नई दिल्ली: सस्ता टेस्टिंग किट, हैंड सैनिटाइज़र, पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) बनाने से लेकर क्वारंटाइन का उल्लंघन करने वालों के लिए एप बनाने और वेंटिलेटर की कमी से जूझ रहे देश के लिए सस्ते वेंटिलेटर बनाने का प्रस्ताव देने तक, कोविड- 19 के ख़िलाफ़ जंग में भारत को बेहतर स्थिति में पहुंचाने के लिए देश भर के आईआईटी अपनी जी जान लगा रहे हैं.
तेज़ी से बढ़ते कोविड- 19 के प्रसार ने दुनिया भर की स्वास्थ्य व्यवस्था के सामने गंभीर चुनौतियां पेश की हैं. आईआईटी से ये आइडिया और इनोवेशन तब आ रहे हैं जब कोविड- 19 देश मे तेज़ी से पैर पसार रहा है. सोमवार को देश में इसके सबसे ज़्यादा 227 मामले सामने आए. मंगलवार की दोपहर तक देश भर में इससे 32 मौतें हुई हैं.
महामारी के बीच देश भर के डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों नेे शिकायत की है कि तेज़ी से बढ़ते मरीज़ों की संख्या को संभालने के लिए ना तो ज़रूरी पहनावे की चीज़ें हैं और ना ही इंफ्रास्ट्रक्चर. हालांकि, सरकार ने इस कमी को पूरा करने का दृढ़ निश्चय दिखाया है फिर भी भारत के सबसे बेहतरीन इंजीनियर अपने हिस्से का फर्ज़ निभा रहे हैं.
इसी के लिए आईआईटी दिल्ली से रिसर्चरों ने टेस्टिंग किट बनाया है जिसके बारे में उनका दावा है कि ये सस्ता पड़ेगा. रुढ़की के उनके साथियों ने 150 लीटर हैंड सैनिटाइज़र बनाया है जिसे कैंपस में मुफ्त में बांटा जा रहा है. आईआईटी गुवाहाटी में कोशिश चल रही है कि दवा/खाना एक जगह से दूसरे जगह ले जाने वाले रोबोटिक यूनिट तैयारी की जा सके. इसके आइसोलेशन वॉर्ड में तैनात करने का प्लान है ताकि स्वास्थ्य कर्मियों को कोविड- 19 से बचाया जा सके.
अभी तक आईआईटी वालों ने क्या-क्या किया
सस्ता टेस्टिंग किट
आईआईटी दिल्ली के रिसर्चरों ने एक टेस्टिंग किट बनाया है जिससे कोविड- 19 के इलाज के ख़र्च में कमी आने की संभावना है. कुसुम स्कूल ऑफ़ बायोलॉजिकल साइंस में विकसित किया गया ये किट लैबोरेट्री स्टेज पर सफल रहा है. अब पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरॉलजी (एनआईवी) में इसका क्लिनिकल ट्रायल चल रहा है. सरकार ने एनआईवी को नए टेस्टिंग इनोवेशन को हरी झंडी देने को कहा है.
इसे विकसित करने वाली टीम का कहना है कि एक बार इसका क्लिनिकल ट्रायल पूरा हो जाने पर टेस्ट के सस्ते और ज़्यादा लोगों के लिए मौजूद होने की संभावना है. हालांकि, उन्होंने फिलहाल कीमत के अंतर पर कुछ कहने से मना कर दिया है. सरकार ने कोविड- 19 टेस्ट की कीमत 4,500 रुपए तय की है.
आईआईटी गुवाहाटी बना रहा जीवन बचाने वाले उपकरण और रोबोट
आईआईटी-गुवाहाटी ने गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल (जीएमसीएच) को जीवन रक्षण उपककरण दिए हैं. इनमें कोविड- 19 के लिए दो रियल टाइम पीसीआर (पॉलीमरस चेन रिएक्शन) मशीन (डीएनए सैंपल एनेलाइज़र) शामिल हैं. इन मशीनों से 24 घंटे में 2,000 सैंपल का विश्लेषण किया जा सकता है. संस्थान के बायोसाइंस और बायोइंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में कोविड- 19 के लिए वैक्सीन बनाने के प्रयास भी जारी हैं.
इसके अलावा डिपार्टमेंट ऑफ़ मैकेनिकल इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रॉनिक एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग आइसोलेशन वॉर्ड तक रोबोट के जरिए दवा/खाना पहुंचाने की तकनीक पर काम कर रहे हैं. यहां रोबोटिक स्क्रीनिंग का काम भी जारी है.
