नयी दिल्ली, नौ मार्च (भाषा) लंबित मामलों की बढ़ती संख्या से निपटने के लिए उच्च न्यायालयों में तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में उच्चतम न्यायालय द्वारा मार्ग प्रशस्त किए जाने के एक महीने से अधिक समय बाद भी सरकार को संबंधित उच्च न्यायालयों से उम्मीदवारों के नाम के प्रस्ताव प्राप्त नहीं हुए हैं।
अठारह लाख से अधिक आपराधिक मामलों के लंबित होने पर विचार करते हुए उच्चतम न्यायालय ने 30 जनवरी को उच्च न्यायालयों को तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति करने की अनुमति दी थी जो न्यायालय की कुल स्वीकृत संख्या के 10 प्रतिशत से अधिक न हो।
संविधान का अनुच्छेद 224ए लंबित मामलों से निपटने में मदद के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को उच्च न्यायालयों में तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की अनुमति देता है।
सूत्रों ने कहा कि केंद्रीय कानून मंत्रालय को तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए संबंधित उच्च न्यायालय कॉलेजियम से अभी तक कोई सिफारिश नहीं मिली है। निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार, संबंधित उच्च न्यायालय के कॉलेजियम विधि मंत्रालय में न्याय विभाग को उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त किए जाने वाले उम्मीदवारों की सिफारिशें या नाम भेजते हैं।
इसके बाद विभाग शीर्ष न्यायालय कॉलेजियम को भेजने से पहले उम्मीदवारों की जानकारी और विवरण जोड़ता है और उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम को अंतिम फैसले के लिए भेजता है।
कॉलेजियम सरकार को चयनित व्यक्तियों को न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश करता है।
राष्ट्रपति नवनियुक्त न्यायाधीश की ‘नियुक्ति के वारंट’ पर हस्ताक्षर करते हैं।
तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया वही रहेगी, सिवाय इसके कि राष्ट्रपति नियुक्ति के वारंट पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे। लेकिन तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति की सहमति ली जाएगी।
सूत्रों ने बताया कि एक मामले को छोड़कर सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को उच्च न्यायालयों में तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की कोई मिसाल नहीं मिलती।
भाषा वैभव नरेश
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