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Saturday, 4 May, 2024
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डिजिटल इंडिया की भागी हुई लड़कियां- जब खाप को दिक्कत नहीं तो बाप को क्यों है

हिंदी के कवि आलोक धन्वा की कविता 'भागी हुई लड़कियां' भारत के 'डिजिटल इंडिया' होने से पहले लिखी गई थी. भविष्य की घोषणा करते हुए कवि ने बता दिया था कि आगे और भी लड़कियां होंगी जो भागेंगी मार्च के महीने में.

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हिसार/जींद/रेवाड़ी: अगर एक लड़की भागती है
तो यह हमेशा जरूरी नहीं है
कि कोई लड़का भी भागा होगा
कई दूसरे जीवन प्रसंग हैं
जिनके साथ वह जा सकती है
कुछ भी कर सकती है
महज जन्म देना ही स्त्री होना नहीं है

हरियाणा के रोहतक, जींद, हिसार और रेवाड़ी की यात्रा करते हुए हिंदी के जाने-माने कवि आलोक धन्वा की ये कविता ज़हन में उतर आती है. टैम्पो से कॉलेज जाती और हाथ में फोन पर कुछ टाइप करती लड़कियां. आलोक धन्वा की कविता ‘भागी हुई लड़कियां’ भारत के ‘डिजिटल इंडिया’ होने से पहले लिखी गई थी. भविष्य की घोषणा करते हुए कवि ने बता दिया था कि आगे और भी लड़कियां होंगी जो भागेंगी मार्च के महीने में.

पीएम मोदी के डिजिटल इंडिया वाले सपने में ग्रामीण भारत की खुशहाल तस्वीर उभर कर आती है. जहां गांव-गांव इंटरनेट से जुड़ गया है. लेकिन क्या डिजिटल इंडिया की भागी हुई लड़कियां खुशहाल हैं? इंटरनेट उनके जीवन में क्या बदलाव लेकर आया? क्या मॉडर्न होता हरियाणा समाज अपनी भागी हुई लड़कियों को स्वीकार कर पा रहा है?

ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब ढूंढने के लिए दिप्रिंट ने हरियाणा में 500 किलोमीटर की यात्रा तय की. फरवरी की धूप में ताश खेलते ताऊ और ऊपले थेपती ताइयों से जाना कि वो इंटरनेट की दुनिया के बारे में क्या सोचती हैं.

जब लड़कियां भागती हैं तो कितने बज रहे होते हैं?

4 साल पहले भागी रेवाड़ी की 26 वर्षीय कल्पना यादव* बताती हैं, ‘मैं रात के 11 बजे घर से भागी थी. मेरे पड़ोस में सब उस दिन जाग रहे थे. सबने मुझे भागते हुए देखा. मेरे मन में जरा भी डर नहीं था क्योंकि मेरे परिवार को मैं हजार बार बता चुकी थी कि मैं इसी लड़के से शादी करूंगी. लेकिन वो नहीं माने. मेरे तीन फोन तोड़े गए. मुझे घर में कैद कर लिया गया. मेरी पढ़ाई छुड़वा दी गई थी. घर से बाहर निकल कर मुझे आजादी-सी महसूस हुई.’

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2 साल पहले भागी महेंद्रगढ़ जिले की 24 वर्षीय तनु यादव* याद करती हैं, ‘मैं घर से रात के 1 बजे निकली थी. मैंने अपने जरूरी कागजात हाथ में लिए और दुपट्टा गले में डाला. चप्पलें मैंने हाथ में ले ली थीं ताकि शोर ना हो. मैंने धीरे-धीरे घर के दरवाजे खोले. मैंने अपने पिताजी की सिम, जिससे मैं फोन पर बात करती थी, तोड़ दी.’

पीछे क्या छूटा? इस सवाल पर तनु कहती हैं, ‘मिट्टी पर अपने पैरों के निशान और हमेशा के लिए बंद हो गए घर के दरवाजे.’

