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Friday, 14 June, 2024
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एआईएमपीएल के जीलानी ने फिर दोहराया, उस 67 एकड़ में ही चाहिए मस्जिद के लिये जमीन

जीलानी ने कहा, ‘राज्य सरकार ने अयोध्या जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर सोहावल में मस्जिद बनाने के लिये 5 एकड़ जमीन देने का फैसला किया है, वह 1994 में संविधान पीठ द्वारा इस्माइल फारुकी के निर्णय के खिलाफ है.’

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लखनऊ: ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य जफरयाब जीलानी ने उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को अयोध्या में मस्जिद निर्माण के लिये जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर जमीन देने के निर्णय पर सवाल उठाये हैं.

जीलानी ने कहा, ‘राज्य सरकार ने अयोध्या जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर सोहावल में मस्जिद बनाने के लिये पांच एकड़ जमीन देने का जो फैसला किया है, वह वर्ष 1994 में संविधान पीठ द्वारा इस्माइल फारुकी मामले में दिये गये निर्णय के खिलाफ है.’

उन्होंने कहा, ‘उस निर्णय में यह तय हुआ था कि केन्द्र सरकार द्वारा अधिगृहीत की गयी 67 एकड़ जमीन सिर्फ चार कार्यों मस्जिद, मंदिर, पुस्तकालय और ठहराव स्थल के लिये ही इस्तेमाल होगी. अगर उससे कोई जमीन बचेगी तो वह उसके मालिकान को वापस कर दी जाएगी. ऐसे में मस्जिद के लिये जमीन इसी 67 एकड़ में से देना लाजमी था.’

उत्तर प्रदेश सरकार ने बुधवार को हुई कैबिनेट बैठक में मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन दिए जाने पर भी मुहर लगा दी थी यह जमीन अयोध्या के रौनाही में दी जाएगी. रौनाही अयोध्या-लखनऊ मार्ग पर है.


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सरकार के प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा ने बताया, ‘श्रीराम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद सुप्रीम कोर्ट के 9 नवम्बर के आदेश में 5 एकड़ भूमि आवंटित किये जाने के सम्बंध में 5 एकड़ जमीन तीन माह के अंदर किया जाना निर्धारित किया गया था जिसमें भारत सरकार ने तीन विकल्पों में ग्राम धनीपुर तहसील सोहलावलपुर के थाना रौनाहीपुर को चुना है. यह जमीन लखनऊ-अयोध्या हाई-वे पर अयोध्या से करीब 22 किलोमीटर पहले है.’

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जीलानी ने कहा, हालांकि ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पहले ही तय कर चुका है कि वह मस्जिद की जमीन के बदले कहीं और भूमि नहीं लेगा, लिहाजा अब यह सुन्नी वक्फ बोर्ड पर निर्भर है कि वह सरकार के सामने इस बात को रखे.

इस बीच, जमीन लेने के सवाल पर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी है. बोर्ड के अध्यक्ष जुफर फारुकी से कोई सम्पर्क नहीं हो सका.

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के एक अन्य वरिष्ठ कार्यकारिणी सदस्य मौलाना यासीन उस्मानी ने मंत्रिमण्डल के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘बोर्ड, उससे जुड़ी प्रमुख तंजीमों और लगभग सभी मुसलमानों का फैसला है कि हम अयोध्या में मस्जिद के बदले कोई और जमीन नहीं लेंगे.’

उन्होंने कहा, ‘सुन्नी वक्फ बोर्ड मुसलमानों का नुमाइंदा नहीं है. वह सरकार की संस्था है. बोर्ड अगर जमीन लेता है तो इसे मुसलमानों का फैसला नहीं माना जाना चाहिये.’

इधर, ऑल इण्डिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने कहा, ‘उच्चतम न्यायालय ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को जमीन देने का आदेश दिया है. जमीन लेने या न लेने के बारे में उसे ही निर्णय लेना है.’

उन्होंने कहा, ‘वक्फ बोर्ड जो भी फैसला ले उससे अमन कायम रहे. अब मजहब के नाम पर फसाद नहीं होना चाहिये. सियासी लोग फसाद कराते हैं.’

हालांकि अब्बास ने यह भी कहा कि बाबरी मस्जिद के मामले पर शिया बोर्ड अब भी ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ है.

मालूम हो कि उच्चतम न्यायालय ने गत नौ नवम्बर को अयोध्या मामले में निर्णय देते हुए विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण कराने और मुसलमानों को अयोध्या में ही किसी प्रमुख स्थान पर मस्जिद बनाने के लिये पांच एकड़ जमीन देने का आदेश दिया था. उत्तर प्रदेश मंत्रिमण्डल ने इसके अनुपालन में बुधवार को अयोध्या जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर सोहावल तहसील के धुन्नीपुर गांव में जमीन देने का निर्णय लिया.

हालांकि ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मस्जिद के बदले कोई और जमीन लेने से पहले ही इनकार कर चुका है.

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