हैदराबाद: आंध्र प्रदेश सरकार ने पिछले महीने के अंत में एक मसौदा अधिसूचना जारी कर राज्य में जिलों की संख्या को दोगुना कर 26 कर दिया. यह एक ऐसा कदम है जिसके बारे में दावा किया जा रहा है कि यह बेहतर प्रशासन और विकेंद्रीकरण के उद्देश्य से किया गया है. लेकिन इस फैसले की व्यापक आलोचना हुई है और विपरीत प्रतिक्रिया के स्वर भी फूट पड़े हैं.
मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी ने गुरुवार को कहा कि तेलुगु नव वर्ष उगादी, जो इस साल अप्रैल के पहले सप्ताह में आएगा, तक नए जिलों का गठन हो जाना चाहिए. साथ ही मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि इन नए जिलों में किसी भी तरह की परेशानी से मुक्त प्रशासन के लिए मौजूदा कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों को ही नियुक्त किया जाएगा.
इसके लिए मौजूदा जिलों की सीमाओं को आंध्र प्रदेश जिला (गठन) अधिनियम, 1974 के तहत फिर से निर्धारित किया जाएगा.
हालांकि राज्य सरकार ने जोर देकर कहा है कि नए और छोटे जिले बनाने के कदम से समावेशी विकास सुनिश्चित होगा, मगर जिस तरह से जिलों को पुनर्गठित किया गया है, जिला मुख्यालयों को स्थानांतरित किया गया है और नए नाम आवंटित किये गए हैं; उनका जबरदस्त विरोध किया जा रहा है.
जहां तक इस कदम के संभावित राजनीतिक प्रभाव की बात है, राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि इससे वाईएसआर कांग्रेस को अपने स्थानीय नेतृत्व को मजबूत करने में मदद मिल सकती है, लेकिन राज्य में मतदान के पैटर्न के इससे प्रभावित होने की संभावना नहीं है.
कैसे किया गया यह पुनर्गठन?
इन जिलों को लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों के आधार पर पुनर्गठित किया गया है – यह एक ऐसी योजना थी जिसका वादा जगन मोहन रेड्डी ने 2019 में सत्ता में आने से पहले अपने चुनाव अभियान के दौरान भी किया था.
आंध्र प्रदेश में कुल 25 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र हैं – जिनमें कुछ मामलों में दो अलग-अलग जिलों के विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं.
इन्हीं लोकसभा क्षेत्रों में एक राजमपेट है, जिसमें सात विधानसभा क्षेत्र हैं. उनमें रायचोटी सहित तीन कडप्पा जिले से हैं, और चार चित्तूर जिले से हैं जिसमें मदनपल्ले भी शामिल है.
कई अन्य उल्लेखनीय जिलों को भी पुनर्गठित किया जा रहा है, जिसमें श्री बालाजी जिला भी शामिल है, जिसे चित्तूर से अलग किया जा रहा है, और जहां देश के प्रसिद्ध मंदिर का शहर तिरुपति भी अवस्थित होगा.
विशाखापट्टनम, जो राज्य की प्रस्तावित राजधानी वाले शहरों में से एक है, जिले में दो नए जिले –अनाकापल्ली और अल्लूरी सीताराम राजू – बनाए जा रहे हैं. इनमें से बाद वाले का नाम एक महान स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर रखा गया है.
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पुनर्गठन के खिलाफ उठ रहीं आपत्तियां
जगन सरकार का तर्क है कि शैक्षिक और आर्थिक विकास के संबंध में संतुलित विकास सुनिश्चित करने के लिए न केवल लोकसभा क्षेत्रों बल्कि जन भावनाओं, भौगोलिक सीमाओं और जनसांख्यिकीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए पर इन जिलों का पुनर्गठन किया गया है.
