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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशयोग से लेकर नदियों को फिर से जीवन देते-देते क्यों कानूनी विवादों में फंस गया सद्गुरू का ईशा फाउंडेशन

योग से लेकर नदियों को फिर से जीवन देते-देते क्यों कानूनी विवादों में फंस गया सद्गुरू का ईशा फाउंडेशन

सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्त प्रोफेसर की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को अपने पास स्थानांतरित कर लिया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि उनकी दो बेटियों को सद्गुरु के नेतृत्व वाले ईशा फाउंडेशन द्वारा संचालित कोयंबटूर के ईशा योग केंद्र में ‘बंदी’ रखा गया है.

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चेन्नई: 1990 के दशक की शुरुआत में, एक लंबी लहराती हुई दाढ़ी वाला आदमी अपनी मोटरसाइकिल को ऊबड़-खाबड़ वाले रास्ते पर चला रहा था. यह रास्ता उसे वेल्लियांगिरी पहाड़ियों की तलहटी में लेकर गया. सफेद पायजामा पहने उस आदमी ने एक जगह ढूंढी, एक चटाई बिछाई और काम पर लग गया. काम था- कोयंबटूर जिले के बोलुवमपट्टी ग्राम पंचायत के निवासियों को योग सिखाना.

इस तरह से ग्रामीण ईशा योग केंद्र के जन्म को याद करते हैं, जो तब से अपने मुख्य संरक्षक, ईशा फाउंडेशन के संस्थापक जग्गी वासुदेव या सद्गुरु के तत्वावधान में संचालित हो रहा है.

लगभग तीन दशक बाद, जिस स्थान पर जग्गी ने अपना बेस बनाने का का फैसला किया था, वह चारों ओर से बड़ी-बड़ी चट्टानों की दीवारों से घिरा हुआ है; उनके पीछे 150 एकड़ में फैला कंक्रीट का जंगल है।

ईशा योग केंद्र 1994 में अपनी स्थापना के बाद से ही आलोचना और विवाद का विषय रहा है। पिछले महीने, यह फिर से जांच के दायरे में आया जब एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर ने मद्रास उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि उनकी दो बेटियों को आश्रम में भिक्षु बनने के लिए मजबूर किया गया था।

उच्च न्यायालय के समक्ष व्यक्तिगत रूप से और बाद में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष वर्चुअल रूप से पेश हुए, उस व्यक्ति की बेटियों ने इस बात से इनकार किया कि उन्हें कोयंबटूर के आश्रम में “बंदी” बनाकर रखा गया था.

ईशा फाउंडेशन ने एक बयान जारी कर कहा कि वे “लोगों से शादी करने या भिक्षु बनने के लिए नहीं कहते क्योंकि ये व्यक्तिगत विकल्प हैं”.

सोमवार को सेवानिवृत्त प्रोफेसर की याचिका पर सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने पुलिस को जांच करने और ईशा योग केंद्र के खिलाफ सभी आपराधिक मामलों पर विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया था. कोयंबटूर पुलिस ने आश्रम का दौरा किया और दो दिनों तक साधुओं से बात की.

गुरुवार को ईशा फाउंडेशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस को आगे की कार्रवाई करने से रोक दिया और सेवानिवृत्त प्रोफेसर की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को अपने पास स्थानांतरित कर लिया.

लेकिन इस मामले ने ईशा फाउंडेशन और इसके संस्थापक जग्गी वासुदेव से जुड़े कई विवादों की ओर फिर से ध्यान खींचा है, जो विभिन्न मुद्दों पर अपना रुख रखने से पीछे नहीं हटे हैं. उन्होंने बार-बार ‘मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने’ की वकालत की है.

नवीनतम विवाद और इससे पहले हुए विवादों के मद्देनजर, दिप्रिंट ने बोलुवमपट्टी के ग्रामीणों, ईशा फाउंडेशन पर अवैध निर्माण का आरोप लगाने वाले कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवकों से बात की, जिनका कहना है कि उन्हें कभी भी ब्रह्मचर्य अपनाने के लिए नहीं कहा गया.

