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Thursday, 19 December, 2024
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कृषि कानून से हेट स्पीच तक, सरकार समर्थक और विरोधी रिटायर्ड IAS-IPS-IFS बंटे, छिड़ा है लेटर वॉर

पिछले कुछ वर्षों में पूर्व सिविल सर्वेंट्स की प्रतिद्वंदी लॉबियों ने, जिनकी कोई अधिकारिक राजनीतिक संबद्धता नहीं होती, गुट बना लिए हैं और बहुत से मुद्दों पर, सरकार के समर्थन या उसकी आलोचना में बयान जारी किए हैं.

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नई दिल्ली: दशकों तक वो कॉमरेड रहे- लेकिन अब एक दूसरे के ऊपर वैचारिक हथगोले फेंक रहे हैं. रिटायर्ड सिविल सर्वेंट्स आज बंट गए हैं, और मोदी के समर्थक और विरोधी ख़ेमे, बहुत से मोर्चों पर एक दूसरे से उलझे हुए हैं, केंद्र सरकार और चुनाव आयोग की नीतियों से लेकर, राज्यों में सांप्रदायिक नफरत फैलाने वाली घटनाओं तक.

जब एक गुट ने एक खुला पत्र लिखकर, पिछले महीने हरिद्वार की धर्म संसद में मुसलमानों के नर संहार के आह्वान की निंदा की, तो जवाब में दूसरे गुट ने ‘दोहरे मानदंडों’ के खिलाफ आवाज़ उठाई, और कहा कि हिंसा के लिए उठने वाली सभी आवाज़ों की, स्पष्ट रूप से निंदा होनी चाहिए, लेकिन एक ‘बहुरंगा गुट’ मौजूदा सरकार को बदनाम करने का अभियान चला रहा है.

वो उस लड़ाई का सिर्फ एक चरण था, जो पिछले कुछ वर्षों से चल रही है. क़लम तेज़ी से चल रहे हैं और सैकड़ों लोगों के दस्तख़त किए हुए पत्र, नियमित रूप से प्रेस में नज़र आ रहे हैं.

कुल मिलाकर, दोनों लॉबियों के कोई औपचारिक सियासी जुड़ाव नहीं हैं. लेकिन जो गुट काफी हद तक मोदी सरकार की नीतियों का आलोचक है, उसमें कुछ ऐसे लोग शामिल हैं जो कांग्रेस के प्रति सहानुभूति के लिए जाने जाते हैं, कुछ ऐसे जिन्होंने पूर्व की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के दौरान, रिटायरमेंट के बाद भी पद हासिल किए, और कुछ ऐसे जो आगे बढ़कर राजनेता ही बन गए.

दूसरा गुट, जो आमतौर से मोदी सरकार का समर्थक है, उनमें वो अधिकारी हैं जो ऐसे थिंक टैंक्स और शोध संस्थाओं से जुड़े हैं, जिनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा के प्रति झुकाव है.

ये रिटायर्ड अधिकारी अलग अलग सेवाओं से हैं- जिनमें भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस), और भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) शामिल हैं- और सक्रियता के साथ अपनी ताक़तों को व्यवस्थित करने में लगे हैं. विचारों पर चर्चा करने के लिए इन्होंने व्हाट्सएप और गूगल पर ग्रुप्स बना लिए हैं, अपने ख़ुद के ब्लॉग्स और वेबसाइट्सबना ली हैं, और ऐसा सिस्टम तैयार कर लिया है, कि इनके खुले पत्र छपने के लिए सीधे मीडिया घरानों के पास चले जाएं.

‘अति राष्ट्रवाद’ का विरोध, भारत की ‘ख़राब छवि दिखाई जा रही है’

जून 2017 में, 65 रिटायर्ड सिविल सर्वेंट्स के एक गुट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने को एक खुला पत्र लिखा, और भारत में ‘बढ़ती निरंकुशता’ और ‘बढ़ते अति राष्ट्रवाद’ को रोकने के लिए, क़दम उठाने का आग्रह किया.

वहां से ये तेज़ी से बढ़ गया- और ख़ुद को कॉन्स्टीट्यूशनल कण्डक्ट ग्रुप (सीसीजी)-स्पीकिंग ट्रुथ टु पावर कहते हुए- इसने एक समूह का आकार ले लिया और पत्र तथा बयान जारी करने शुरू कर दिए.

