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मंगलवार, 22 अप्रैल, 2025
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सरकार वित्तपोषित अध्ययन में ‘जाल के लिए नकद’ योजना का प्रस्ताव

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(उज्मी अतहर)

नयी दिल्ली, 19 अप्रैल (भाषा) गंगा में बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए सरकार द्वारा वित्तपोषित एक अध्ययन में ‘‘जाल के लिए नकद’’ योजना का प्रस्ताव किया गया है, जिसका उद्देश्य मछुआरों को उनके पुराने या छोड़े गए मछली पकड़ने वाले जाल देने के लिए प्रोत्साहित करना है।

ये छोड़े गए, खोए हुए या फेंके गए सिंथेटिक जाल जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक गंभीर, दीर्घकालिक खतरा पैदा करते हैं।

भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा पांच वर्षों में किया गया यह अध्ययन दीर्घकालिक संरक्षण पहल – स्वच्छ गंगा के लिए गंगा नदी बेसिन में जलीय प्रजातियों के संरक्षण एवं पारिस्थितिकी तंत्र के रखरखाव के लिए योजना और प्रबंधन- का हिस्सा है।

व्यापक नदी और सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षणों के आधार पर, अध्ययन में मछली पकड़ने वाले जाल आदि उपकरणों में जलीय प्रजातियों के उलझने की 72 घटनाएं दर्ज की गईं – सक्रिय और परित्यक्त दोनों। शोधकर्ताओं ने नदी के किनारे हर पांच किलोमीटर पर मछली पकड़ने के उपकरण और सामग्री का दस्तावेजीकरण किया।

सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण के लिए 150 प्रमुख सूचनादाताओं के साक्षात्कार, मछुआरों के साथ 10 केन्द्रित समूह चर्चाएं तथा व्यक्तिगत अवलोकन का उपयोग किया गया। सबसे अधिक संख्या भारतीय फ्लैपशेल कछुए के फंसने की थी, जबकि घड़ियाल के फंसने की संख्या 11 थी। हालांकि, अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि ये आंकड़े वास्तविक पैमाने को कम दर्शाते हैं।

छोड़े गए जालों को विघटित होने में 600 वर्ष तक का समय लग सकता है, तथा इनमें लंबे समय तक मछली, कछुए और अन्य नदी प्रजातियां फंसती रहती हैं।

ये जैसे-जैसे विघटित होते हैं, माइक्रोप्लास्टिक में बदलते हैं, खाद्य श्रृंखला को प्रदूषित करते हैं और पानी की गुणवत्ता को और खराब करते हैं। पश्चिम बंगाल में प्रदूषण का स्तर विशेष रूप से गंभीर पाया गया, जहां एक ही सर्वेक्षण क्षेत्र में 4,600 से अधिक परित्यक्त जालों का दस्तावेजीकरण किया गया।

रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘नदी के निचले हिस्सों में मछली पकड़ने वाले जालों का सर्वाधिक संकेन्द्रण देखा गया, जिसमें पश्चिम बंगाल (4,690) सबसे आगे रहा, उसके बाद उत्तर प्रदेश (2,131), बिहार (1,194) और झारखंड (191) का स्थान रहा।’’

लगभग 30 लाख मछुआरे अपनी आजीविका के लिए गंगा पर निर्भर हैं। इस समस्या से सीधे प्रभावित होने के बावजूद, अधिकांश मछुआरे परित्यक्त जाल से होने वाले दीर्घकालिक नुकसान से अनजान हैं।

प्रस्तावित ‘‘जाल के लिए नकद’’ योजना में मछुआरों को घिसे-पिटे या छोड़े गए जालों को निर्दिष्ट संग्रहण बिंदुओं पर जमा करने के लिए पुरस्कृत करने का सुझाव दिया गया है, जो संभवतः उचित मूल्य की दुकानों के मौजूदा नेटवर्क के माध्यम से प्रबंधित किए जा सकते है। जालों को फिर ब्लॉक-स्तरीय प्रसंस्करण इकाइयों में स्थानांतरित किया जाएगा और बाद में जिला स्तर पर समेकित किया जाएगा।

सरकार द्वारा नियुक्त पहचाने गए पुनर्चक्रण साझेदार पुनर्चक्रण के लिए जालों को एकत्रित करेंगे।

इस मॉडल में बहु-हितधारक, बहु-स्तरीय दृष्टिकोण की आवश्यकता बतायी गई है, जो मजबूत नीतिगत उपायों द्वारा समर्थित हो।

एकमुश्त भुगतान के अलावा, इस पहल में पुरस्कार-आधारित प्रणाली का प्रस्ताव है। जो मछुआरे जिम्मेदारी से जाल का उपयोग करते हैं, वे इस बदलने के लिए सब्सिडी वाली दरों का लाभ उठा सकते हैं – जिसकी बायोमेट्रिक पहचानपत्र के माध्यम से निगरानी की जाएगी।

भाषा अमित रंजन

रंजन

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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