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Friday, 22 November, 2024
होमदेशमिलिए उन तीन भारतीयों से जिनकी जांच की वजह से गूगल पर 1,338 करोड़ रुपये का एंटी-ट्रस्ट जुर्माना लगा

मिलिए उन तीन भारतीयों से जिनकी जांच की वजह से गूगल पर 1,338 करोड़ रुपये का एंटी-ट्रस्ट जुर्माना लगा

एक इंडिपेंडेंट रिसर्च प्रोजेक्ट के रूप में CCI के रिसर्च सहयोगी उमर जावेद, सुकर्मा थापर और कानून के छात्र आकिब जावीद ने अगस्त 2018 में ये इंफॉर्मेशन उपलब्ध कराई थी. अप्रैल 2019 में Google के आचरण की जांच शुरू हुई और फिर उस पर जुर्माना लगाया गया.

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नई दिल्ली: भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने हाल ही में 20 अक्टूबर को प्रतिस्पर्धा नियमों का उल्लंघन करने के लिए गूगल पर अब तक का अपना सबसे बड़ा 1,338 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था. एंड्रॉइड मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम के क्षेत्र में बाजार में अपनी मजबूत स्थिति का दुरुपयोग करने को लेकर गूगल के खिलाफ ये कार्रवाई की गई और इसके पीछे सीसीआई को इन्फोर्मेशन देने वाले डिजिटल अर्थव्यवस्था से जुड़े उन तीन युवाओं का हाथ था जिनकी जानकारी को आधार बनाते हुए कदम आगे बढ़ाया गया.

सीसीआई कंपटीशन को बढ़ावा देने और भारत में बाजार प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली गतिविधियों को रोकने के लिए जिम्मेदार है.

ऑनलाइन सर्च और वेब विज्ञापन में अपनी मजबूत स्थिति का फायदा उठाने के लिए 2018 में लगा पहला जुर्माना लगभग 136 करोड़ रुपये का था. हाल ही में 25 अक्टूबर को तीसरा जुर्माना जो लगभग 936 करोड़ रुपये का था, ऐप स्टोर बाजार में प्रभुत्व के दुरुपयोग के लिए लगाया गया था.

हालांकि जिसकी वजह से गूगल खबरों में बना, वह 1,338 करोड़ रुपये का दूसरा जुर्माना था. इसने खासी सुर्खियां बटोरीं. सीसीआई ने गूगल के लिए निर्धारित समय सीमा के भीतर अपने कामकाज को संशोधित करने के लिए दस उपाय बताते हुए निर्देश दिया कि वह एंड्रॉइड डिवाइस निर्माताओं को अपनी सेवाओं को प्री-इंस्टॉल करने के लिए मजबूर नहीं करेगा. और साथ ही ये भी कि गूगल यूजर को अपने पहले से इंस्टॉल ऐप्स को अनइंस्टॉल करने से नहीं रोकेगा.

यह फैसला अगस्त 2018 में उमर जावेद और सुकर्मा थापर की तरफ से सीसीआई को दी गई जानकारी का परिणाम था. उस समय वह 27 साल के थे और सीसीआई में शोध सहयोगी के रूप में काम कर रहे थे. उमर के छोटे भाई आकिब की उम्र तब 24 साल थी और वह कश्मीर यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई कर रहे थे.

सुकर्मा के मुताबिक, भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून के तहत कोई व्यक्ति सीसीआई के पास शिकायत या मामले दर्ज नहीं करा सकता है. उसे सिर्फ इस संबंध में ‘इंफोर्मेशन’ जमा करने का अधिकार है.

तीनों ने सीसीआई को इन मामलों से जुड़ी इन्फोर्मेशन मुहैया कराई. तब इस पर विचार करने के बाद सीसीआई ने अप्रैल 2019 में एंड्रॉयड मोबाइल डिवाइस इकोसिस्टम में गूगल के आचरण की एक जांच शुरू की. इसके बाद आखिरकार 20 अक्टूबर को सीसीआई का निर्णय और जुर्माना सामने आया.

इसके जवाब में गूगल ने कहा था कि वह आयोग के निर्णय की समीक्षा करेगा. सीसीआई का फैसला भारतीय उपभोक्ताओं और व्यवसायों के लिए एक बड़ा झटका है, जिससे एंड्रायड की सुरक्षा सुविधाओं पर भरोसा करने वाले भारतीयों के लिए एक गंभीर सुरक्षा जोखिम पैदा होगा और भारतीयों के लिए मोबाइल उपकरणों की लागत बढ़ेगी.


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सबूत पाने के लिए कड़ी मेहनत

यह पूछे जाने पर कि उन्होंने सीसीआई को इन्फोर्मेशन सबमिट करने में दिलचस्पी क्यों दिखाई, तो आकिब ने दिप्रिंट को बताया कि वो तीनों पहले से ही इस बात में रुचि रखते थे कि भारत में डिजिटल बाजार कैसे आकार ले रहा है और कैसे तकनीक को नियंत्रित करने वाली नीतियां और कानून कंज्यूमर और टेक कंपनियों को प्रभावित कर रहे हैं.

फिर यूरोप में गूगल से संबंधित घटनाओं ने तीनों का ध्यान खींचा. उमर ने कहा, ‘जुलाई 2018 में यूरोपीय आयोग (ईयू की कंपटीशन प्रहरी) ने यूरोपीय संघ के एंटी ट्रस्ट नियमों का उल्लंघन करने के लिए गूगल पर 4.34 बिलियन यूरो का अपना सबसे बड़ा जुर्माना लगाया था.’