ईशा योग केंद्र के अनुसार, उनके बैंगलोर और कोयंबटूर केंद्रों में लगभग 217 ब्रह्मचारी (145 पुरुष और 72 महिलाएं) हैं.

कोयंबटूर का आश्रम, जिसमें किसी भी समय कम से कम 7,000 लोग आते हैं, बेंगलुरु में सद्गुरु सन्निधि और टेनेसी में ईशा इंस्टीट्यूट ऑफ इनर-साइंसेज और लॉस एंजिल्स में ईशा योग केंद्र के साथ सबसे प्रमुख है.

ईशा फाउंडेशन का कहना है कि दुनिया भर में इसके 300 से ज़्यादा केंद्रों को 17 मिलियन से ज़्यादा स्वयंसेवकों के एक जीवंत नेटवर्क द्वारा चलाया जाता है. ईशा फाउंडेशन नियमित रूप से नदियों को पुनर्जीवित करने, पेड़ लगाने और मिट्टी के संकट को दूर करने के उद्देश्य से कई तरह की पहल करता है.

ईशा योग केंद्र में वॉलंटियर्स

2004 और 2005 के बीच कभी-कभी, मणिकंदन (अब 43 वर्ष) जो उस समय एक मार्केटिंग प्रोफेशनल थे, अपने नौकरी के लिए जरूरी टैक्टिक्स और नैतिक मूल्यों के बीच एक गैप महसूस करते थे. एक दोस्त ने उन्हें कोयंबटूर में ईशा योग केंद्र में आयोजित 13-दिवसीय योग सत्र में भाग लेने की सलाह दी, और उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

मणिकंदन तब से आश्रम में अंशकालिक रूप से वॉलंटियर कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, “मैंने इसके बारे में पूछताछ की, लेकिन समय मेरे लिए उपयुक्त नहीं था, इसलिए मैं इसमें शामिल नहीं हुआ. मेरा दोस्त कहता रहा कि मैं कभी भी कक्षा में शामिल नहीं होऊंगा. इससे मैं परेशान हो गया और मैंने उसे गलत साबित करने के लिए इसमें शामिल होने का फैसला किया. इस तरह मैं पहली बार कक्षा में शामिल हुआ. लेकिन, यह मेरे लिए जीवन बदलने वाला फैसला था.”

2005 में 13 दिवसीय योग शिविर में भाग लेने के बारे में पूछे जाने पर, मणिकंदन ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें “ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ और थोड़ा बॉडी एक्सरसाइज़” सिखाई गई थी.

उन्होंने कहा, “मैं बहुत ज्यादा आध्यात्मकि व्यक्ति नहीं था, लेकिन मेरे मन में चल रहे कई सवालों के तार्किक जवाब मुझे मिल गए.” उन्होंने आगे कहा कि साधु बनना जितना आसान लगता है, उतना है नहीं. मेरे मन में ऐसा विचार नहीं था, लेकिन मैं इसकी प्रक्रिया जानता हूं. कम से कम पांच से छह साल तक उन्हें स्वयंसेवा करनी होती है और उसके बाद ही वे इसे अपना सकते हैं. इसके बाद भी हो सकता है कि गुरु उन्हें साधु बनने के लिए स्वीकार न करें अगर उन्हें लगता है कि व्यक्ति अभी भी इसके लिए तैयार नहीं है.”

मणिकंदन के लिए ईशा फाउंडेशन इसलिए भी खास है क्योंकि एक योग सत्र में उनकी मुलाकात प्रीति से हुई थी, जो बाद में उनकी पत्नी बनीं. दंपति का डेढ़ साल का बच्चा है.