क्या साथ लेकर आईं? अगले सवाल पर वो कहती हैं, ‘भागी हुई लड़की का टैग. मेरे मायके की सात पीढ़ियां मुझे इसी नाम से याद रखेंगी. अगर भागा हुआ लड़का घर लौटता है तो वो सोनू-मोनू ही रहता है लेकिन अगर लड़की भागकर लौटती है तो उसे अपना नाम वापस कभी नहीं मिलता. ये नाम हमारे माथे पर लिख दिया गया है.’

तनु ने अंतरजातीय प्रेम विवाह किया था तो कल्पना ने अपनी जाति के लड़के को खोजा था. दोनों ही अब एक-एक बच्चियों की मां बन गई हैं. दोनों के ही पति सरकारी नौकरियों की खोज में हैं. क्या आपकी बच्चियों को वो आजादी मिलेगी जो आप चाहती थीं? मेरे सवाल का जवाब दोनों हां में देती हैं.

‘इंटरनेट के दौर में लड़कियां ज्यादा भाग रही हैं’

हरियाणा में अंतरजातीय विवाहों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने ‘मुख्यमंत्री सामाजिक समरसता अंतरजातीय विवाह शगुन योजना’ की शुरुआत की थी. इस योजना में राज्य के साथ-साथ 50 फीसदी हिस्सेदारी केंद्र सरकार की भी है.

लाभार्थी बनने के लिए प्रेमी जोड़े में से एक पार्टनर का अनुसूचित जाति से होना आवश्यक है. पहले सरकार ऐसे जोड़ों को 1,01,000 रुपए की धनराशि प्रदान करती थी जिसमें से 51 हजार रुपए शादी के तुरंत बाद दोनों के जॉइंट अकाउंट में भेजे जाते थे. लेकिन खट्टर सरकार ने इस शगुन को बढ़ाकर 2.5 लाख रुपए कर दिया है.

आज भी हर दूसरे दिन हरियाणा के अखबारों पर छपने वाली ऑनर किलिंग की खबरों को नजरअंदाज करना मुश्किल है जिसके चलते देश के उच्चतम न्यायलय ने खाप पंचायतों की तुलना आंतकवादी संगठन तालिबान से की थी. ज्ञात हो कि 242वीं लॉ कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक ऑनर किलिंग के मामलों में हरियाणा का नाम टॉप पर था.

इसके लिए राज्य सरकार ने 2010 में ‘सेफ होम’ की शुरुआत की जो घर-परिवार, ऑनर किलिंग या फिर खाप पंचायतों के डर से भागकर आए प्रेमी जोड़ों को सुरक्षा प्रदान करते हैं.

रोहतक के सेफ होम के बाहर ड्यूटी करने वाले पुलिस कर्मचारी बताते हैं, ‘साल 2010 में जब इसकी शुरुआत हुई थी तो कोई इक्का दुक्का ही आता था. लेकिन पिछले सालों में इन जोड़ों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. कई बार तो यहां दस जोडे़ भी एकसाथ रहते हैं. मतलब लड़के-लड़कियां पहले से ज्यादा भाग रहे है.’

‘घर की जंजीरे कितनी दिखाई पड़ती हैं, जब कोई लड़की घर से भागती है’

जींद के सेफहोम में हमारी यात्रा के दौरान 5 जोड़े ठहरे हुए थे. मच्छरों से भरे कमरे में बाहर से वो कैदियों की भांति लग रहे थे. दिप्रिंट से हुई बातचीत में वो बताते हैं, ‘हमें यहां चिढ़ हो रही है. कैद हो गए हैं. सारा दिन खाना बनाते हैं, बात करते हैं और सो जाते हैं. बाहर खुली हवा में जाने का मन है लेकिन जान का खतरा भी है.’ इन जोड़ों की लड़कियां अपनी बात मुखरता से रख रही थीं और उनके चेहरों पर घर से भागने का पछतावा जरा भी नहीं था.


