प्लास्टिक व्यवसायी से हीरा बिजनेस के उत्तराधिकारी तक- जैन भिक्षु और नन जिन्होंने ये सब छोड़ दिया
मठवासी जीवन में नंगे पैर चलना, दिन में एक बार भोजन करना और बिजली और आधुनिक तकनीक से दूर रहना शामिल है. जिसका मकसद पुनर्जन्म के अंतहीन चक्र से मोक्ष पाना है.
सूरत/गिरनार/सोमनाथ/अहमदाबाद (गुजरात) : जैन धर्म में बाल दीक्षा की एक सदियों पुरानी प्रथा है, जिसके तहत कभी-कभी 8 वर्ष से कम उम्र के बच्चे -पुनर्जन्म के अंतहीन चक्र से मोक्ष पाने के लिए आध्यात्मिक लक्ष्य की खोज में, भौतिक संसार को पीछे छोड़कर भिक्षु या नन बन जाते हैं.
मठवासी जीवन में नंगे पैर चलना, दिन में एक बार भोजन करना और बिजली और आधुनिक तकनीक से दूर रहना शामिल है.
प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, जैन समुदाय के ज्यादातर लोग संपन्न परिवारों से ताल्लुक रखते हैं. इसलिए, जब उनके बच्चे भौतिक दुनिया त्यागते हैं, तो इसका आमतौर पर मतलब सुरक्षित पारिवारिक उद्यमों को पीछे छोड़ना होता है. सूरत के ज्यादातर युवा जैन भिक्षुओं और भिक्षुणियों के जीवन के अतीत की एक रोचक कहानी है, क्योंकि अक्सर इसका मतलब हीरा व्यवसाय से दूर हो जाना होता है.
दिप्रिंट के नेशनल फोटो एडिटर प्रवीण जैन ने मठवासी जीवन को नजदीक से जानने के लिए, कुछ जैन साधुओं और साध्वियों को फॉलो किया, जिनमें से ज्यादातर सूरत के हीरा व्यापारी परिवारों से थे. उन्होंने जैन बच्चों के जीवन पर भी नज़र रखी, जो यह जांचे जाने के लिए ट्रेनिंग ले रहे हैं कि क्या वे भविष्य में संन्यास लेने के लायक हैं.