यह पूछे जाने पर कि उन्हें ईशा फाउंडेशन की ओर किस बात ने आकर्षित किया, प्रीति ने कहा कि वह जग्गी के यूट्यूब वीडियो से “बहुत प्रभावित” थीं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “मैं आस-पास ईशा योग कक्षाओं की भी तलाश कर रही थी. मैंने सुना था कि वे स्थानीय केंद्रों पर हो रही हैं. मैं 7-दिवसीय कार्यक्रम में शामिल होने में कामयाब रही. इसने मेरी ज़िंदगी बदल दी.” वह भी ईशा योग केंद्र में पार्ट-टाइम वॉलंटियर हैं.

लेकिन ईशा योग केंद्र के खिलाफ़ कानूनी लड़ाई लड़ने वाले सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. एस. कामराज ने इन बातों पर विश्वास करने से इनकार कर दिया.

उन्होंने पूछा, “लंदन में काम करने वाली और हर महीने ढेर सारी कमाई करने वाली महिला अचानक सब कुछ छोड़कर भिक्षुणी कैसे बन सकती है.”

कामराज ने यह भी दावा किया कि उनकी दोनों बेटियां, जो भिक्षुणी हैं, ने उन्हें और उनकी पत्नी को कोयंबटूर के ईशा योग केंद्र में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया. उन्होंने आरोप लगाया, “मैंने कई सरकारी अधिकारियों से गुहार लगाई. जिला कलेक्टर द्वारा की गई एक जांच में मैंने तर्क दिया कि बुढ़ापे में अपने माता-पिता की देखभाल करना बेटियों का कर्तव्य है. उन्होंने मुझे सब कुछ छोड़कर योग केंद्र में शामिल होने के लिए कहा ताकि वे मेरी देखभाल कर सकें.”


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अवैध निर्माण के आरोप

ईशा फाउंडेशन पर पिछले साल ही अवैध निर्माण के आरोप लगे थे, जब मद्रास उच्च न्यायालय की एक पीठ ने 2017 की एक जनहित याचिका का निपटारा करते हुए जांच का आदेश दिया था. इस जनहित याचिका में ईशा फाउंडेशन पर कोयंबटूर के पेरूर तालुक के बोलुवमपट्टी गांव में 20 हेक्टेयर भूमि पर अनधिकृत निर्माण करने का आरोप लगाया गया था. याचिका वेल्लियांगिरी हिल्स ट्राइबल्स प्रोटेक्शन सोसाइटी द्वारा दायर की गई थी, जिसमें कथित रूप से क्षेत्र में आर्द्रभूमि (वेटलैंड) को हुए नुकसान का हवाला देते हुए कथित अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने की मांग की गई थी.

अगस्त 2023 में, उच्च न्यायालय ने नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग से कहा कि यदि कोई अवैधता पाई जाती है, तो वह उचित कार्रवाई करे.

और 2018 में, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने आरोप लगाया कि ईशा फाउंडेशन ने हिल एरिया कॉन्ज़र्वेशन अथॉरिटी (HACA) से आवश्यक पूर्व स्वीकृति के बिना, बूलुवापट्टी रिजर्व वन रेंज में एक एलिफैंट कॉरीडोर का निर्माण कार्य किया.

जवाब में, जग्गी के नेतृत्व वाले गैर-लाभकारी संगठन ने CAG पर ‘तथ्यों की अनदेखी’ करने का आरोप लगाया. इसने कहा कि न तो तमिलनाडु वन विभाग और न ही पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अपने-अपने जवाबी हलफनामों में कहा कि ईशा फाउंडेशन “एलिफैंट कॉरीडोर में है”.

इसने कई ब्लॉग पोस्ट में दोहराया, “हाथी संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले प्रख्यात वैज्ञानिकों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि ईशा फाउंडेशन हाथी गलियारे के करीब भी नहीं है.”

टिप्पणी के लिए पूछे जाने पर ईशा योग केंद्र के प्रवक्ता ने दिप्रिंट से कहा कि अवैध निर्माण के किसी भी आरोप में कोई सच्चाई नहीं है, उन्होंने कहा, “हमारे पास सभी आवश्यक अनुमोदन और मंजूरी है.”

