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शुक्रवार, 25 अप्रैल, 2025
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आनुवंशिक अध्ययन में दक्षिण भारतीय समुदायों में उच्च अंतःप्रजनन दर पाई गई

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नयी दिल्ली, पांच मार्च (भाषा) दक्षिण भारतीय आबादी के गुणसूत्रों (जीन) के विश्लेषण में उनमें अंतःप्रजनन की दर लगभग 60 प्रतिशत होने की बात सामने आई है।

अंत:प्रजनन या अंतर्विवाह की ऐतिहासिक प्रथा, जिसमें किसी समूह के व्यक्तियों का विवाह उसी समूह के भीतर होता है, गुणसूत्रों में बदलाव का कारण बन सकती है और बच्चों को अपने माता-पिता से उत्परिवर्तित गुणसूत्र मिल सकते हैं, जिससे उनमें आनुवंशिक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

मुख्य अनुसंधानकर्ता और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) तथा कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र, हैदराबाद के वरिष्ठ वैज्ञानिक कुमारसामी थंगराज ने कहा कि भारत में जनसंख्या-विशिष्ट रोगों की प्रमुख वजह अंतर्विवाह है।

अनुसंधान से यह भी पता चला है कि आंध्र प्रदेश के रेड्डी समुदाय के लोगों के ‘एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस’ (गठिया का एक आम रूप, जिसमें रीढ़ और अन्य जोड़ों में सूजन की शिकायत सताती है) की चपेट में आने का जोखिम ज्यादा होता है।

अनुसंधानकर्ताओं ने इसके लिए ‘एचएलए-बी27:04’ की मौजूदगी को जिम्मेदार ठहराया है, जिसे ‘एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस’ का खतरा बढ़ाने वाले जीन के रूप में जाना जाता है। उन्होंने कहा है कि ‘एचएलए-बी27:04’ की मौजूदगी के पीछे जबरदस्त “संस्थापक प्रभाव” का हाथ है, जिसमें एक छोटे समूह के लोगों के बीच प्रजनन से एक नयी आबादी तैयार होती है।

अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक, जाति व्यवस्था में गहराई से निहित अंतर्विवाह प्रथा दक्षिण भारतीय समाज में ज्यादा देखने को मिलती है। उन्होंने कहा कि भारत में बड़ी संख्या में अंतर्विवाह करने वाली आबादी होने के बावजूद इससे उत्पन्न रोग जोखिमों पर अध्ययन बहुत सीमित हैं।

अनुसंधानकर्ताओं ने ‘1000 जीनोम’ डेटासेट का इस्तेमाल करते हुए 281 लोगों के खून के नमूनों की जांच की। ये लोग अंतर्विवाह करने वाले चार समूहों से ताल्लुक रखते थे। इनमें पुडुचेरी के यादव, आंध्र प्रदेश के कलिंगा और रेड्डी तथा तमिलनाडु के कल्लर समूह शामिल हैं।

विश्लेषण के लिए अनुसंधानकर्ताओं ने संपूर्ण एक्सोम अनुक्रमण का इस्तेमाल किया, जिसमें किसी बीमारी के पारिवारिक इतिहास वाले व्यक्ति के नमूने की विस्तृत आनुवंशिक जांच की जाती है। उन्होंने बताया कि जांच में आंध्र प्रदेश के रेड्डी समुदाय में ‘एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस’ के मामले ज्यादा पाए गए और इसके लिए “अंतर्विवाह करने वाली आबादी में 59 प्रतिशत की उच्च अंतःप्रजनन दर” जिम्मेदार मिली।

यह अनुसंधान ‘जर्नल ऑफ जेनेटिक्स एंड जिनोमिक्स’ में प्रकाशित किया गया है।

‘1000 जीनोम’ परियोजना 2008 से 2015 के बीच चलाई गई थी, जिसके तहत यूरोप, एशिया और अफ्रीका के लगभग 1,000 लोगों में पाए जाने वाले सामान्य गुणसूत्र उत्परिवर्तन दर्ज किए गए थे।

भाषा पारुल माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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