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Friday, 22 November, 2024
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कॉमनवेल्थ गेम्स: चाय-पान की दुकान से बर्मिंघम में रजत पदक जीतने तक, जानें संकेत सरगर का संघर्ष

सुबह साढ़े 5 बजे उठकर ग्राहकों के लिये चाय बनाने के बाद ट्रेनिंग, फिर पढ़ाई और शाम को फिर दुकान से फारिग होकर व्यायामशाला जाना, करीब सात साल तक संकेत की यही दिनचर्या हुआ करती थी.

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नई दिल्ली: महाराष्ट्र के सांगली शहर में एक छोटी सी पान की टपरी (दुकान) से लेकर बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीतने तक भारोत्तोलक संकेत महादेव सरगर जुझारूपन की ऐसी मिसाल हैं, जिन्होंने साबित कर दिया कि जहां चाह होती है, वहां राह बन ही जाती है.

सुबह साढ़े 5 बजे उठकर ग्राहकों के लिये चाय बनाने के बाद ट्रेनिंग, फिर पढ़ाई और शाम को फिर दुकान से फारिग होकर व्यायामशाला जाना, करीब सात साल तक संकेत की यही दिनचर्या हुआ करती थी.

संकेत सरगर ने 22वें राष्ट्रमंडल खेलों में पुरुषों की 55 किलोग्राम भारोत्तोलन स्पर्धा में 248 किलोग्राम वजन उठाकर रजत पदक जीता. वह स्वर्ण पदक से महज एक किलोग्राम से चूक गए, क्योंकि क्लीन एंड जर्क वर्ग में दूसरे प्रयास के दौरान चोटिल हो गए थे.

उनके बचपन के कोच मयूर सिंहासने ने सांगली से ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में कहा, ‘संकेत ने अपना पूरा बचपन कुर्बान कर दिया. सुबह साढ़े पांच बजे उठकर चाय बनाने से रात को व्यायामशाला में अभ्यास तक उसने एक ही सपना देखा था कि भारोत्तोलन में देश का नाम रोशन करे और अपने परिवार को अच्छा जीवन दे. अब उसका सपना सच हो रहा है.’

सांगली की जिस ‘दिग्विजय व्यायामशाला’ में संकेत ने भारोत्तोलन का ककहरा सीखा था, उसके छात्रों और उनके माता-पिता ने बड़ी स्क्रीन पर संकेत की प्रतिस्पर्धा देखी. यह पदक जीतकर संकेत निर्धन परिवारों से आने वाले कई बच्चों के लिये प्रेरणास्रोत बन गए.

सिंहासने ने कहा, ‘उसके पास टॉप्स में शामिल होने से पहले ना तो कोई प्रायोजक था और ना ही आर्थिक रूप से वह संपन्न था. उसके पिता उधार लेकर उसके खेल का खर्च उठाते और हम उसकी खुराक और अभ्यास का पूरा खयाल रखते. कभी उसके पिता हमें पैसे दे पाते, तो कभी नहीं, लेकिन हमने संकेत के प्रशिक्षण में कभी इसे बाधा नहीं बनने दिया.’

उन्होंने कहा, ‘मेरे पिता नाना सिंहासने ने 2013 से 2015 तक उसे ट्रेनिंग दी और 2017 से 2021 तक मैंने राष्ट्रमंडल खेल 2022 को लक्ष्य करके ही उसे ट्रेनिंग दी. मुझे पता था कि वह इसमें पदक जरूर जीत सकता है. हमारे यहां गरीब घरों के प्रतिभाशाली बच्चे ही आते हैं और उनमें भी वह विलक्षण प्रतिभाशाली था.’

खुद भारोत्तोलक बनने की ख्वाहिश पूरी नहीं कर सके संकेत के पिता महादेव सरगर का कहना है कि उनके जीवन के सारे संघर्ष आज सफल हो गए.

उन्होंने सांगली से से बातचीत में कहा, ‘मैं खुद खेलना चाहता था, लेकिन आर्थिक परेशानियों के कारण मेरा सपना अधूरा रह गया. मेरे बेटे ने आज मेरे सारे संघर्षों को सफल कर दिया. बस अब पेरिस ओलंपिक पर नजरें हैं.’

संकेत की छोटी बहन काजल सरगर ने भी इस साल खेलो इंडिया युवा खेलों में महिलाओं के 40 किलोग्राम वर्ग में स्वर्ण पदक जीता था .

फरवरी 2021 में एनआईएस पटियाला जाने वाले संकेत ने भुवनेश्वर में इस साल राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में भी स्वर्ण पदक अपने नाम किया था.


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