शरीर का तापमान लेने के लिए हाथ में पकड़े जाने वाले यूनिट, आईसीयू बेड, वेंटिलेटर, आइसोलेशन वॉर्ड के लिए मेडिकल वेस्ट डिस्पोज़ल, डिसइंफेकटेंट शावर, हैंडल सैनिटाइज़र और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डल्ब्यूएचओ) द्वारा बीमारी रोकने के लिए जिस मास्क को हरी झंडी दी गई है उस पर भी काम चल रहा है. डिपार्टमेंट ऑफ़ केमिस्ट्री एंड बायोसाइंस एंड बायोइंजीनियरिंग प्रोटेक्टिव गियर का ऐसा प्रोटोटाइप तैयार कर रहे हैं जिसमें एंटी वायरस और सुपर डाइड्रोलिक कोटिंग भी होगी.
डिपार्टमेंट ऑफ़ डिज़ाईन ने फुल फेस शील्ड के प्रोटोटाइप का थ्री डी प्रिंट विकसित किया है जिसमें हेड गियर भी शामिल है. इसे विकसित करने वालों का कहना है कि इसे तेज़ी से बनाया जा सकता है. संस्थान कोविड- 19 के विश्लेषण के लिए रिसर्च सेंटर बनाने का भी प्लान कर रहा है. आईआईटी गुवाहाटी के निदेशक प्रोफेसर टीजी सितारमण ने कहा, ‘हम पूरे पूर्वोत्तर के लिए स्टेट ऑफ़ द आर्ट फैसिलिट बनाने का विचार कर रहे हैं. ये केंद्र भविष्य में बेहद सक्षम लोग देगा जो फैलने वाली किसी बीमारी को शुरू में फैलने से रोकने और ऐसी कई बीमारियों का इलाज करने में सक्षम होगा.’
यहां के छात्रों ने ऐसे ड्रोन भी विकसित किए हैं जिससे लोगों को ख़तरे में डाले बगैर डिसइंफेकटेंट का छिड़काव किया जा सके. देश के अन्य हिस्सों में ऐसा पहले से किया जा रहा है. छात्रों का कहना है कि ड्रोन का इस्तेमाल निगरानी के लिए भी किया जा सकता है. छात्रों ने असम के वित्त मंत्री हेमंत बिस्वा सर्मा को लिखा है कि वो सरकार को ड्रोन देने को तैयार हैं.
छात्रों का कहना है कि अभी उनके पास ड्रोन के सात मॉडल मौजूद हैं जिनकी क्षमता 10 से 25 लीटर के बीच है. इन ड्रोन्स को विकसित करने में शामिल एक छात्र अनिल मित्तल ने कहा कि अप्रैल के अंत तक ये लोग 50 ऐसे ड्रोन्स तैयार कर सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘अभी के समय में सोशल डिस्टेंसिंग बहुत ज़रूरी है और हम इन ड्रोन्स का इस्तेमाल करके सफ़ाई कर्मियों को शामिल किए बैगर बेहद अहम काम कर सकते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘ये ड्रोन्स पार्क, रोड, हाईवे और फुटपाथ जैसे बड़े इलाकों में डिसइंफेक्टेंट छिड़कने में सक्षम हैं.’
रुढ़की के दो छात्रों ने बनाया हर्बल सैनिटाइज़र
आईआईटी- रुढ़की के छात्र सिद्धार्थ शर्मा और वैभव जैन ने 150 लीटर से ज़्यादा हर्बल हैंड सैनिटाइज़र बनाया है. कोविड- 19 को रोकने में अपनी साफ़-सफ़ाई और हाथ धोने को बेहद अहम माना गया है और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सैनिटाइज़र को बिल्कुल पास रखने को कहा है ताकि उसके इस्तेमाल से बीमारी कम से कम फ़ैले.
इस हर्बल हैंड सैनिटाइज़र को बनाने में उन बातों का पालन किया गया है जो डब्ल्यूएचओ और सेंटर फ़ॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने बताई हैं. सीडीसी अमेरिकी सरकार का स्वास्थ्य से जुड़ा रिसर्च इंस्टीट्यूट है. हर्बल सैनिटाइज़र को आईआईटी-रुढ़की में मुफ़्त में बांटा जा रहा है.
सेंटर ऑफ़ नैनोटेक्नॉलजी के रिसर्च स्कॉलर शर्मा ने कहा, ‘कोविड- 19 माहमारी को ध्यान में रखते हुए, ये बहुत अहम है कि लोग अपनी साफ़ सफ़ाई का काफ़ी ध्यान रखें क्योंकि अभी इसका कोई इलाज नहीं है. आईआईटी रुढ़की द्वारा बनाया गया ये प्रोडक्ट पूरी समुदाय के लिए अच्छा होगा और साफ़ सफ़ाई को आगे बढ़ाएगा.’
सैनिटाइज़र की बोलतें ऑफ़िस ऑफ़ डीन फ़ॉर स्पॉनसर्ड रीसर्च एंड इंस्ट्रीयल कंसल्टेंसी (एसआरआईसी) के आफ़िस को भी दी गई हैं. इनका ऑफ़िस कैंपस में सैनिटाइज़र बाटंने के नोडल ऑफ़िस की तरह काम कर रहा है.
