नई दिल्ली: जर्मन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार येंस पोल्टनर ने बुधवार को कहा कि जर्मनी भारत को यूक्रेन पर रूस के आक्रमण का स्पष्ट रूप से विरोध करते हुए अपने पक्ष में खड़ा देखना पसंद करता, लेकिन बर्लिन को नई दिल्ली की ‘चुनौतियों और बाधाओं’ का एहसास है.
पोल्टनर ने यह टिप्पणी इस बारे में भारत की स्थिति के रुख पर और अधिक जानकारी के लिए अपने भारतीय समकक्ष अजीत डोभाल से मुलाकात के लिए अपनी 12 घंटे की यात्रा के दौरान नई दिल्ली पहुंचने पर की. यह यात्रा उस समय हो रही थी जब रूस-यूक्रेन संघर्ष के गहराने के साथ ही यूरोप की तरफ से भारत के लिए उच्च-स्तरीय यात्राओं की भीड़ सी लगी दिख रही है. इस बीच, भारत ने इस मसले के समाधान के रूप में कूटनीति और बातचीत की पैरोकारी करना जारी रखा हुआ है.
पोल्टनर, जिनकी यात्रा को अंतिम क्षण तक गोपनीय रखा गया था, ने उनके जर्मनी लौटने से पहले भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और विदेश सचिव हर्ष वी. श्रृंगला से भी मुलाकात की.
डोभाल के साथ अपनी बैठक से पहले पत्रकारों के एक चुनिंदा समूह के साथ बातचीत के दौरान पोल्टनर से भारत द्वारा यूक्रेन युद्ध के मसले पर रूस को दंडित करने के मकसद से संयुक्त राष्ट्र में पेश प्रस्तावों की एक श्रृंखला से अपने आप को दूर रखने के मुद्दे के बारे में सवाल किये गए थे.
जर्मन फेडरल चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ के विदेश और सुरक्षा नीति सलाहकार पोल्टनर ने कहा, ‘हम भारत को अपने खेमे में रखने का स्वागत करते. मगर यह सब कहने के बाद भी, हर किसी का अपना भूगोल होता है और हर किसी का अपना भू-राजनीतिक वातावरण (जोपोलिटिकल सेटिंग) होता है जिसमें उसे विकसित होना होता है.’ उन्होंने कहा, ‘आप (भारत) एक बहुत ही जटिल पड़ोस में रहते हैं. आपकी अपनी चुनौतियां और बाधाएं हैं.’
शीर्ष स्तर के भारतीय सुरक्षा सूत्रों के अनुसार, जर्मन सलाहकार की यात्रा ऐसे समय में हुई है जब कई अन्य उच्चस्तरीय विदेशी पदाधिकारी भी वर्तमान में चल रहे द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और बहुपक्षीय मुद्दों पर सलाह-मशविरे के लिए भारत आ रहे हैं.
सूत्रों ने कहा कि एनएसए डोभाल ने यूक्रेन युद्ध पर पोल्टनर के साथ चर्चा करते हुए उन्हें भारत के ‘विवादों के शांतिपूर्ण समाधान वाले निरंतर दृष्टिकोण’ के बारे में सूचित किया, और कहा कि नई दिल्ली का यह दृष्टिकोण अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रति उसकी प्रतिबद्धता तथा सभी राष्ट्रों की क्षेत्रीय अखंडता एवं संप्रभुता के प्रति सम्मान के सिद्धांतों के अनुरूप है.
इस बीच, विदेश मंत्री जयशंकर ने अपने एक ट्वीट में कहा, ‘आज दोपहर जर्मन चांसलर के विदेश और सुरक्षा नीति सलाहकार जेन्स पोल्टनर को देखकर अच्छा लगा. जाहिर तौर पर हमारी बातचीत यूक्रेन के हालात पर ही केंद्रित थी,
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— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) March 30, 2022
विदेश सचिव श्रृंगला के साथ पोल्टनर ने भारत और जर्मनी के बीच रणनीतिक साझेदारी पर चर्चा की.
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— Arindam Bagchi (@MEAIndia) March 30, 2022
पत्रकारों से बात करते हुए, पोल्टनर ने इस तथ्य की ओर इशारा किया कि भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिए भी यूक्रेन युद्ध के बड़े पैमाने पर प्रभाव पड़ने की संभावना है.
उन्होंने कहा, ‘इंडो-पैसिफिक (भारत-प्रशांत क्षेत्र) आपका (भारत का) क्षेत्र है … मैं इस बारे में बेहतर ढंग से समझना चाहूंगा कि भारत इस (इंडो-पैसिफिक) क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता के लिए (रूस-यूक्रेन युद्ध के) इसके निहितार्थ को कैसे देखता है. इसलिए मैं यहां सुनने वाले के रूप में ही अधिक रहूंगा.’
बता दें कि जनवरी 2022 में, इन दो इंडो-पैसिफिक भागीदारों के बीच ताकत के एक बड़े प्रदर्शन के रूप में जर्मन फ्रिगेट ‘बायर्न’ ने भारतीय जल क्षेत्र में प्रवेश किया था.
