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बुधवार, 7 मई, 2025
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फुरफुरा शरीफ: क्या है बंगाल में अल्पसंख्यक वोट का समीकरण

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(जयंत रॉय चौधरी और अमिताव रॉय)

फुरफुरा शरीफ (पश्चिम बंगाल), तीन जुलाई (भाषा) पश्चिम बंगाल के हावड़ा और हुगली जिलों के विशाल खेतों की हरियाली को पीछे छोड़ते राज्य राजमार्ग पर वाहन धूल उड़ाते हुए एक गांव से गुजरते हैं, तो यहां की पहचान फुरफुरा शरीफ के पीर की मजार पर नजर जरूर ठहरती है, जिनके नाम पर इस गांव का नाम पड़ा है।

करीब 7000 की आबादी वाला यह गांव फुरफुरा के पहले पीर मुहम्मद अबु बक्र सिद्दीकी की मजार के आसपास से ही बढ़ा है। फुरफुरा शरीफ को बहुत से लोग अजमेर की दरगाह शरीफ के बाद दूसरा सबसे पवित्र सूफी तीर्थस्थान मानते हैं। यह गांव अब ‘इंडियन सेक्युलर फ्रंट’ (आईएसएफ) नामक पार्टी का केंद्र है। पार्टी की स्थापना पीर के वंशजों द्वारा दो साल पहले की गई थी।

पश्चिम बंगाल में 2021 में हुए विधानसभा चुनावों में आईएसएफ को महज 1.35 प्रतिशत वोट और एक सीट हासिल हुई थी, लेकिन इसके बावजूद इसे राज्य के 27 प्रतिशत मुस्लिम मतों में हिस्सेदारी के लिए मुख्यधारा की तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस, माकपा और भाजपा के लिए खतरे के रूप में देखा जाता है, क्योंकि गरीब बंगाली मुस्लिम किसानों के बीच फुरफुरा शरीफ दरगाह की लोकप्रियता है।

आईएसएफ के एक मात्र विधायक और फुरफुरा शरीफ मजार के पीरजादा नौशाद सिद्दीकी (30) ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ बातचीत में कहा, “हम चक्रवातों के दौरान गांवों में एनजीओ का काम करते थे… लेकिन हमें एहसास हुआ कि अकेले धर्मार्थ कार्य से लोगों की मदद नहीं होगी। परिवर्तन लाने में सक्षम होने के लिए हमें सत्ता में आना होगा।”

पश्चिम बंगाल में अगले शनिवार को होने वाले पंचायत चुनावों की तैयारियों में जुटे सिद्दीकी आईएसएफ के धर्म निरपेक्ष होने और ग्रामीण बंगाल में सभी कमजोर वर्गों के लिये काम करने का दावा करते हैं, लेकिन इसके अधिकांश नेता और पार्टी पदाधिकारी व कार्यकर्ता बंगाली मुसलमान हैं। नौशाद के बड़े भाई अब्बास सिद्दीकी ने 2021 में पार्टी की स्थापना की थी और विधानसभा चुनाव से पहले वाम दलों के साथ सीट साझा करने का समझौता करने में कामयाब रहे, जो बाद टूट गया।

राजनीतिक विश्लेषक और विचारक संस्था ‘कलकत्ता रिसर्च ग्रुप’ के सलाहकार रजत रॉय ने बताया, “2021 का चुनाव एक द्विआधारी (बाइनरी) चुनाव बन गया… भाजपा के बढ़ते प्रभाव से सावधान मुसलमानों ने सबसे मजबूत पार्टी- टीएमसी को वोट देने का फैसला किया। इस प्रक्रिया में रैलियों में भारी संख्या में लोगों को आकर्षित कर रहे आईएसएफ का उदय रुक गया और औद्योगिक तथा उत्तरी बंगाल में क्रमशः वामपंथियों और कांग्रेस का उनके पारंपरिक गढ़ में सफाया हो गया।”

आजीविका के मुद्दे, घोटालों का प्रसार और सत्ता विरोधी लहर के अलावा धार्मिक-जातीय भावनाओं में वृद्धि से हालांकि अल्पसंख्यक वोट पर टीएमसी की मजबूत पकड़ को खतरा हो सकता है।