अपनी वेबसाइट पर उनका दावा है, कि 2018 के बाद से उन्होंने कम से कम 53 पत्र लिखे हैं. इस ग्रुप में कई सिविल सेवाओं के रिटायर्ड अधिकारी हैं, लेकिन बहुलता पूर्व आईएएस अधिकारियों की है, और अब इसमें 104 सदस्य हैं.

पत्रों में विवादास्पद कृषि क़ानून, जिन्हें पिछले साल वापस ले लिया गया, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और वोटर वेरीफ़ाइड पेपर ऑडिट ट्रेल्स (वीवीपैट) का विश्लेषण, सांसदों के कथित नफरती बोल, लिंचिंग की घटनाएं, सांप्रदायिक हिंसा, उत्तर प्रदेश में लव जिहाद, और पंजाब में ईशनिंदा क़ानून की मांग जैसे विषय कवर किए गए हैं.

इस बीच सरकार-समर्थक गुट में विभिन्न सेवाओं के उप-समूह शामिल हैं, जिनमें दो प्रमुख उप समूह रिटायर्ड आईएफएस और आईपीएस अधिकारियों के हैं. पूर्व आईएफएस अधिकारियों का समूह ख़ुद को फोरम ऑफ ऑर्मर एंबेसेडर्स ऑफ इंडिया (एफओएफएआई) कहता है.

ये ग्रुप इतने पत्र नहीं लिखते जितने सीसीजी लिखता है, लेकिन अपने पूर्व-सहकर्मियों को जवाब देते हैं, और तब लिखते हैं जब उन्हें लगता है, कि भारत की ‘अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक ख़राब छवि पेश की जा रही है’.

आगे पीछे

दोनों गुटों के बीच छाया लड़ाई तब सामने आई, जब उन्होंने राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी), राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर), और नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) पर अपने रुख़ ज़ाहिर किए.

जनवरी 2020 में, सीएए के पारित किए जाने के बाद, सीसीजी ने एक बयान जारी करते हुए कहा, कि इन उपायों की ज़रूरत नहीं है, और मंत्रियों के बयानात लोगों में भ्रम पैदा कर रहे हैं.

सीसीजी ने लिखा, ‘भारत सरकार की मंशा के बारे में जिस बात से गंभीर शंकाएं पैदा हुई हैं, वो हाल ही में भारत सरकार के मंत्रियों के बयानात हैं, जिनमें एनआरआईसी (भारतीय नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर) और सीएए को जोड़ दिया गया. 22 दिसंबर दिल्ली में एक जनसभा में प्रधानमंत्री का बयान, कि सीएए और एनआरआईसी का आपस में कोई संबंध नहीं है, विभिन्न मंचों से अलग अलग मौक़ों पर उनके गृह मंत्री की, मज़बूती के साथ कही गई बातों की काट करता नज़र आता है’.

एक महीने बाद इसका जवाब देते हुए, सिविल सर्विस अधिकारियों के एक समूह और कुछ प्रमुख नागरिकों ने, भारत के राष्ट्रपति को लिखा कि कुछ ग्रुप अपने ‘निहित स्वार्थों’ के तहत, ‘तंग किए जाने का डर’ फैला रहे हैं.

विवादास्पद कृषि क़ानूनों के मामले पर- जिनके खिलाफ किसानों ने एक साल तक आंदोलन चलाया, जब तक पिछले साल नवंबर में उन्हें वापस नहीं ले लिया गया- दिसंबर 2020 में सीसीजी ने एक खुला पत्र लिखा, जिसमें उसने कहा कि ये क़ानून ‘संविधान के संघीय चरित्र पर एक हमले’ की तरह हैं.

इसकी प्रतिक्रिया में 20 आईएफएस अधिकारियों के एक ग्रुप ने, फरवरी 2021 में विश्व व्यापार संगठन को एक खुला पत्र लिखकर, कृषि क़ानूनों का समर्थन किया.

इसी पिछले महीने, ये गुट दिसंबर में हरिद्वार में हुई धर्म संसद में, मुसलमानों के खिलाफ हुए नफरती भाषणों के मामले पर आमने-सामने आए. हस्ताक्षर कर्त्ताओं के एक गुट ने, जिसमें कुछ पूर्व सेवा प्रमुख और जज तथा सीसीजी के सदस्य शामिल थे, 31 दिसंबर को लिखे एक पत्र में ‘नरसंहार के आह्वान’ की कड़ी निंदा की.

32 आईएफएस अधिकारियों ने तब 6 जनवरी को, इसके जवाब में एक खुला पत्र लिखा.