जर्मन एनएसए ने यह भी कहा कि रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की भारत की आगामी यात्रा संवाद के लिए ‘उपयोगी’ होगी.
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‘बेहतर समझ हासिल करना’
एनएसए डोभाल के साथ पोल्टनर की बैठक का मुख्य उद्देश्य ‘यूक्रेन पर रूसी हमले के भू-राजनीतिक परिणामों के बारे में बेहतर, साझा समझ हासिल करना’ था.
पोल्टनर ने कहा, ‘मेरी यहां हुई बातचीत का लक्ष्य भारत में इस स्थिति (यूक्रेन में युद्ध) के बारे में आपके विचारों – के बारे में सुनना और सीखना है जो हमारे एजेंडे में काफी प्रमुख है. मसलन आप इस स्थिति को कैसे देखते हैं और इस सारे घटनाक्रम के बारे में आपका क्या विश्लेषण है?’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन स्पष्ट रूप से हम अपने दृष्टिकोण को भी साझा करना चाहते हैं, जो कि जर्मनी के साथ यूक्रेन की भौगोलिक निकटता के कारण काफी विशिष्ट दृष्टिकोण है. तथाकथित नॉरमैंडी फॉर्मेट और मिन्स्क वार्ता के माध्यम से रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष को सुलझाने के प्रयास में शामिल होने का हमारा आठ से अधिक वर्षों का ट्रैक रिकॉर्ड है और इसलिए हमें इस स्थिति में विशेष रूप से मदद के लिए बुलाया जाता है.’
पोल्टनर ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि यह युद्ध, जो अब एक महीने से अधिक समय से चल रहा है, के परिणामस्वरूप जर्मनी में बड़े पैमाने पर शरणार्थी संकट पैदा हो गया है.
उन्होंने कहा, ‘बर्लिन यूक्रेनी शरणार्थियों से भरा पड़ा है, हमारे ट्रेन स्टेशन भरे हुए हैं, हर रोज लगभग 10,000-15,000 यूक्रेनियन आ रहे हैं. यह एक बड़ी भू-राजनीतिक चुनौती है, लेकिन जब आप बर्लिन के नजरिये से इस संकट के बारे में बात करते हैं तो यहां कुछ हद तक मानवीय आयाम की भी बात आ जाती है.’
‘अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का स्पष्ट और घोर उल्लंघन’
जर्मन एनएसए ने यह भी कहा कि यूक्रेन पर रूस की कार्रवाई ‘सभी अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का एक स्पष्ट और घोर उल्लंघन’ है और इस सवाल का जवाब कि यह सब कैसे समाप्त होगा, अभी भी खुला हुआ है.
उनके अनुसार, यूक्रेन ने इस हमले के लिए नहीं उकसाया, और ‘अगर इसे रोका नहीं नहीं गया’ तो इसके नतीजे यूक्रेन की सीमाओं के परे भी फैल जाएंगे.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के इस तर्क पर जोर देते हुए कि यूक्रेन मूलरूप से सोवियत संघ का अंग था, पोल्टनर ने कहा, ‘यदि हम इतिहास की किताबों में पीछे मुड़कर देखना शुरू करें और फिर अपने देश के लिए उपयुक्त भूगोल का चयन करें; और अगर हर देश समय में पीछे जाने का फैसला करता है, तो मुझे लगता है कि हम काफी उथल-पुथल वाले दौर में हैं.‘
उन्होंने कहा, ‘यही कारण है कि यूक्रेन में जो कुछ हो रहा है उसकी वजह से यूरोप से परे भी उन सभी देशों की राजधानियों में खतरे की घंटी बजनी चाहिए जो अंतरराष्ट्रीय कानून के शासन में विश्वास करते हैं, जो अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में विश्वास करते हैं और यहां हम आपने आप को भारत के बहुत करीब महसूस करते हैं. जिस तरह से हम राज्यों को एक-दूसरे के साथ रहते हुए देखते हैं, उससे हमें लगता है कि हमारे पास एक जैसी ही जीन है.’
पोल्टनर ने संवाददाताओं से बातचीत में बताया कि उन्होंने एनएसए डोभाल से न केवल यूरोप में बल्कि बाकी दुनिया में भी ‘युद्ध के परिणामों’ के बारे में, और इस बारे में भी कि ‘हमें इससे क्या सबक सीखने की जरूरत है’, बात की.
उन्होंने कहा, ‘हम नहीं चाहते कि बड़े वाले (देश) प्रोत्साहित हो क्योंकि ऐसा कुछ भी बिना किसी रोक-टोक के किया जा सकता और न ही हम यह चाहते कि छोटे देश यह महसूस करें कि उन्हें डर कर रहने की जरूरत है, क्योंकि कोई भी बड़ा देश कभी भी इतिहास और भूगोल के मुद्दे पर समय में वापस जाने का फैसला कर सकता है फिर यह तय कर सकता है कि इस देश को इस तरह अस्तित्व में रहने का अधिकार ही नहीं है.’
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