प्रवक्ता ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) द्वारा आरटीआई के जवाब का भी हवाला दिया, जिसमें “तमिलनाडु में एलिफैंट कॉरीडोर की सूची में ईशा या ईशा के आस-पास के किसी भी क्षेत्र का उल्लेख नहीं है”.

ईशा फाउंडेशन की ग्रीन इनीशिएटिव

अपनी ओर से, ईशा फाउंडेशन ने पर्यावरण जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए पिछले कुछ वर्षों में कई पहल की हैं.

इसने 2004 में अपनी पहली ऐसी बड़ी पहल- प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स – शुरू की. इसका उद्देश्य कृषि वानिकी को बढ़ावा देना और राज्य भर के स्कूलों और कॉलेजों में पौध नर्सरी स्थापित करना था. ईशा फाउंडेशन के एक बयान के अनुसार, 2017 तक इस पहल के तहत 2 मिलियन से अधिक स्वयंसेवकों ने 17 मिलियन से अधिक पौधे लगाए थे.

बाद में, 2017 में, ईशा फाउंडेशन ने देश भर में नदी के किनारों पर पौधे लगाकर समाप्त हो रही नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए अपने ‘रैली फॉर रीवर’ अभियान की शुरुआत की. ईशा फाउंडेशन ने केंद्र सरकार को एक मसौदा नीति अनुशंसा (डीपीआर) भी सौंपी.

केंद्र ने डीपीआर पर ध्यान दिया और अप्रैल 2022 में घोषणा की कि वह 19,342.62 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 13 प्रमुख नदियों का कायाकल्प करेगा. तत्कालीन केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र शेखावत ने “सिफारिशों” के लिए जग्गी को धन्यवाद दिया था.

शेखावत ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, “पारिस्थितिकी के प्रति आपकी दृष्टि, मार्गदर्शन और समावेशी दृष्टिकोण एक प्रेरणा है.”

2019 में, ईशा फाउंडेशन ने ‘कावेरी कॉलिंग’ के बैनर तले एक और पहल शुरू की, जिसका उद्देश्य “कृषि वानिकी को अपनाकर कावेरी बेसिन में 242 करोड़ पेड़ लगाने में किसानों का समर्थन करना” था. ईशा फाउंडेशन के अनुसार, इस पहल के तहत अब तक 10 करोड़ से ज़्यादा पेड़ लगाए जा चुके हैं, जिसमें 2023-24 में 2 करोड़ पेड़ लगाना शामिल है.

‘कावेरी कॉलिंग’ पहल तब विवादों में घिर गई जब सितंबर 2019 में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य की तत्कालीन भाजपा सरकार को इस पहल का समर्थन करने के लिए नोटिस जारी किया.

अपनी याचिका में अधिवक्ता ए.वी. अमरनाथन ने ईशा फाउंडेशन को वृक्षारोपण के लिए ‘डोनेशन लेना’ बंद करने का निर्देश देने की भी मांग की. उन्होंने पूछा कि एक निजी संगठन को सरकारी या राज्य के स्वामित्व वाली भूमि पर काम करने के लिए पैसे मांगने की अनुमति कैसे दी जा सकती है.

हालांकि, उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी.

यह पूछे जाने पर कि भक्ति और आध्यात्मिकता का पर्यावरण से क्या संबंध है, ईशा फाउंडेशन के प्रवक्ता ने पहले उद्धृत किया, “हम एक गरीब किसान से योग और ध्यान करने के लिए नहीं कह सकते, जब उसके पास जीवित रहने के लिए ताजी हवा, पानी और भोजन नहीं है. यह प्रक्रिया का हिस्सा है.”

जग्गी और राजनीति

ईशा फाउंडेशन का चेहरा जग्गी ने कई मौकों पर अपनी टिप्पणियों से राजनीतिक विवाद खड़ा किया है. 2021 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले उन्होंने ‘मंदिरों को मुक्त करने’ का आह्वान किया था.

