पटना: सत्ता के गलियारे में एक आईएएस अधिकारी का डंका बज रहा है. अतिरिक्त मुख्य सचिव (शिक्षा) के.के. पाठक ने पिछले महीने शिक्षा मंत्री चन्द्रशेखर के निजी सचिव को विभाग में प्रवेश करने से रोक दिया था. मंत्री कुछ नहीं कर सके और 1990 बैच के बिहार कैडर के अधिकारी को आखिरी बार हंसी आई क्योंकि पिछले हफ्ते नीतीश कुमार सरकार ने एक आदेश जारी किया था कि मंत्रियों के निजी सहायकों को किसी भी आधिकारिक काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.
इसके बाद पाठक ने स्कूल और कॉलेज के घंटों के दौरान कोचिंग कक्षाओं पर प्रतिबंध लगा दिया. इसके बाद कॉलेज के शिक्षकों को एक दैनिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश आया कि उन्होंने अपनी कक्षाओं में क्या पढ़ाया और कितने छात्र उपस्थित हुए. ताज़ा मामला स्कूलों की 12 त्योहारी छुट्टियों में कटौती का है.
फिर भी, यह पहली बार नहीं है जब पाठक चर्चा में हैं. 1990 के दशक के मध्य में बाढ़ उप-विभागीय अधिकारी (एसडीओ) के रूप में वे बख्तियारपुर में राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पैतृक घर पर बुलडोजर चलाने वाले थे. उस दौरान नीतीश ने अपनी समता पार्टी बनाई थी और लालू विरोधी लड़ाई तेज़ कर दी थी.
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के एक वरिष्ठ नेता ने उस समय मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव से संपर्क किया और कहा कि नीतीश के पैतृक घर पर बुलडोजर चलाने से जनता में गलत संदेश जाएगा. इससे पहले कि वे नीतीश के घर पहुंच पाते, लालू ने पाठक का तबादला करा दिया.
राजद के वरिष्ठ नेता ने याद करते हुए कहा, “लालूजी ने मुझसे कहा था कि अगर कोई अन्य अधिकारी होता, तो वो फोन कर देता और ध्वस्त करने का काम रुकवा देता, लेकिन पाठक नहीं सुनेंगे.” अब, यह पता चला है कि जब भी नीतीश को कोई काम करवाना होता है तो वे पाठक के पास ही जाते हैं.
दिप्रिंट ने फोन कॉल के जरिए पाठक से टिप्पणी के लिए संपर्क किया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. उनसे प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
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जब एक मंत्री को पीछे हटना पड़ा
स्कूल के घंटों के दौरान कोचिंग कक्षाओं पर प्रतिबंध लगाने से लेकर, अनुपस्थित पाए गए शिक्षकों के वेतन में कटौती करने और शिक्षा विभाग के अधिकारियों को न केवल स्कूलों में निरीक्षण करने, बल्कि छात्रों को पढ़ाने के लिए भी कहने से लेकर पाठक के आदेश काफी हलचल पैदा कर रहे हैं.
कहा जाता है कि पाठक के शिक्षा विभाग में शामिल होने के तुरंत बाद, चंद्रशेखर ने अपने निजी सहायक (पीए) से पाठक को बफ शीट पर यह लिखने के लिए कहा था कि जिस तरह से विभाग के भीतर आतंक का माहौल बनाया जा रहा है, मंत्री उसे अस्वीकार करते हैं.
ऐसा पता चला है कि पाठक ने पीए को विभाग में प्रवेश करने से रोक दिया और चंद्रशेखर को लालू या नीतीश से समर्थन नहीं मिला. राजद सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि विवाद से नाराज़ होकर 23 दिनों तक कार्यालय से दूर रहने के बाद, मंत्री काम पर वापस आ गए थे, जब लालू ने उनसे कहा था कि उन्हें हटाया जा सकता है.
जब एक कांग्रेस विधायक को होना पड़ा ‘अंडरग्राऊंड’
जब नीतीश कुमार ने 2016 में शराब पर प्रतिबंध लगाया, तो उन्होंने के.के. पाठक को एक्साइज़ विभाग का प्रमुख बनाया. पाठक ने नियम बनाए, जिन्हें कुछ लोगों ने “कठोर” करार दिया. बिहार सरकार ने 2022 में विधानसभा को सूचित किया था कि शराब विरोधी कानून का उल्लंघन करने के बाद से लगभग 6.5 लाख लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
एक वरिष्ठ सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ने याद किया, “वह इतने उत्साही थे कि उन्होंने शराब कानूनों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों को पकड़ने के लिए दिल्ली के बिहार भवन में सीसीटीवी लगाने का भी प्रस्ताव रखा. मुझे उन्हें यह विश्वास दिलाना पड़ा कि बिहार के कानून दिल्ली में लागू नहीं होंगे.”
