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Sunday, 28 April, 2024
होमदेश'GM सरसों को नजरअंदाज नहीं कर सकते': मोदी सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार ने खाद्य सुरक्षा, आयात का दिया हवाला

‘GM सरसों को नजरअंदाज नहीं कर सकते’: मोदी सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार ने खाद्य सुरक्षा, आयात का दिया हवाला

अजय सूद 108वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस के मौके पर बोल रहे थे. जबकि सरकार ने जीएम सरसों के पर्यावरणीय रिलीज को मंजूरी दे दी है, फील्ड ट्रायल का विरोध करने वाली याचिका पर अभी फैसला करना बाकी है.

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नागपुर: मोदी सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार अजय सूद ने मंगलवार को 108वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस से इतर कहा कि अगर भारत खाद्य सुरक्षा चाहता है और आयातित खाद्य तेलों पर अपने खर्च पर अंकुश लगाना चाहता है तो आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों को अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

जीएम फसलों के क्षेत्र में भारत की प्रगति को जीएम फसलों के विरोधियों का सामना करना पड़ा है, जो मानते हैं कि ऐसी फसलें मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती हैं. कुछ का सुझाव है कि ग्लाइफोसेट हर्बिसाइड के लिए प्रतिरोधी फसलें जैव विविधता को भी प्रभावित कर सकती हैं जबकि हर्बिसाइड्स के उपयोग से जीएम फसल प्रभावित नहीं होगी, इसके आसपास के खरपतवार मर जाएंगे.

सूद ने कहा, ‘फिलहाल समस्या यह है कि एक छोटे समूह की वजह से बहस डर पर चली गई है.’

राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय में चल रही भारतीय विज्ञान कांग्रेस का मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्चुअल उद्घाटन किया, जबकि केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह और नितिन गडकरी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस सहित कई गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए.

कांग्रेस का विषय ‘महिला सशक्तिकरण के साथ सतत विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी’ है.

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कार्यक्रम से इतर मीडिया से बातचीत के दौरान, सूद ने इस बारे में बात की कि बहस को ‘भावनात्मक’ बनने देने के बजाय आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य फसलों को मंजूरी देने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्यों महत्वपूर्ण है.

उन्होंने कहा, ‘जीएम सरसों लंबी लड़ाई के बाद सामने आई है. अगर आप खाद्य सुरक्षा चाहते हैं और बढ़ते हुए खाद्य तेल आयात बिलों का ध्यान रखना चाहते हैं तो आप जीएम सरसों को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘जीएम के बारे में बहस हमेशा भावनात्मक हो जाती है. वैज्ञानिक पक्ष एक बात कहता है और दूसरा पक्ष बिना प्रमाण के बयान देते हैं. बहुत सारे निराधार भय हैं. हम जो नहीं मानते हैं वह यह है कि बहुत सारे आयातित तेल जिनका हम उपभोग करते हैं, जीएम फसल से बनते हैं.

सूद ने यह भी कहा कि भारत को जीएम फसलों को मंजूरी देनी चाहिए या नहीं, इस बारे में बहस वैज्ञानिक प्रकृति की होनी चाहिए, न कि डर पर चलने की.


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सरसों को लेकर विवाद

सूद की यह टिप्पणी सरकार द्वारा पिछले साल अक्टूबर में जीएम सरसों के पर्यावरणीय रिलीज को मंजूरी देने के महीनों बाद आई है, जिससे यह भारत में इस तरह की मंजूरी पाने वाली पहली जीएम खाद्य फसल बन गई है.

हालांकि, जमीनी परीक्षणों से ठीक पहले जीएम मुक्त भारत को लेकर बात शुरू हो सकती है, जीएम फसलों का विरोध करने वाले गैर सरकारी संगठनों के एक समूह ने परीक्षणों को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. और अभी मामला कोर्ट में विचाराधीन है.

उनकी याचिका में दावा किया गया है कि जीएम फसल एक हर्बिसाइड-सहिष्णु किस्म है और पौधे पर छिड़काव और अवशोषित जहरीले रसायन सेवन करने वाले व्यक्तियों के लिए स्वास्थ्य संबंधी चिंता पैदा करेंगे.

आनुवंशिक कन्टेमिनेशन और जैव विविधता के लिए खतरे की आशंका भी जताई गई है.

जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेज़ल कमेटी (जीईएसी) की पर्यावरणीय रिलीज के लिए मंजूरी जीएम फसलों के लिए फील्ड ट्रायल के संचालन का मार्ग प्रशस्त करती है. जीईएसी द्वारा किसानों के लिए वाणिज्यिक रिलीज को मंजूरी देने से पहले, फील्ड परीक्षणों से डेटा का एक बार फिर मूल्यांकन किया जाता है.

पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी की किस्मों सहित विभिन्न प्रकार के तेलों का आयात करके भारत अपनी घरेलू खाना पकाने के तेल की मांग का 70 प्रतिशत पूरा करता है.

जीएम सरसों, जिसे डीएमएच-11 के रूप में जाना जाता है, को दिल्ली विश्वविद्यालय के एक आनुवंशिकीविद् और पूर्व कुलपति दीपक पेंटल द्वारा विकसित किया गया था. अनुसंधान को राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड द्वारा वित्त पोषित किया गया था, जो ‘धारा’ ब्रांड नाम के तहत खाद्य तेलों की विभिन्न किस्मों का विपणन करता है.

2017 में जीईएसी ने जीएम सरसों को व्यावसायिक रूप से जारी करने की सिफारिश की थी लेकिन सरकार ने कार्यकर्ता समूहों और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध स्वदेशी जागरण मंच के विरोध के बाद इसे रोक दिया था.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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