परन्तु, नागरिक अधिकार संगठन ‘ह्यूमन राइट्स फ़ोरम’ ने बताया कि नए जिलों (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के आधार पर) के गठन के लिए इस्तेमाल किए गए तर्क मौलिक रूप से त्रुटिपूर्ण हैं. उन्होंने कहा कि यह सारी कवायद बहुत ही ‘बेपरवाही वाले तरीके से की गयी है और बुनियादी भौगोलिक समझ से परे है.‘
एचआरएफ ने पिछले महीने जारी एक बयान में कहा था, ‘यदि यह इसी तरह पारित हो जाता है, तो इसकी वजह से राज्य भर के कई स्थान या तो प्रस्तावित जिला मुख्यालय से काफी अधिक दूरी पर होंगे या उनके लिए यह दूरी पहले से भी अधिक बढ़ जाएगी.’
इसमें आगे कहा गया है, ‘उदाहरण के लिए, नए प्रस्तावित अल्लूरी सीताराम राजू जिले में पदेरू मुख्यालय के साथ रामपचोडावरम का विधानसभा क्षेत्र शामिल किया गया है. इसकी वजह से रामपचोडावरम निर्वाचन क्षेत्र में आने वाला एक राजस्व संभागीय मुख्यालय, यतपका, पदेरू से 277 किलोमीटर दूर हो जायेगा. इन दोनों स्थानों के बीच यात्रा का समय सात घंटे से अधिक का होगा. इसी तरह, रामपचोडावरम में स्थित अधिकांश मंडल जैसे कुनावरम, वी.आर. पुरम, देवीपट्टनम और मारेदुमिली जिला मुख्यालय से 240 किमी से अधिक की दुरी पर होंगे.’
इस संगठन ने गैर-अनुसूचित क्षेत्रों या गैर-आदिवासी क्षेत्रों जैसे प्रकाशम और कुरनूल जिलों के बारे में भी इसी तरह की चिंताओं को व्यक्त किया है
एचआरएफ ने वर्तमान में मौजूद प्रत्येक जिले से कम-से-कम तीन नए जिलों को बनाने का नया प्रस्ताव दिया जिसमें कहा गया है कि पड़ोसी राज्यों तमिलनाडु, तेलंगाना और ओडिशा में आंध्रा की तुलना में कम भौगोलिक फैलाव के बावजूद जिलों की संख्या इससे अधिक है.
2016 के बाद से, तेलंगाना ने पहले के 10 जिलों को 33 नए जिलों में पुनर्गठित किया है.
अविभाजित आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव आई.वाई.आर.कृष्ण राव ने भी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों का जिलों के पुनर्गठन के लिए आधार के रूप में इस्तेमाल किए जाने पर आपत्ति जताई.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरी एकमात्र आपत्ति इस निर्णय पर पहुंचने के लिए तय किया गया मापदंड है. लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र इस तरह के विभाजन के लिए एक इकाई के रूप में एक अप्रासंगिक मापदंड हैं. मेरा मानना है कि सरकार को निकटता, समीपवर्ती क्षेत्र, ऐतिहासिक सांस्कृतिक संबंध, पिछड़ापन जैसे कारकों पर विचार करना चाहिए.‘
पूर्व आईएएस अधिकारी ई.ए.एस. सरमा, जो राष्ट्रीय योजना आयोग में प्रमुख सलाहकार रहे हैं, ने पिछले महीने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर बताया था कि कैसे इस पुनर्गठन का आदिवासी क्षेत्रों पर काफी अधिक प्रभाव पड़ेगा.
इस पुनर्गठन वाली कवायद को आदिवासी अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए, सरमा ने कहा कि पंचायत्स (एक्सटेंशन टू सेडुलड एरियाज) एक्ट, 1996 (पेसा), और फारेस्ट राइट्स एक्ट के तहत आदिवासी ग्राम परिषदों को दी गई संप्रभुता को संरक्षित किया जाना अत्यंत आवश्यक है.
