नयी दिल्ली, 31 मई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि सरकारी वित्त-पोषित अल्पसंख्यक संस्थानों को प्रधानाचार्यों, शिक्षकों या अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए शिक्षा निदेशालय (डीओई) से किसी पूर्व-अनुमति या मंजूरी की आवश्यकता नहीं है।
न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर ने 28 मई को पारित अपने फैसले में कहा कि सरकारी वित्त-पोषित अल्पसंख्यक संस्थानों को अपनी पसंद के व्यक्ति को नियुक्त करने का पूर्ण अधिकार है और शिक्षा निदेशालय के विनियमन की सीमा प्रधानाचार्य और शिक्षक के पदों के लिए योग्यता और अनुभव निर्धारित करने तक सीमित है।
अदालत का यह आदेश दिल्ली तमिल शिक्षा संघ की याचिका पर आया, जो राष्ट्रीय राजधानी में सरकारी वित्त-पोषित सात भाषाई अल्पसंख्यक विद्यालय चलाता है। इन विद्यालयों में 6,879 विद्यार्थी हैं।
अदालत में संघ का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता रोमी चाको ने किया।
संघ ने अदालत का दरवाजा खटखटाकर शिकायत की थी कि शिक्षा विभाग 374 स्वीकृत पदों में से प्रधानाचार्य के चार रिक्त पदों और शिक्षक के 108 पदों को भरने के लिए उसे मंजूरी नहीं दे रहा है।
याचिकाकर्ता संघ ने यह भी घोषित करने का अदालत से अनुरोध किया था कि रिक्त पदों को भरने के लिए शिक्षा निदेशालय की मंजूरी की आवश्यकता नहीं है।
भाषा सुरेश दिलीप
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