पश्चिम बंगाल में माकपा की नेता सायरा शाह हलीम ने कहा, “मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का करिश्मा कम हो रहा है, विभिन्न समुदायों के लिए उनकी प्रतीकात्मकता की नीति से मदद नहीं मिल रही है… घोटालों का लोगों के मानस पर प्रभाव पड़ा है।”

आईएसएफ के सिद्दीकी ने कहा कि उनकी पार्टी उन मुद्दों को उठाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जो टीएमसी और भारतीय जनता पार्टी दोनों को असहज कर सकते हैं, जैसे “मूल्य वृद्धि, किसानों की घटती आय, भ्रष्टाचार और नौकरियों की कमी”, तथा दावा किया कि लोग इन रोजमर्रा की समस्याओं पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं।

उम्मीद है कि पंचायत चुनाव राज्य में राजनीतिक पंडितों द्वारा प्रतिपादित इन और अन्य परिकल्पनाओं की अग्नि परीक्षा होंगे।

आजादी और विभाजन के बाद हुए दंगों के बाद, पश्चिम बंगाल में मुसलमानों का झुकाव कांग्रेस की तरफ हुआ, जिसका नेतृत्व प्रदेश में तब पहले करिश्माई मुख्यमंत्री डॉ. बी. सी. रॉय कर रहे थे। उनकी मृत्यु के बाद धीरे-धीरे उनका (मुसलमानों का) रुझान भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की ओर हो गया, जो ‘तेभागा’ (एक तिहाई) आंदोलन के माध्यम से किसान अधिकारों की वकालत कर रही थी।

रॉय कहते हैं कि आईएसएफ भी कृषक वर्ग को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है…उसे हालांकि एक इस्लामिक धर्मगुरु के नेतृत्व वाले दल के तौर पर देखा जाता है।

आईएसएफ कोलकाता और दक्षिण 24 परगना में आयोजित रैलियों में कुछ ताकत दिखा रहा है। इस साल जनवरी में कोलकाता में एक बड़ी रैली के बाद हुई हिंसा के चलते गिरफ्तार किए गए लोगों में नौशाद सिद्दीकी भी शामिल थे।

रॉय बताते हैं कि जमीनी स्तर पर हालांकि इस खींचतान का ज्यादा मतलब नहीं हो सकता है, क्योंकि अल्पसंख्यकों की कांग्रेस और माकपा के प्रति पुरानी वफादारी है।

हलीम ने कहा, “नई पार्टी केवल रूढ़िवादी मुसलमानों के एक छोटे वर्ग को प्रभावित करती दिखती है… लेकिन फिर रूढ़िवादियों का एक अन्य वर्ग ममता का भी समर्थन करता है। हमें विश्वास है कि हमारे मतदाता, धर्म की परवाह किए बिना, हमारे पाले में वापस आ रहे हैं।”

फुरफुरा से कुछ किलोमीटर दूर, संतोषपुर गांव के चाय दुकान के मालिक देबाशीष बसु को लगता है कि वामपंथ वास्तव में ग्रामीण बंगाल के कुछ हिस्सों में वापसी कर रहा है, लेकिन “वोट काटा-काटी” (मतों के विभाजन) के कारण परिणाम किसी के भी पक्ष में जा सकता है। उनके मित्र और पेशे से किसान, 60 वर्षीय बिनोद मल भी इस बात से सहमत थे, लेकिन उन्होंने कहा कि अंततः टीएमसी की जीत हो सकती है।

टीएमसी भी हावड़ा, हुगली, दक्षिण और उत्तर 24 परगना के साथ-साथ बीरभूम, जहां एक बड़ा अल्पसंख्यक वोट है, और मुर्शिदाबाद और मालदा के मुस्लिम बहुल जिलों में कोलकाता के मेयर फिरहाद हकीम को अपने मुस्लिम चेहरे के रूप में पेश कर रही है।

भाषा प्रशांत दिलीप

दिलीप

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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