एक्साइज़ विभाग में अपने कार्यकाल के दौरान वे कांग्रेस विधायक विनय वर्मा के पीछे पड़ गए, जिन्हें 2016 में राज्य में शराबबंदी के बावजूद एक स्टिंग ऑपरेशन वीडियो में कथित तौर पर शराब की पेशकश करते देखा गया था.
एक्साइज़ विभाग ने कथित तौर पर वर्मा, जो नरकटियागंज से विधायक थे, के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज कीं. कांग्रेस 2016 में सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा थी, लेकिन वर्मा को कथित तौर पर गिरफ्तारी से बचने के लिए अंडरग्राऊंड होना पड़ा, जब तक कि उन्हें अदालत से ज़मानत नहीं मिल गई.
जब पाठक ने अस्पताल के एक वार्ड का उद्घाटन एक सफाईकर्मी से करवाया
2005 में जब पाठक गोपालगंज के जिला मजिस्ट्रेट थे, तब लालू के बहनोई साधु यादव सांसद थे. साधु चाहते थे कि उनकी बहन, तत्कालीन सीएम राबड़ी देवी एक स्थानीय अस्पताल के बच्चों के वार्ड का उद्घाटन करें, लेकिन जब तारीखें तय नहीं हुईं तो पाठक ने अस्पताल के एक सफाई कर्मचारी से वार्ड का उद्घाटन करवा दिया, जिससे साधु नाराज़ हो गए.
साधु यादव ने दिप्रिंट को बताया, “लेकिन अब मुझे एहसास हुआ कि पाठकजी ने सही काम किया. वार्ड तैयार हो चुका था और बेकार पड़ा हुआ था.”
1990 में जब पाठक गिरिडीह (अब झारखंड में) के डिप्टी कमिश्नर थे, तब उन पर एक पत्रकार की पिटाई का आरोप लगा था. 2019 में जब वे लघु सिंचाई विभाग के सचिव थे, तब एक निजी कंपनी के मालिक ने उन पर गाली-गलौज करने और मारपीट करने का आरोप लगाया था.
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‘अनियमित व्यवहार लेकिन, काम पूरा’
इस साल फरवरी में एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें पाठक को राज्य सरकार के एक अधिकारी को गाली देते हुए दिखाया गया था. बिहार प्रशासनिक सेवा संघ (बीएएसए) ने उनकी बर्खास्तगी की मांग करते हुए उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. एक सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी ने पाठक के अनियमित व्यवहार को अस्वीकार करते हुए कहा, “पाठक के कार्यकाल के दौरान एक विशेषता (सुनी) गई थी कि वह राजनेताओं और अधिकारियों के बीच अलोकप्रिय हैं, लेकिन लोगों और अपने कर्मचारियों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं क्योंकि वे काम करवा देते हैं.”
एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, पटना के पूर्व निदेशक एम. दिवाकर ने दिप्रिंट को बताया कि उनके सहकर्मियों ने उन्हें पाठक के पिछले कार्यकाल के दौरान शिक्षा विभाग में उनके “अनियमित व्यवहार” को देखते हुए उनसे न मिलने की सलाह दी थी.
दिवाकर ने कहा, “लेकिन मुझे उत्सुकता हुई और मैं पाठक से उनके कार्यालय में मिला. उन्होंने मुझे संस्थान चलाने में आने वाली समस्याओं के बारे में धैर्यपूर्वक सुना. उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे उनके विभाग में आने की ज़रूरत नहीं है और उन्होंने अपना काम पूरा करने के लिए अपने कुछ कर्मचारियों को नियुक्त कर दिया. काम बिजली की गति से किया गया, पाठक एक कर्मठ व्यक्ति हैं.”
दिवाकर ने उम्मीद जताई कि पाठक को पद पर बने रहने दिया जाएगा क्योंकि “बिहार में शिक्षा को गंभीरता से सुव्यवस्थित करने की ज़रूरत है.”
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
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