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हिसार डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में 2012 से वकालात कर रहे जितेंद्र कुश कहते हैं, ‘लड़की के घर से भागने के पीछे इकलौती वजह ये है कि पुरुष प्रधान समाज में इज्जत को सिर्फ लड़की से ही जोड़कर देखा जाता है. उसकी मर्जी स्वीकार ही नहीं करते. भागने से शुरू हुए ये सारी लड़ाई पुरुष की पुरुष के खिलाफ ही रहती है.

इन जोड़ों में आई लड़कियों का प्रेम भी आज की सरकारी योजनाओं की तरह डिजिटल हो गया है. कोई टिकटोक पर मिला था तो कोई फेसबुक पर. जैसे पंजाब के पटियाला की सुमन* को फेसबुक नंवबर 2019 में जींद के साहिल* से प्रेम हुआ था और फरवरी 2020 में दोनों ने भागकर शादी कर ली और अब सेफ होम की शरण में थे.

बैगपैक, टिफिन और एक जोड़ी कपड़े साथ लिए भाग रहे इन लोगों का अस्तित्व स्थानीय अखबारों में ‘भागे हुए प्रेमी जोड़े’ की लाइन तक ही सिमेट दिया गया है.

हालांकि स्थानीय मीडिया ने इन सेफ होम्स की पोल खोलते हुए भी खबरें छापी हैं. दैनिक भास्कर की साल 2018 की एक रिपोर्ट बताता है कि महिला थाने की तत्कालीन एसएचओ ने प्रेमी जोड़े को टॉर्चर कर लड़की को अपने प्रेमी को छोड़ने के लिए मजबूर किया. दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट ने खुलासा किया था कि कि कैसे एक सेफ होम में 16 लोगों के लिए एक ही शौचालय है.

‘मॉडर्न हरियाणा मगर बेटियों की पसंद के लिए अभी भी कट्टर’

हिसार के सेफ होम में ड्यूटी पर तैनात सीमा की 4 वर्षीय बेटी अक्सर भागे हुए जोड़ों के बीच ही यूट्यूब पर गाने सुनती है. सीमा को ऐसे जोड़ों की देखरेख करते हुए करीब चार साल हो गए हैं. वो सवाल का जवाब भी सवाल के तौर पर ही देती हैं, ‘एक तरफ समाज को अपने बच्चों के लिए बढ़िया अंग्रेजी स्कूल, पिज्जा, एंड्रोएड फोन और जींस चाहिए. लेकिन लड़की की मर्जी के नाम पर कट्टरता. या तो अपने बच्चों को आधुनिकता से दूर कर दो. गुरुकुल में पढ़ाओ और पारंपरिक तौर तरीकों से रहो या फिर चुनने का अधिकार दो.’

उनका आखिरी सवाल था, ‘ये कैसा मॉडर्निज्म है जो हर चीज में आ गया है लेकिन बेटियों की मर्जी में नहीं आया है?’

लेकिन हिसार के लिताणी गांव के ज्यादातर लोग उल्टा सोचते हैं. दिप्रिंट से हुई बातचीत में वो कहते हैं कि टेलिविजन से ज्यादा खराब इंटरनेट है. इसपर बहू-बेटियां एकांत में गंदी चीजें देखती हैं और यही वजह इनके भागने का कारण बनती है. कई बुजुर्गों ने सरकार और मीडिया को भी कोसा जो लड़कियों की आजादी की पैरवीं करते हैं. बातचीत का सार रहा कि डिजिटल इंडिया ने फायदा कम किया है और लड़कियों को बिगाड़ा ज्यादा है.

इस पर राष्ट्रीय मीडिया में जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता जगमति सांगवान कहती हैं, ‘इसमें कोई शक नहीं है कि इंटरनेट ने लड़कियों को खुद की मर्जी व्यक्त करने का मौका दिया है.’

‘खाप को दिक्कत नहीं तो बाप को क्यों है?’

