scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होमदेशIAS अधिकारियों को केंद्र में लाना, मुख्य सचिव बनाना, कैडर में वापिस भेजना — 1.0 से कैसे अलग है मोदी 2.0

IAS अधिकारियों को केंद्र में लाना, मुख्य सचिव बनाना, कैडर में वापिस भेजना — 1.0 से कैसे अलग है मोदी 2.0

यूपी और राजस्थान में क्रमशः दुर्गा शंकर मिश्रा और सुधांश पंत की नियुक्ति, भाजपा शासित राज्यों में मुख्य सचिव के रूप में कार्यभार संभालने वाले केंद्र सरकार के अधिकारियों के ट्रेंड का हिस्सा है.

Text Size:

नई दिल्ली: अगर नरेंद्र मोदी सरकार का पहला कार्यकाल राज्यों से सिविल सेवकों को चुनने के लिए जाना जाता था — एक ट्रेंड जिसे कुछ लोग नई दिल्ली में मौजूदा सत्ता व्यवस्था में विश्वास की कमी के तौर पर देख रहे थे — तो उनका दूसरा कार्यकाल केंद्र सरकार से राज्यों के शीर्ष पदों पर, विशेष रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित राज्यों में जांचे-परखे प्रशासकों को तैनात करने की बढ़ती प्रवृत्ति वाला रहा है.

नौकरशाही हलकों में बदलते रुझान को केंद्र में 10 साल की सत्ता के बाद मोदी सरकार की राजनीतिक-शासन रणनीति में बदलाव के रूप में देखा जा रहा है.

मोदी सरकार 1.0 में केंद्र सरकार में प्रमुख पदों को भरने के लिए लाए गए कई अधिकारी ऐसे अधिकारी थे जिनके साथ पीएम ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए अपने 13 साल के लंबे कार्यकाल के दौरान करीब से काम किया था. इस सरकार ने अन्य राज्यों से अधिकारियों को चुनने के लिए 360-डिग्री प्रणाली भी शुरू की.

मोदी 2.0 में भाजपा शासित राज्यों में शीर्ष प्रशासनिक पदों पर बैठे कई अधिकारी — यानी मुख्य सचिव — वे हैं जिन्होंने 2014 से मोदी सरकार के तहत विस्तारित अवधि तक काम किया.

अगर मोदी 1.0 अपने दृष्टिकोण को पूरा करने के लिए केंद्र में नौकरशाही में आमूलचूल परिवर्तन करने के बारे में था, तो मोदी 2.0 अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा शासित राज्यों में प्रशासन को संचालित करने के बारे में है.

पिछले हफ्ते पीएम की अध्यक्षता में कैबिनेट की नियुक्ति समिति (एसीसी) ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा का कार्यकाल तीसरी बार बढ़ाया — 31 दिसंबर को उनके रिटायरमेंट से ठीक दो दिन पहले.

मिश्रा, जोन्होंने 2017 से 2021 तक शहरी मामलों के केंद्रीय सचिव रहे हैं, को दिसंबर 2021 में उनकी रिटायरमेंट से कुछ दिन पहले सेवा विस्तार दिया गया और 2022 में राज्य में महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले मुख्य सचिव नियुक्त किया गया था.

अब, अपने छह महीने के विस्तार के साथ, 1984 बैच के आईएएस अधिकारी मिश्रा इस साल के लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी में शीर्ष प्रशासनिक पद पर बने रहेंगे.

मिश्रा की नियुक्ति के कुछ ही दिनों बाद केंद्र सरकार ने 1991-बैच के अधिकारी सुधांश पंत को समय से पहले उनके गृह कैडर राजस्थान में वापस भेज दिया, जिसके बाद उन्हें राज्य में मुख्य सचिव नियुक्त किया गया, जहां पिछले महीने भाजपा सत्ता में आई थी.

पंत ने उन छह अधिकारियों को रास्ते से हटा दिया जो मुख्य सचिव बनने के लिए शीर्ष पद की दौड़ में थे.

अपने प्रत्यावर्तन से पहले पंत जून 2023 से स्वास्थ्य मंत्रालय में केंद्रीय सचिव और विशेष कर्तव्य अधिकारी (ओएसडी) थे. इसके अलावा वे नितिन गडकरी की अध्यक्षता वाले बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय में दिसंबर 2022 से जून 2023 तक ओएसडी और सचिव भी रहे हैं.

2016 से 2019 तक केंद्र में अपने पहले कार्यकाल के दौरान, जिसके बाद वह 2 साल के लिए अपने कैडर में वापस चले गए, पंत ने स्वास्थ्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव के रूप में कार्य किया.

