नई दिल्ली: बच्चों की जन्मजात विकारों के इलाज एवं शोध से जुड़े तकनीक आधारित उपायों के लिये शुरु किये गये कार्यक्रम ‘उम्मीद’ के दौरान केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने कहा कि भारत में हर साल पांच लाख़ के करीब बच्चे इस बीमारी का शिकार होते हैं. इन बच्चों को अधिकार है कि इन्हें सही इलाज मिले. ‘उम्मीद’ के तहत नवजात शिशु का परीक्षण और इलाज होना है ताकि उन्हें मंदबुद्धि या ऐसी गंभीर बीमारी से बचाया जा सके. इसके तहत जांच की सुविधा मुफ्त में दी जाएगी.
आनुवंशिक बीमारियों के प्रबंधन और इलाज के अनोखे तरीके को उम्मीद नाम दिया गया है. इसमें 21वीं सदी में ‘मॉलिक्यूलर दवाओं’ (आणविक दवा) के जरिए इलाज करने की तैयारी है. इससे जुड़े एक दस्तावेज में बताया गया है कि इंसानी जीनोम से जुड़ा प्रोजेक्ट पूरा होने की वजह से नई तकनीक और नया ज्ञान हासिल हुआ है.
इसी दस्तावेज में बताया गया है कि नई तकनीक और ज्ञान की वजह से डीएनए से जुड़े मॉलिक्यूलर फोटो जेनेसिस (आणविक रोगजनन) पर आधारित बेहतर थेरेपी के रास्ते खुले हैं. उम्मीद के जरिए क्लीनिकों को जेनेटिक विकास से अवगत कराया जाएगा और अस्पतालों में मॉलिक्यूलर इलाज मुहैया कराया जाएगा. ताकि मेडिकल क्षेत्र में हुआ विकास भारत के लोगों तक पहुंच सके.
इस दौरान स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, ‘एक समय पोलियो मुक्ति असंभव काम लगता था. अनुवांशिक बीमारियों के साथ भी ऐसा ही है. लेकिन अगर एक डॉक्टर के भीतर का वैज्ञानिक जाग जाए, तो हम इनके लिए कुछ कर सकता है.’ इस पहल के तहत अनुवांशिक इलाज के लिए फेलोशिप दिए जाने के अलावा निदान केंद्र खोले गए हैं और जेनेटिक डिसऑर्डर से प्रभावित ज़िलों को चिन्हित भी किया गया है.
पहले फेज़ में पांच निदान केंद्र खोल गए हैं
आने वाले समय में मेडिकल जेनेटिक के स्थापित सेंटरों को ज़िला स्तर पर मौजूद अस्पतालों से जोड़ा जाएगा. इसके पहले फेज़ में जो पांच निदान केंद्र खोल गए हैं. उनमें दिल्ली का लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, हैदराबाद-तेलंगाना का निजाम इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, जोधपुर का ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, दिल्ली का आर्मी हॉस्पिटल रिसर्च एंड रेफरल और कोलकाता का नील रतन सरकार मेडिकल और कॉलेज शामिल हैं.
दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु तक आठ ट्रेनिंग सेंटर खोले गए हैं. जिन ज़िलों पर ख़ासा ध्यान दिया जाना है. उनमें हरियाणा का मेवात, कर्नाटक का यादगीर, उत्तराखंड का हरिद्वार, महाराष्ट्र के वाशिम और नंदूरबार, झारखंड के रांची और बोकारो, उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती ज़िले शामिल हैं.
स्वास्थ्य मंत्री ने ये भी कहा कि भारत में हर साल पांच लाख बच्चे कॉन्जेनाइटल डिजीज का शिकार होते हैं. इन बच्चों का अधिकार है कि इन्हें सही इलाज मिले. डॉक्टर हर्षवर्धन ने कहा, ‘शादियां जब आपस के परिवार में हो जाती हैं तो अनुवांशिक बीमारी का ख़तरा ज़्यादा होता.’
इस दौरान बच्चे को मंदबुद्धि या गंभीर बीमारी का शिकार होने से बचाने के लिए जन्म के बाद तीसरे दिन कंजेनाइटल हाइपोथायरायडिज्म, गैलेक्टोसेमिया, बॉयोटिनिडेज की कमी और कॉन्जेनिटल एड्रिनल हाइपरप्लासिया से जुड़े जांच जरूर करवाने की भी सलाह दी गई.
इसमें स्वस्थ शिशु के जन्म के लिए जेनेटिक काउंसिलिंग (आनुवांशिक परामर्श) की सलाह दी गई है और कहा गया है कि 35 साल से ज़्यादा की गर्भवती महिला, गर्भावस्था के समय अल्ट्रासांउड में किसी तरह विकृत दिखने, परिवार में किसी बच्चे के पहले से विकृति होने, परिवार में थैलेसीमिया और हिमोफिलिया जैसी बीमार का इताहिस होने, परिवार में कोई मंदबुद्धि बच्चा या व्यक्ति होने, पति-पत्नी में से किसी के जेनेटिक बीमार से ग्रस्त होने पर जेनेटिक काउंसिलिंग ली जानी चाहिए.
’47 लाख लोगों को मिला आयुष्मान भारत का लाभ’
इस दौरान पिछले पांच साल की उपलब्धि और आने वाले समय की योजना बताते हुए स्वास्थ मंत्री ने कहा कि 2022 तक 75 मेडिकल कॉलेज खोलने की तैयारी है और कई ज़िला अस्पतालों को मेडिकल कॉलेज में तब्दील किए जाने की प्रक्रिया जारी है.
सोमवार को यानी आज आयुष्मान भारत की सालगिरह भी है. इसी सिलसिले में उन्होंने दावा किया, ‘इस योजना के तहत देश के 55 करोड़ लोग देश के बड़े से बड़े हॉस्पिटल में जाकर बिना पैसे के इलाज करवा सकते हैं. पिछले एक साल में 47 लाख लोगों ने इसका लाभ उठाया है.’
आयुष्मान भारत के तहत लोगों को पांच लाख तक का मुफ़्त इलाज मिलने और 18,000 अस्पतालों को इससे जोड़ने की जानकारी देते हुए डॉक्टर हर्षवर्धन ने ये भी कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी की सोच में ग़रीब कल्याण की योजनाएं सबसे अहम होती हैं और उम्मीद भी इनमें से ही एक है.