खड़गपुर ने सैनिटाइज़र और जागरुकता फ़ैलाने वाला वीडियो बनाया
आईआईटी- खड़गपुर के छात्रों ने 12 क्षेत्रीय भाषाओं में वीडियो बनाए हैं. ये भाषाएं असमिया, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, मलयालम, मराठी, ओडिया, पंजाबी, तमिल और तेलुगु है. वीडियो के जरिए कोविड- 19 को लेकर जागरुकता फ़ैलाने का काम किया जा रहा है. यहां से रिसर्चर्स ने एल्कोहल आधारित अलग-अलग तरह के हैंड सानिटाइज़र बनाए हैं.
आईआईटी हैदराबाद ने सस्ते वेंटिलेटर की पेशकश की है
आईआईटी- हैदराबाद के निदेशक प्रोफेसर बीएस मूर्ति ने मोदी सरकार को सलाह दी है कि ‘बैग वॉल्व मास्क’ के इस्तेमाल के बारे में सोचा जाए. ये एक मौजूदा तकनीक है जो की महंगी भी नहीं है और बनाने में भी आसान है. अगर वेंटिलेटर की मांग बढ़ती है तो ये तकनीक काम आ सकती है.
कोविड- 19 के गहरे प्रभाव की स्थिति में मरीज़ को हॉस्पिटल में दाख़िल करना पड़ता है और उसे वेंटिलेटर की ज़रूरत पड़ती है क्योंकि इस बीमारी में सांस लेने में दिक्कत की बात सामने आई है.
बैग वॉल्व मास्क का आकार छोटा होता है, इसे हाथ में पकड़कर इस्तेमाल कर सकते हैं और इसकी हवा भी ख़ुद निकाली जा सकती है. आपातकालीन स्थिति में ये मरीज़ को सांस लेने में सहायता देने के काम आता है. संस्था ने कहा इस उत्पाद के लिए कई डिज़ाइनों का प्रस्ताव दिया गया है जिनमें से एक आईआईटी हैदराबाद ने दिया है.
प्रेस को दिए गए एक बयान में संस्थान ने कहा, ‘बिजली से चलने वालेे ऐसे ही डिवाइस को बनाना आसान होगा. इसमें करंट डालने के लिए कार की बैट्री का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. ऐसे में इसके लिए बिजली की ज़रूरत नहीं होगी. इसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाने लायक बनाया जा सकता है जिसका फ़ायदा ये होगा कि इन्हें ऐसे ग्रामीण इलाकों मेें भी इस्तेमाल किया जा सकेगा जहां बिजली की दिक्कत है और ये उतना मंहगा भी नहीं होगा.’
आईआईटी- हैदराबाद के डिपार्टमेंट ऑफ़ मैकेनिकल एंड एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रोफेसर मूर्ति और प्रोफेसर वी ईश्वरन ने एक बयान में कहा कि इस उपकरण को 5000 से कम की लागत में बनाया जा सकता है या ‘जो आम मशीन है उसकी तुलना में 100 गुणा कम कीमत में बनाया जा सकता है.’
उन्होंने कहा, ‘ऐसे 60 लाख़ डिवाइस बनाने की कीमत आम तौर पर इस्तेमाल होने वाली 60,000 मशीनों से कम होगी. कीमत इतनी कम है कि इसके एक बार इस्तेमाल किए जाने वाले डिवाइस के तौर पर भी देखा जा सकता है… हालांकि इसका निर्माण औद्योगिक स्तर पर कुछ महीनों के समय में लाख़ों में करना होगा.’
प्रोफेसर ने कहा कि ये आइडिया नया नहीं है. उन्होंने कहा कि बीते कुछ हफ्तों में कई देश सस्ते वेंटिलेटर बनाने के आइडिया के साथ आगे आए हैं. ऐसे प्रतिस्पर्धाओं का भी आयोजन हुआ जिसमें जीतने वाले के डिज़ाइन को ओपन सोर्स घोषित कर दिया जाएगा. इसका पेटेंट नहीं होगा और इसे कोई भी इस्तेमाल कर सकेगा. प्रोफेसर के मुताबिक थ्री डी प्रिंटर के सहारे कई डिज़ाइन बनाए जा सकते हैं.
आईआईटी बॉम्बे ने बनाया ट्रैकिंग एप
आईआईटी बॉम्बे के छात्रों ने ‘कोरोनाटीन’ नाम का एक एप बनाया है जिससे क्वारेंटीन का उल्लंघन करने वालों के बारे में एप के जरिए प्रशासन के पास जानकारी चली जाएगी. जिसे भी कोरोना होने की आशंका है उसके बारे में एप में जानकारी डालकर उसका रिजस्ट्रेशन किया जा सकता है. अगर रजिस्टर्ड व्यक्ति क्वारेंटीन के नियमों का उल्लंघन करता है तो प्रशासन को एसएमएस या ई-मेल के ज़रिए इसकी जानकारी मिल जाएगी.
(संवाददाता तरुण कृष्णा के इनपुट के साथ)