दोनों नियुक्तियों ने नौकरशाही हलकों में हलचल पैदा कर दी है.

केंद्र सरकार में सचिव पद से सेवानिवृत्त हुए एक अधिकारी ने कहा, “जिन दोनों अधिकारियों की बात हो रही है, वे दोनों सक्षम अधिकारी हैं, इसलिए यह योग्यता का सवाल नहीं है.”

सेवानिवृत्त अधिकारी ने पिछले सप्ताह दिप्रिंट को बताया, “यहां तक कि राज्य कैडर में प्रत्यावर्तन भी असामान्य नहीं है — अगर राज्य सरकार उनकी सेवाएं चाहती है, तो कई अधिकारियों को समय से पहले उनके कैडर में वापस भेज दिया जाता है, यहां तक कि मुख्य सचिव के रूप में भी…हालांकि, जो असामान्य है, वह इन अधिकारियों को चुनने और उन्हें वापस भेजने में केंद्र सरकार की भागीदारी.”

परंपरा के अनुसार, मुख्य सचिव की नियुक्ति मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र में है, इस पद पर किसे नियुक्त किया जाए, इसमें केंद्र सरकार का कोई अधिकार नहीं है.

हालांकि, मिश्रा और पंत की नियुक्तियों में प्रोटोकॉल का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि यह तथ्य “स्पष्ट” है कि ये केंद्र के भरोसेमंद अधिकारी हैं.

अब सरकार में चर्चा यह है कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मुख्य सचिव, जहां भाजपा ने हाल ही में शानदार जीत हासिल की है, को भी वर्तमान में केंद्र सरकार में कार्यरत दोनों राज्यों के वरिष्ठ अधिकारियों में से चुना जा सकता है.

उत्तर प्रदेश के एक अन्य सेवानिवृत्त अधिकारी, जिन्होंने मोदी और योगी दोनों सरकारों के तहत काम किया है, ने कहा, “यह ट्रेंड (केंद्र से अधिकारियों को राज्यों में भेजे जाने की) दूसरे कार्यकाल में और अधिक बढ़ रही है.”

अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “ट्रेंड में तकनीकी रूप से कुछ भी गलत नहीं है — मुख्य सचिवों और केंद्रीय सचिवों दोनों के रैंक और वेतनमान समान है और वे किसी भी नौकरी के लिए पात्र हैं, लेकिन नियुक्तियां राजनीति से प्रेरित लगती हैं.”

अधिकारी ने कहा, “यह स्पष्ट है कि जिन अधिकारियों ने केंद्र में काम करते हुए अपनी वफादारी साबित की है, उन्हें राज्यों को संभालने के लिए भेजा जा रहा है…यह केंद्र सरकार का भी एक कार्य है कि उसने पिछले 10 वर्षों में विभिन्न अधिकारियों का ‘मूल्यांकन’ किया और पहले की तुलना में अब उनके पास चुनने के लिए एक बड़ा पूल है.”

अधिकारी ऐसी नियुक्तियों के परिणामस्वरूप राज्यों के भीतर “दोहरे शक्ति केंद्रों” के उद्भव की ओर भी इशारा करते हैं.

उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल कैडर के एक सेवारत अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि केंद्र द्वारा मुख्य सचिव की नियुक्ति पूरे राज्य की नौकरशाही को “दोहरे शक्ति केंद्र” के बारे में एक संदेश भेजती है.

अधिकारी ने कहा कि इसके अलावा, कई वर्षों के बाद केंद्र से वापस आए अधिकारियों की खातिर राज्य सरकारों में सेवारत वरिष्ठ अधिकारियों के मनोबल को गिराना खराब है.


यह भी पढ़ें: केंद्र बनाम राज्य, नियम बनाम परंपरा – असल में कौन IAS अधिकारियों को नियंत्रित करता है


लगातार उभरता ट्रेंड

लगातार उभरते इस ट्रेंड में मिश्रा और पंत के मामले सबसे ताज़ा हैं. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भाजपा शासित राज्यों में सेवारत कई मुख्य सचिव ऐसे अधिकारी हैं, जिन्होंने 2014 से विस्तारित अवधि के लिए केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर नई दिल्ली में सेवा की है.

मणिपुर में चल रहे संघर्ष के बीच राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) के प्रमुख 1992-बैच के अधिकारी विनीत जोशी को उनके गृह कैडर में वापस भेज दिया गया और पिछले साल मई में मुख्य सचिव नियुक्त किया गया.