उन्होंने समझाया कि रिसर्च के लिए आगे आने की वजह दुनिया भर में डिजिटल बाजार के विकास में उनकी रुचि और ये जानकारी थी कि एंड्रॉइड की भारतीय मोबाइल बाजार में एक बड़ी मार्केट हिस्सेदारी है. वह कहते हैं, ‘मैंने रिसर्च करना शुरू किया और पाया कि ये सब तो भारत में भी किया जा रहा है.’

उनके रिसर्च ने तीनों को आश्वस्त कर दिया कि भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग की जांच के लिए ये एक संभावित मामला है.

सीसीआई में सुकर्मा और उमर ने जो काम किया वह कॉन्फिडेंशियल था. सुकर्मा ने कहा कि यह भारत में एंड्रॉयड बाजार से असंबंधित था. इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि उनके ग्रुप ने एंड्रॉइड मार्केट के बारे में एंटी-ट्रस्ट वॉचडॉग को जो जानकारी दी थी, वह उपभोक्ता के रूप में व्यक्तिगत क्षमता में की गई थी.

इंफोर्मेशन के व्यापक डोजियर को संकलित करने की प्रक्रिया आसान नहीं थी और इसमें लगभग दो महीने लग गए. सुकर्मा ने समझाया, ‘हमें दिन में अपने काम पर ध्यान देना था और फिर बाद में बचे समय में इसके लिए रिसर्च करना था. तभी हमारे पास कुछ खाली समय होता था.’

आकिब ने कहा, ‘कितनी बार हम देर रात और सुबह होने तक काम करते थे. कई बार तो काम करते हुए पूरी रात निकल जाती थी. मैं तब कानून का एक छात्र था. इन लोगों की मदद करने का मतलब था कि मुझे अपने एग्जाम और असाइनमेंट के लिए पढ़ाई करने के साथ-साथ रिसर्च के लिए भी समय निकालना था.’

‘सिर्फ कंज्यूमर-फेसिंग जानकारी उपलब्ध’

सुकर्मा ने कहा कि काम के लंबे घंटों के अलावा, प्रासंगिक जानकारी तक पहुंचना भी एक चुनौती थी.

उन्होंने समझाते हुए कहा, ‘हमें अपने आरोपों (कि गूगल संभावित रूप से एंड्रॉइड डिवाइस इकोसिस्टम में अपनी मजबूत स्थिति का फायदा उठा रहा है) को सिद्ध करने के लिए ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटानी थी और सहायक जानकारी की तलाश में गहराई तक जाना पड़ा.’ वह आगे कहती हैं, ‘लेकिन हम सार्वजनिक रूप से उपलब्ध संसाधनों तक ही सीमित थे.’

उमर ने कहा कि इसने सबूतों को इकट्ठा करने को एक मुश्किल काम बना दिया है. क्योंकि अपने दावों को सही ठहराने के लिए उनकी पहुंच सिर्फ पास सिर्फ कंज्यूमर-फेसिंग जानकारी तक ही थी.

उन्होंने बताया, ‘हम एक एंड्रॉइड फोन को देख कर कह सकते हैं कि गूगल के स्वामित्व वाले कुछ ऐप्स हैं जिन्हें हम वहां से चाहकर भी हटा नहीं सकते हैं. लेकिन इसके अलावा, उपभोक्ताओं के रूप में हमारे पास इस बारे में बहुत कम जानकारी थी कि एंड्रॉइड इकोसिस्टम में गूगल की भूमिका से एंड्रॉइड स्मार्टफोन निर्माता और ऐप डेवलपर्स कैसे प्रभावित हो रहे हैं.’

इसका सीधा सा मतलब यह था कि यह सीसीआई पर निर्भर था कि वह अंदरूनी जानकारी इक्ट्ठा करे और आगे बढ़े. सुकर्मा ने कहा, ‘और उस पर तेजी से काम करने के लिए आयोग को इसका श्रेय दिया जाना चाहिए जिसके साथ मिलकर हमने इस काम को किया था.’

वह आगे कहती हैं, ‘जांच के व्यापक दायरे को देखते हुए, सीसीआई को स्मार्टफोन इकोसिस्टम, ऐप डेवलपर इकोसिस्टम और मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम इकोसिस्टम जैसे कई बाजारों की जांच करनी थी. सीसीआई ने इसकी जांच काफी तेजी से की, जिसके लिए आयोग की प्रशंसा की जानी चाहिए.’

आगे क्या?

तीनों युवा अब बतौर वकील काम कर रहे हैं. उमर एक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम में काम कर रहे हैं, सुकर्मा कानून और नीति के लिए एक स्वतंत्र सलाहकार हैं और आकिब दिल्ली में एक वकील हैं.

उमर ने कहा कि उनके प्रयासों से अब एंड्रॉयड डिवाइस, फोन निर्माताओं और ऐप डेवलपर्स के उपभोक्ताओं को अधिक विकल्प मिल सकेंगे.

सुकर्मा ने कहा कि सीसीआई का निर्णय ‘डिजिटल बाजार में इनोवेशन को भी प्रोत्साहित करेगा.’

गूगल के पास क्या अब कोई कानूनी सहारा है, इस बारे में आकिब ने कहा कि गूगल जुर्माना का 10 प्रतिशत जमा करने के बाद आदेश प्राप्त करने के 60 दिनों के भीतर राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) में अपील दायर कर सकता है.

सुकर्मा ने जोर देते हुए कहा कि मैक्रो लेवल कंपटीशन पर सीसीआई की निगरानी, नए दूरसंचार बिल, बिचौलियों के लिए 2021 के आईटी नियम, अभी तक तैयार डिजिटल इंडिया अधिनियम और डेटा संरक्षण कानून के साथ डिजिटल इकोसिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक रूपरेखा की पेशकश करेगा.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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