का अनुरोध किया गया है और कहा गया है कि देश में हर साल केवल 4,000 बच्चे गोद लिए जाते हैं।

भाषा सिम्मी माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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