जोशी — जिन्होंने राजेश कुमार की जगह ली, को राज्य में जातीय संघर्ष के मद्देनज़र स्थानांतरित कर दिया गया था — उन्होंने 2018 से केंद्र सरकार में विभिन्न पदों पर काम किया है.

केंद्र सरकार ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में महानिरीक्षक (आईजी) के रूप में उनकी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति को कम करते हुए, त्रिपुरा-कैडर के आईपीएस अधिकारी राजीव सिंह को मणिपुर के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के रूप में नियुक्त किया. त्रिपुरा कैडर के अधिकारी सिंह को अंतर-कैडर प्रतिनियुक्ति पर मणिपुर भेजा गया था.

दिसंबर 2023 में एसीसी ने 1989-बैच के अधिकारी अटल डुल्लू को, जो पिछले चार महीनों से गृह मंत्रालय में सीमा प्रबंधन विभाग में सचिव थे, एजीएमयूटी (अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मिज़ोरम और अन्य केंद्र शासित प्रदेशों) कैडर में वापस भेज दिया.

बाद में उन्हें केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जम्मू-कश्मीर का मुख्य सचिव नियुक्त किया गया. इससे पहले, डुल्लू 2013 से 2018 तक केंद्र में ग्रामीण विकास मंत्रालय में बतौर संयुक्त सचिव सेवाएं दे चुके हैं.

1987 बैच के अधिकारी राज कुमार, जिन्हें जनवरी 2023 में गुजरात के मुख्य सचिव नियुक्त किया गया था, 2015 से 2021 तक केंद्र सरकार में वित्त और रक्षा जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों में भी कार्यरत रहे हैं. उन्हें दिसंबर 2021 में अतिरिक्त मुख्य सचिव नियुक्त कर कैडर में वापस भेज दिया गया था, दो साल पहले उन्हें जनवरी 2023 में मुख्य सचिव के पद पर पदोन्नत किया गया — गुजरात में नई भाजपा सरकार के सत्ता में आने के कुछ हफ्ते बाद.

फरवरी 2022 में उत्तराखंड चुनाव से कुछ महीने पहले, 1988 बैच के अधिकारी सुखबीर सिंह संधू, जो भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के अध्यक्ष थे, को जुलाई 2021 में मुख्य सचिव नियुक्त किया गया.

संधू 2014 से केंद्र में थे और एनएचएआई अध्यक्ष नियुक्त होने से पहले मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय में संयुक्त और अतिरिक्त सचिव के पद पर थे.

अगस्त 2023 में संधू को कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने छह महीने का सेवा विस्तार दिया था, कथित तौर पर केदारनाथ और बद्रीनाथ में चल रहे काम के कारण और राज्य में चल रही अन्य प्रमुख केंद्र सरकार की परियोजनाओं को सुविधाजनक बनाने के लिए भी.

जून 2022 में एजीएमयूटी कैडर में 1989 बैच के एक अधिकारी धर्मेंद्र अरुणाचल प्रदेश वापस चले गए और राज्य के मुख्य सचिव बन गए.

धर्मेंद्र 2013 से अतिरिक्त मुख्य सचिव, उपभोक्ता मामलों के रूप में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर थे, इससे पहले उन्हें 2019 में नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) के अध्यक्ष का महत्वपूर्ण पद दिया गया था.

नागालैंड में मौजूदा मुख्य सचिव जान-ए-आलम भी मोदी सरकार में 2013 से 2020 तक शिक्षा और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय में काम कर चुके हैं. फरवरी 2021 में बतौर मुख्य सचिव पदोन्नत होने से पहले, मार्च 2020 में आलम को सीएम का अतिरिक्त मुख्य सचिव नियुक्त किया गया था.

जबकि उपरोक्त अधिकांश नियुक्तियों पर केंद्र सरकार की मंजूरी की मोहर लगी हुई है, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच अधिकारी की पसंद को लेकर काफी हद तक असहमति नहीं है.

हालांकि, मिज़ोरम में ऐसा नहीं था. 2021 में केंद्र और राज्य सरकारों ने दो अलग-अलग अधिकारियों को मुख्य सचिव नियुक्त किया, जिससे कथित तौर पर एक खुला संघर्ष हुआ, मुख्यमंत्री ज़ोरामथांगा ने गृह मंत्री अमित शाह को लिखा कि मुख्य सचिव के रूप में उनकी पसंद को अस्वीकार करने से राज्य में विपक्षी दलों को “उनकी वफादारी का मज़ाक” बनाने का मौका मिलेगा.

