(तस्वीर के साथ)
(रूपेश सामंत)
पणजी, एक सितंबर (भाषा) गोवा के एक गांव में इन दिनों ‘घुमट’ वाद्य यंत्र और ‘घुमट आरती’ की धूम है और दिलचस्प बात यह है कि इस लोक कला में गांव के बच्चे गहरी दिलचस्पी ले रहे हैं।
निश नितेश नाइक अभी सिर्फ दो साल के हैं, लेकिन उनकी दिनचर्या में गोवा में उनके गांव के एक मंदिर में नियमित रूप से जाना शामिल है, जहां वह और अन्य बच्चे मिट्टी के बर्तन से बनने वाले वाद्ययंत्र ‘घुमट’ को बजाना सीख रहे हैं।
दक्षिण गोवा जिले के शिरोडा इलाके के तारवलेम गांव के ये बच्चे मोबाइल फोन पर गेम खेलने के बजाय, बुधवार से शुरू हुए 10 दिवसीय गणेश उत्सव के दौरान विशेष रूप से गाए जाने वाले भक्ति गीतों के लोक स्वरूप ‘घुमट आरती’ को सीख रहे हैं।
‘घुमट’ मिट्टी के घट यानी घड़े और छिपकली की खाल से निर्मित एक ताल वाद्य यंत्र है। यह परंपरागत वाद्य यंत्र गोवा में पाया जाता है। इसे मुख्य रूप से गोवा के लोक और परंपरागत संगीत के सामूहिक प्रदर्शनों में उपयोग किया जाता है। घड़े के चौड़े हिस्से को छिपकली की खाल से ढंका जाता है और ऊपरी संकरा सिरा खुला रहता है।
‘घुमट आरती’ इसी घुमट वाद्ययंत्र की धुन पर लोक गीत में गाई जाने वाली आरती है। गोवा में खास तौर पर गणेशोत्सव के दौरान घुमट आरती गाई जाती है।
गांव के गायक और संगीतकार राहुल कृष्णानंद लोटलीकर ने इन बच्चों की संगीत प्रतिभा को निखारने और सम्मानित करने का बीड़ा उठाया है। ग्रामीण मयूर नाइक ने पीटीआई-भाषा को बताया कि कैसे लोटलीकर ने अन्य स्थानीय लोगों के सहयोग से बच्चों को मोबाइल फोन पर गेम खेलने और सोशल मीडिया मंच पर रील बनाने में व्यस्त होने के बजाय घुमट जैसे वाद्ययंत्र बजाने और घुमट आरती गाने में रुचि पैदा की है।
घुमट बजाना सीखने वाले बच्चों के समूह में मयूर का भतीजा निश सबसे छोटा है। मयूर ने कहा, ‘‘निश अभी दो साल का है। जब मैं घर पर बैठकर घुमट बजाता था तो उसने घुमट में दिलचस्पी दिखाई थी। इसलिए हमने उसे इन कक्षाओं से परिचित कराया और वह अब नियमित रूप से इसमें शमिल होता है।’’
तारावले में रत्नदीप कल्चरल एंड स्पोर्ट्स क्लब इस मिशन में लोटलीकर को हर संभव सहायता प्रदान कर रहा है। करीब 30 साल के लोटलीकर ने कहा ‘‘मुझे याद है कि कैसे मैं बचपन में अन्य बच्चों के साथ घुमट आरती गाता था, लेकिन पिछले एक दशक में यह परंपरा बंद हो गई।’’
उन्होंने कहा ‘‘दस साल पहले मैंने बच्चों का एक समूह बनाया जो घुमट आरती प्रतियोगिता में हिस्सा लेता था। लेकिन बड़े हो कर वह अन्य गतिविधियों में जुट गए। पांच-छह साल बाद यह हालत हो गई कि गांव में किसी भी बच्चे ने घुमट आरती सीखने में दिलचस्पी नहीं दिखाई।’’
गांव के निवासी दीपक सावर्डेकर ने हाल में लोटलीकर से संपर्क कर बच्चों को घुमट आरती फिर से सिखाने का आयडिया दिया। लोटलीकर ने कहा ‘‘मैंने बच्चों को घुमट आरती सिखाना शुरू किया इस साल जून के दूसरे सप्ताह से। शुरू में केवल सात आठ बच्चे आए और आज 24 बच्चे घुमट आरती सीख रहे हैं। इनमें 12 लड़के और 12 लड़कियां हैं।’’
लोटलीकर ने बताया कि वह उन लड़कियों को प्रेरित करते हैं जो स्कूल में समूह में गाती हैं।
गांव की भरतनाट्यम शिक्षिका मानिला शिरोडकर ने बताया कि उनका 15 साल का बेटा समूह में घुमट वाद्य यंत्र बजा कर बहुत खुश होता है। उन्होंने कहा, ‘‘दिन में स्कूल में वह संगीत की कक्षा में घुमट बजाता है और शाम को घुमट आरती की कक्षा में जाता है। इन बच्चों के लिए अब मोबाइल फोन पुरानी बात हो गई है।’’
लोटलीकर ने कहा कि बच्चों को घुमट या कोई अन्य वाद्य यंत्र बजाने की कला सिखाना आसान नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘आपको शुरू से शुरुआत करनी होगी, लेकिन जब वे लय में आ जाते हैं तो पीछे मुड़कर नहीं देखते।’’
लोटलीकर ने कहा कि इन बच्चों को आगे भजन गाने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। उन्होंने कहा, ‘‘समूह तटीय राज्य में विभिन्न घुमट आरती प्रतियोगिताओं में भाग लेगा और मंदिरों में भी प्रदर्शन करेगा।’’
भाषा सुरभि मनीषा
मनीषा
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