( उज्मी अतहर )
नयी दिल्ली, 20 मार्च (भाषा) जैविक खेती को बढ़ावा देने और नदियों में रसायन का प्रवेश रोकने के लिए गंगा नदी की गाद को शोधित (पोषक तत्वों द्वारा परिवर्धन) करके उसे उर्वरक के रूप में इस्तेमाल करने की योजना बना रही है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी।
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक अशोक कुमार बताया कि फॉस्फोरस और पोषक तत्वों से भरपूर शोधित जल फसल की वृद्धि के लिए अच्छा होता है और पिछले दो हफ्तों में गंगा नदी के गाद से निपटने के तरीकों पर कई दौर की चर्चा हुई है।
कुमार के अनुसार शोधित गाद का उत्पादन कर किसानों को रियायती दरों पर उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘हमने पाया कि शोधित गाद उर्वरक के समान हो सकते हैं। इसलिए, अगर हम गाद का शोधन करें तो यह (गाद) अच्छा उर्वरक हो सकता है और जैविक खेती में मदद करेगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हम शोधित गाद का उत्पादन करने के लिए कंपनियों के साथ बातचीत कर रहे हैं जिसे उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और किसानों को रियायती दर पर दिया जा सकता है।’’ कुमार ने कहा कि इससे दो उद्देश्य प्राप्त किए जा सकते हैं- पहला, किसान प्राकृतिक उर्वरकों का उपयोग करेंगे और दूसरा, गाद के ढेर की समस्या का समाधान किया जा सकेगा।
उन्होंने कहा, ‘‘अगर किसानों को सही तरीके से समझाया जाए तो वे इसे भी पसंद कर सकते हैं। हम इस सौदे को करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित भी कर सकते हैं। हम गाद से अच्छे शोधित उर्वरकों का उत्पादन करने के लिए कंपनियों के साथ बातचीत कर रहे हैं।’’
अधिकारी ने कहा कि यह रसायनों को नदियों में प्रवेश करने और प्रदूषण फैलाने से भी रोकेगा। उन्होंने कहा कि रासायनिक उर्वरकों में फॉस्फेट और नाइट्रेट होते हैं जो जल प्रदूषण का मुख्य कारण हैं।
कुमार ने कहा कि एक अन्य प्रमुख मुद्दा गाय के गोबर के नदियों में जाने का है और किसानों को खेती में इसका इस्तेमाल करने की सलाह दी। उन्होंने कहा, ‘‘किसानों को गोबर का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए क्योंकि क्षेत्र में बड़ी गोजातीय आबादी के कारण गंगा बेसिन में यह एक बड़ी समस्या है। अगर हम प्राकृतिक खेती को चुनते हैं तो हम गाय के गोबर का खाद के तौर पर उपयोग कर सकते हैं जिससे कि ई.कोलाई को नदी में जाने से रोका जा सकता है।’’
कुमार ने कहा कि अब एनएमसीजी का ध्यान ‘अर्थ गंगा’ पर है, जिसका उद्देश्य लोगों को नदी से जोड़ना और जीविका के लिए उनके बीच आर्थिक संबंध स्थापित करना है। उन्होंने कहा कि पिछले दो महीनों से हम अर्थ गंगा पर व्यापक रूप से काम कर रहे हैं ताकि आर्थिक जुड़ाव बनाया जा सके।
सरकार ने 2015 में पिछली और वर्तमान में जारी परियोजनाओं को एकीकृत करने और गंगा की सफाई के लिए नयी पहल की योजना के उद्देश्य से एक विशाल कार्यक्रम के रूप में 20,000 करोड़ रुपये की सांकेतिक लागत के साथ एनएमसीजी या ‘नमामि गंगे’ की शुरुआत की। कार्यक्रम के तहत 30,255 करोड़ रुपये की लागत से कुल 347 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई। परियोजनाओं में गंगा को फिर से जीवंत करने की दिशा में बुनियादी ढांचा और गैर-बुनियादी ढांचे का विकास शामिल है।
सफाई प्रक्रिया से सीधे तौर पर जुड़ी परियोजनाओं में सीवर के बुनियादी ढांचे का विकास, औद्योगिक अपशिष्ट शोधन संयंत्र, ग्रामीण स्वच्छता और नदी की तलहटी की सफाई शामिल है।
भाषा सुरभि संतोष
संतोष
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