केंद्र की पसंद 1988 बैच की अधिकारी रेनू शर्मा अंततः मुख्य सचिव बन गईं. शर्मा पहले नई दिल्ली में कार्यरत थीं.

गृह मंत्रालय एजीएमयूटी कैडर के अधिकारियों के स्थानांतरण और नियुक्तियों के लिए जिम्मेदार नोडल मंत्रालय है, जिसमें अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मिज़ोरम और सभी केंद्र शासित प्रदेश शामिल हैं. हालांकि, मंत्रालय के दिशानिर्देशों में कहा गया है कि “किसी राज्य में मुख्य सचिव और सबसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का फैसला संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री के परामर्श से केंद्रीय गृह मंत्री की मंजूरी से किया जा सकता है”.

Graphic by Ramandeep Kaur, ThePrint
ग्राफिक: रमनदीप कौर / दिप्रिंट

यह भी पढ़ें: मोदी सरकार की अनुमति के बिना रिटायर्ड खुफिया या सुरक्षा अधिकारी अपने कामकाज पर किताब नहीं लिख सकेंगे


कुछ अपवाद

हालांकि, इस ट्रेंड के कुछ अपवाद भी हैं.

ऐसा माना जाता है कि हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर और मध्य प्रदेश में पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान की सरकार के तहत मुख्यमंत्रियों को अपने मुख्य सचिवों को चुनने की आज़ादी थी.

उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश में 1985 बैच के अधिकारी इकबाल सिंह बैंस को मार्च 2020 में चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के सत्ता में लौटने के 24 घंटों के भीतर मुख्य सचिव नियुक्त किया गया था.

चौहान के करीबी माने जाने वाले बैंस को दो बार सेवा विस्तार दिया गया, जिसे बाद में केंद्र सरकार ने भी मंजूरी दे दी.

हालांकि, ऐसे कुछ मामले भी थे, जहां केंद्र सरकार में सेवारत अधिकारियों को उनके कैडर में वापस भेज दिया गया और मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी मुख्य सचिव नियुक्त किया गया.

उदाहरण के लिए 2017 के उत्तर प्रदेश चुनावों के तुरंत बाद केंद्र सरकार ने 1981 बैच के आईएएस अधिकारी राजीव कुमार को समय से पहले कैडर वापस भेज दिया, जो दिसंबर 2014 से जून 2017 तक शिपिंग मंत्रालय में सचिव थे, जिसके बाद उन्हें मुख्य सचिव बनाया गया था.

हालांकि, कुल मिलाकर, मुख्य सचिवों को राज्यों में सेवारत अधिकारियों के समूह से ही चुना गया था. वास्तव में कई मामलों में कुछ मुख्य सचिवों को ही राज्यों से केंद्र में सेवा के लिए बुलाया गया था.

उदाहरण के लिए 2014-2019 की अवधि में ओडिशा के पूर्व मुख्य सचिव जे.के. महापात्र को उर्वरक सचिव नियुक्त किया गया, पंजाब के मुख्य सचिव राकेश सिंह को इस्पात मंत्रालय में सचिव नियुक्त किया गया और पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव संजय मित्रा को सड़क और परिवहन सचिव नियुक्त किया गया.

चाहे यह नया हो या असामान्य, सभी अधिकारी इस ट्रेंड से चिंतित तो नहीं दिखते हैं.

आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव एल.वी. सुब्रमण्यम ने कहा कि जिन मामलों के कारण नौकरशाही हलकों में चर्चा हो रही है, वे केंद्र और राज्य सरकारों के समान अधिकारियों को चाहने के “सौभाग्यपूर्ण संयोग” से अधिक कुछ नहीं हैं.

उन्होंने कहा, “किसी भी मामले में हम यह नहीं कह सकते कि केंद्र ने अपनी इच्छा राज्य सरकारों पर थोप दी है…कुछ भी हो, यह संभव है कि क्योंकि एक अधिकारी केंद्र में सेवा कर रहा था, राज्य सरकार उन्हें राज्य में वापस लेने की इच्छा व्यक्त करने में झिझक रही थी.”

सुब्रमण्यम ने कहा, निष्पक्ष रूप से कहें तो, हम संबंधित अधिकारी की पसंद को या तो राज्य सरकार की पसंद या केंद्र की पसंद कह सकते हैं, “लेकिन हम इसे केंद्र की पसंद के रूप में देखना चुनते हैं.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: बिहार के स्कूलों के लिए टीएन शेषन हैं IAS केके पाठक, क्या डर से सुधरेगी चरमराई शिक्षा व्यवस्था


 

share & View comments