उन्होंने 2021 में एक्स पर एक पोस्ट में लिखा था, “तमिलनाडु में धीरे-धीरे बर्बाद हो रहे हजारों मंदिरों की रक्षा के लिए, तमिलनाडु सरकार को मंदिरों को सरकारी चंगुल से मुक्त कर भक्तों को सौंप देना चाहिए.” उन्होंने तत्कालीन सीएम एडप्पादि के. पलानीस्वामी, तत्कालीन एलओपी एम.के. स्टालिन और अभिनेता रजनीकांत को टैग किया था.

यह डीएमके के रुख के बिल्कुल उलट था, जिसने चुनावों के बाद सरकार बनाई और मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण की वकालत की. मई 2021 में, तत्कालीन राज्य मंत्री डॉ. पी. थियागा राजन ने द हिंदू को दिए एक साक्षात्कार में जग्गी को “प्रचार का भूखा व्यक्ति” कहा था जो ‘अधिक पैसा कमाने के लिए दूसरा रास्ता तलाश रहा है’.

इस मुद्दे पर जग्गी के साथ द्रविड़ पार्टियों के मतभेद पर, डीएमके प्रवक्ता टी.के.एस. एलंगोवन ने दिप्रिंट से कहा, “कलैगनार (एम. करुणानिधि) ने कहा कि मंदिरों को गलत लोगों की शरणस्थली नहीं बनना चाहिए. हमारे किसी भी नेता ने नहीं कहा कि कोई मंदिर नहीं होना चाहिए. केवल अगर यह सरकार द्वारा शासित होगा, तो कोई भ्रष्टाचार नहीं होगा.”

हालांकि, तमिलनाडु भाजपा के उपाध्यक्ष नारायणन तिरुपति ने आरोप लगाया कि डीएमके ईशा योग केंद्र को सिर्फ इसलिए निशाना बना रही है क्योंकि जग्गी के नेतृत्व वाला यह गैर-लाभकारी संगठन हिंदू संस्कृति को बढ़ावा देता है. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “सरकार को कभी भी धार्मिक प्रमुखों या हिंदू संस्कृति से जुड़े धार्मिक स्थलों को निशाना बनाने के बारे में नहीं सोचना चाहिए.

सरकार को ऐसी प्रथाओं में शामिल होने से बचना चाहिए जो धार्मिक स्थलों को खतरे में डालती हैं.” जग्गी की ‘मंदिरों को मुक्त करने’ की अपील का जिक्र करते हुए तिरुपति ने कहा कि भाजपा 40 साल से यही बात कह रही है. “अगर सरकार मंदिरों से बाहर निकल जाएगी, तभी भ्रष्टाचार रुकेगा.”

दूसरी ओर, एलंगोवन ने कहा कि जब तक ईशा फाउंडेशन कानून के अनुसार काम करता है, तब तक डीएमके का उसके खिलाफ कोई विरोध नहीं है.

जग्गी और भाजपा अक्सर एक ही तरह की बात करते हुए पाए जाते हैं. उन्होंने 2019 के ‘सर्जिकल स्ट्राइक’, जीएसटी के कार्यान्वयन और नागरिकता संशोधन अधिनियम के पारित होने का सार्वजनिक रूप से समर्थन किया. उन्होंने अतीत में गोहत्या पर पूर्ण राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध लगाने की भी अपील की है.

इस बारे में पूछे जाने पर ईशा फाउंडेशन के प्रवक्ता ने भाजपा के साथ किसी भी वैचारिक गठबंधन से इनकार किया.

“यह (ईशा योग केंद्र) भाजपा, कांग्रेस, डीएमके और सभी राजनीतिक दलों के नेताओं सहित सभी लोगों के लिए एक जगह है. लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ईशा फाउंडेशन में आदियोगी प्रतिमा का उद्घाटन करने के बाद ही हमें यह रंग दिया गया है.

प्रवक्ता ने दिप्रिंट से कहा, “तब से हम मंत्रियों को भी किसी कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं कर रहे हैं, क्योंकि इससे हमें राजनीतिक रंग मिल रहा है. लेकिन, एक अनुयायी के तौर पर, केंद्र और हमारे आश्रम में सभी का स्वागत है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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