पिछले साल हरियाणा में खरीद कर लाई गई बहुओं पर रिपोर्ट तैयार करते हुए दिप्रिंट ने कई खाप पंचायतों से बात की थी. प्रसिद्ध कंडेला खाप के सदस्यों ने बताया था कि वो अंतरजातीय विवाहों को प्रोत्साहित करते हैं. उनके मुताबिक एक गौत्र या एक गांव में ही शादी करने की ही मनाही है. खाप पंचायतों का कहना है कि सरकार द्वारा दिए गए प्रोटेक्शन होम की वजह से लड़कियां भागती हैं और घर पर नहीं बताती.

लेकिन साल 2018 में घर से भागी हिसार जिले की अनु जांगड़ा (बदला हुआ नाम) का कुछ अलग मत है. अनु एक अनुसूचित जाति के लड़के के साथ भागी थी. वो कहती हैं, ‘मैंने अपने परिवार को बताया था. उन्होंने और रिश्तेदारों ने साफ मना कर दिया कि निचली जाति के लड़के से शादी नहीं करेंगे. बाद में फोन छीन लिया गया. इस वजह से मुझे भागना पड़ा. अब जब खाप को दिक्कत नहीं है तो बाप को क्यों है?’


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अनु दिन के 11 बजे बाजार जाने के बहाने भागी थीं और हिसार जिले के सनातन धर्म चैरिटेबल ट्रस्ट में आकर शादी कर ली थी. इस ट्रस्ट को चलाने वाले संजय चौहान दिप्रिंट के साथ हुए साक्षात्कार में बताते हैं, ‘खाप पंचायतों और ऑनर किलिंग का डर इतना व्याप्त है कि लड़के-लड़कियों के पास भागने का कोई ऑप्शन नहीं होता. मेरे पास अनेकों ऐसे केस आए जब लड़की ने शादी करने के बाद घर पर जाकर बताया तो उसकी खूब पिटाई हुई. घर में कैद किया गया. फोन छीन लिया गया. हमने पुलिस की मदद से ऐसी लड़कियों को छुड़वाया है. कई बार जहर पिलाकर मारने की कोशिश भी हो जाती है.’

2012 में रजिस्टर्ड हुए इस ट्रस्ट ने अबतक 450 शादियां कराई हैं जिसके मुताबिक 90 फीसदी से ज्यादा शादियां अंतरजातीय हैं. ट्रस्ट के आंकड़ों के मुताबिक इसमें भी उच्च जाति की लड़कियां निचली जातियों के लड़कों के साथ ज्यादा शादियां कर रही हैं.

हरियाणा में साल 2017-2018 में 608 अंतरजातीय विवाह हुए थे. इन आंकड़ों का श्रेय सरकार अपनी योजनाओं को भी देती रही है. गौरतलब है कि साल 2014 में ये आंकड़ा 249 ही था.

(* कई नाम सुरक्षा के लिहाज से बदले गए हैं.)

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2 टिप्पणी

  1. प्रिंट वाले ये कभी नहीं बताएंगे के साल दो साल के बाद जब परिवार बढ़ता है तो ऐसे मौसमी मजनुओं के प्यार का भूत उतर जाता है और प्रेम का स्थान मार पीट और अत्याचार ले लेता है। कितने ही मामलों में पैसों की तंगी या प्रेमी पति द्वारा ही इन लड़कियों का अन्य लोगों से भी जबरन प्रेम करवाया जाता है। और ये बात बिल्कुल सही है कि इंटरनेट के ज्यादा प्रचार प्रसार से लड़कियां गुमराह हो रही हैं। भाग कर प्यार या शादी करने के 90 प्रतिशत मामलों में केवल हवस होती है जिसकी भूख मिटते ही लड़की को ठोकरों पर रख देते हैं। लड़कियां जल्दी भरोसा कर लेती हैं और बुरे लोग इसका फायदा उठा लेते हैं।

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