उन्होंने कहा, ‘यह महत्वपूर्ण और अत्यंत आवश्यक है कि आदिवासियों के साथ पुनर्गठन प्रक्रिया पर पेसा अधिनियम, और इससे भी पहले के नियमों, के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों में स्थित ग्राम सभाओं के स्तर पर बातचीत की जाये और उनके विचारों को ध्यान में रखा जाये. ऐसा करने में विफल रहना पेसा अधिनियम का उल्लंघन होगा. ‘
जिला मुख्यालय के लिए हंगामा
सबसे ताजातरीन आपत्ति अभिनेता से नेता बने टीडीपी विधायक एन. बालकृष्ण की ओर से आई है, जिन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र हिंदूपुर, जो वर्तमान में अनंतपुर जिले के अंतर्गत आता है, को नव-निर्मित जिले श्री सत्य साईं जिला ( जिसका नाम पुट्टपर्थी शहर के रहने वाले स्वर्गीय आध्यात्मिक गुरु सत्य साईं बाबा के नाम पर रखा गया है) का जिला मुख्यालय नहीं बनाये जाने पर इस्तीफा देने की धमकी दी है.
इस नए जिले का मुख्यालय पुट्टपर्थी में प्रस्तावित है, जो हिंदुपुर से एक घंटे की दूरी पर है.
बालकृष्ण ने तर्क दिया कि हिंदूपुर में सभी बुनियादी सुविधाएं हैं और यहां 600 एकड़ सरकारी जमीन भी है, इसलिए यह सरकार की पहली पसंद होनी चाहिए.
हिंदूपुर से एक घंटे की दूरी पर पेनुकोंडा है, और यहां भी जिला मुख्यालय की मांग बढ़ रही है.
जिला मुख्यालय जिले का एक प्रमुख क्षेत्र होता है जहां अधिकांश प्रशासनिक विभाग स्थापित रहते हैं. आमतौर पर जिला मुख्यालय में जिले के अन्य क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा तेज और अधिक विकास देखने को मिलता है.
नवगठित अन्नामय्या जिले, जिसका प्रस्तावित मुख्यालय रायचोटी है, के लिए जिला मुख्यालय बनाए जाने हेतु मदनपल्ले मंडल (चित्तूर जिला) में भी विरोध प्रदर्शन जारी है. इसी तरह से कडप्पा जिले में भी अन्नामय्या जिले के लिए राजमपेट को मुख्यालय बनाने के लिए विरोध प्रदर्शन हुए हैं
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जिलों का नामकरण
विपक्ष के ऊपर राजनीतिक प्रहार जैसे प्रतीत होने वाले एक कदम के रूप में जगन सरकार ने विजयवाड़ा जिल से एक नए जिले को अलग करने और इसका नामकरण पूर्व मुख्यमंत्री तथा तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के संस्थापक एन.टी. रामा राव के नाम पर करने का निर्णय किया है,
इस बीच, स्वतंत्रता सेनानियों, कवियों, आदि के नाम पर नए जिलों का नाम बदलने के बारे में विभिन्न हलकों से की जा रही मांगों की झड़ी लग गई है.
तेलगू देशम के महासचिव वरला रमैया ने मुख्यमंत्री से अपील की है कि नए प्रस्तावित जिले पलनाडु का नाम महान तेलुगु कवि गुर्रम जोशुआ के नाम पर रखा जाए.
जहां एक जिले का नाम राष्ट्रीय ध्वज के डिजाइनर पिंगली वेंकय्या के नाम पर रखने की मांग की जा रही है, वहीँ एक और जिले का नाम स्वतंत्रता सेनानी और पूर्व कृषि मंत्री स्वर्गीय काकानी वेंकटरत्नम के नाम पर रखने की मांग जोड़ पकड़ रही है.
‘विपक्ष के साथ बातचीत जरूरी’
कई विशेषज्ञों ने इस तरफ ध्यान दिलाया कि कैसे सरकार को विपक्ष और अन्य हितधारकों के साथ बातचीत शुरू करने की जरुरत है.
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर नागेश्वर राव ने कहा, ‘विकेन्द्रीकरण को सकारात्मक तरीके से देखा जाना चाहिए …स्पष्ट रूप से यह लोगों को ही लाभान्वित करेगा जब एक कलेक्टर को पहले की तुलना में लोगों के एक छोटे समूह की देखभाल का काम सौंपा जायेगा और इसी तरह के अन्य लाभ भी होंगें. आंध्र प्रदेश में समान आकार वाले अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम जिले हैं. जब इतनी बड़ी कवायद होती है तो सभी को संतुष्ट करना व्यावहारिक रूप से असंभव होता है.’
उन्होंने कहा, ‘इनमे से कुछ खंडों को मांगों के अनुसार समायोजित किया जा सकता है और अन्य को नहीं. उदाहरण के लिए, गन्नवरम (विजयवाड़ा में) में, विजयवाड़ा के बहुत सारे ग्रामीण क्षेत्र हैं जो गन्नावरम विधानसभा सीट के अंतर्गत आते हैं. गन्नावरम हवाई अड्डे को ही विजयवाड़ा हवाई अड्डा माना जाता है. लेकिन पुनर्गठन के बाद, गन्नावरम कृष्णा जिले में होगा, जिसका मुख्यालय मछलीपट्टनम है, न कि विजयवाड़ा. वे गन्नवरम को समायोजित नहीं कर सके.’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन अन्य मामलों में वे विपरीत प्रतिक्रिया के बाद ओंगोल जिले में संथानुथलापाडु को रख सकते हैं, जिसे आदर्श रूप से लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के मानदंड के अनुसार नवगठित बापटला जिले में होना चाहिए.‘
आंध्र सरकार, जिसने साल 2020 में पुनर्गठन प्रक्रिया पर काम करने के लिए एक समिति का गठन किया, ने लोगों से एक महीने के भीतर जिला कलेक्टरों को इस सन्दर्भ में अपने सुझाव भेजने के लिए कहा है.
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक तेलकापल्ली रवि ने कहा कि जिलों के पुनर्गठन और बेहतर प्रशासन का यह मुद्दा अगले विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के लिए चुनाव पूर्व प्रचार का आधार बन जाएगा. साथ ही, उन्होंने कहा कि इससे राज्य के वर्तमान सत्ताधारी नेतृत्व को अपने स्थानीय आधार को और मजबूत करने में मदद मिलेगी.
रवि ने कहा, ‘विधानसभा और लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र पहले जैसे ही रहेंगे, इसलिए मतदान के पैटर्न में ज्यादा बदलाव नहीं होगा. लेकिन, इस कदम से पार्टी को स्थानीय स्तर पर अपना नेतृत्व मजबूत करने में मदद मिलेगी.‘ वे कहते हैं, ‘इस प्रकार के प्रशासनिक विकेंद्रीकरण से राजनीतिक केंद्रीकरण होता है. मुख्यमंत्री ने यह भी घोषणा की है कि वे नए जिलों में मौजूदा कलेक्टर को ही नियुक्त करेंगे. यह एक तरह से यह भी सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया एक कदम है कि नए क्षेत्रों में चीजें नियंत्रण में रहें.‘
एक और विपक्षी पार्टी, जन सेना पार्टी, के महासचिव सत्यनारायण बोलिसेट्टी ने बताया कि कैसे इस प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव था.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘इसे पेश किये जाने से पहले राज्य के राजनीतिक दलों या जनता के साथ कोई बहस या चर्चा नहीं हुई थी. इसे थोड़ी सी पारदर्शिता के साथ और सभी हितधारकों से परामर्श करने के बाद किया जाना चाहिए था. न तो (पूर्व मुख्यमंत्री) चंद्रबाबू नायडू और न ही जगन को लोकतंत्र या निर्धारित प्रक्रिया में कोई विश्वास है और यह बात नायडू द्वारा नई राजधानी के गठन और जगन रेड्डी द्वारा नए जिलों के गठन के मामले में स्पष्ट दिखती है.’
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