उन्होंने लिखा, ‘हिंसा के सभी आह्वानों की उनके धार्मिक, जातिगत, वौचारिक या क्षेत्रीय मूल से ऊपर उठकर, स्पष्ट रूप से निंदा होनी चाहिए. निंदा में दोहरे मानदंड और चयनता से, नीयत और नैतिकता के बारे में सवाल खड़े होते हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘कार्यकर्त्ताओं का एक बहुरंगी ग्रुप, जिनमें कुछ ज्ञात वामपंथी हैं जिनकी माओवादियों के साथ सहानुभूति है, उनके साथ कुछ पूर्व सिविल सर्वेंट्स और सैन्य हस्तियां शामिल हो गईं हैं, जो अपने करियर में सर्वोच्च पदों पर बैठ चुके हैं, और साथ में मीडिया के कुछ वर्ग- ये सब साथ मिलकर सरकार को कलंकित करने का एक अभियान चला रहे हैं, कि उसने देश के धर्मनिर्पेक्ष चरित्र को ख़राब किया है’.

कोई संबद्धता नहीं, केवल संपर्क

सीसीजी के हर बयान की प्रस्तावना टिप्पणी में कहा जाता है, कि वो अखिल भारतीय और केंद्रीय सेवाओं के पूर्व सिविल सर्वेंट्स का एक समूह हैं, जिन्होंने अपने करियर के दौरान केंद्र तथा राज्य सरकारों के साथ काम किया है’.

उसमें आगे कहा जाता है, ‘एक समूह के नाते हम किसी राजनीतिक दल के साथ संबद्ध नहीं हैं, लेकिन हम निष्पक्षता, तटस्थता, और भारत के संविधान के प्रति प्रतिबद्धता में विश्वास रखते हैं’.

लेकिन, समूह के हस्ताक्षर कर्त्ताओं का पूर्व की यूपीए सरकार, और विपक्षी पार्टियों के साथ संबंध ज़रूर है. इनमें सामाजिक कार्यकर्त्ता, लेखक और पूर्व आईएएस अधिकारी हर्ष मंडर भी शामिल हैं, जिन्होंने सेनिया गांधी द्वारा नियुक्त किए जाने के बाद, 2010 से 2012 तक राष्ट्रीय सलाहकार परिषद में काम किया था.

जौहर सरकार, जो 2008 से 2012 तक भारत सरकार में सचिव थे, जुलाई 2021 तक इसके सदस्य थे, जिसके बाद तृणमूल कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत कर दिया. इसके बाद सरकार अधिकारिक तौर पर ग्रुप से बाहर हो गए, लेकिन इसके एक प्रमुख मूवर बने रहे.

पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन भी सीसीसीजी के एक हस्ताक्षरकर्त्ता हैं, जिन्होंने 2010 से 2014 तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की हैसियत से काम किया.

इसी तरह, सरकार-समर्थक गुट में भी कुछ ऐसे हस्ताक्षरकर्त्ता हैं, जिनके मौजूदा व्यवस्था के साथ रिश्ते हैं.

ऐसे ही एक सदस्य हैं पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल, जो विवेकानंद इंटरनेशनल फाउण्डेशन (वीआईएफ) की सलाहकार परिषद के लिए काम करते हैं, और जिनका इंडिया फाउण्डेशन के साथ अच्छा रिश्ता है.

दोनों उपरोक्त संगठन मोदी सरकार के क़रीब हैं, और ऐसा महसूस किया जाता है कि ये संघ की विचारधारा से चलते हैं. भारत के मौजूदा एनएसए अजीत डोवाल वीआईएफ के एक संस्थापक-निदेशक रहे हैं, जबकि इसके अध्यक्ष गुरुमूर्ति एक पुराने पत्रकार और आरएसएस विचारक हैं. इंडिया फाउण्डेशन एक शोध संगठन है, जिसकी गवर्निंग काउंसिल में डोवाल के बेटे शौर्य डोवाल, वरिष्ठ आरएसएस पदाधिकारी राम माधव, और बीजेपी सांसद जयंत सिन्हा, तथा स्वपन दासगुप्ता शामिल हैं.

आईएफएस ग्रुप की एक सदस्य वीणा सिकरी की शादी पूर्व राजनयिक राजीव सिकरी से हुई है, जो वीआईएफ की सलाहकार परिषद में हैं. पूर्व राजनयिक भास्वती मुखर्जी, जो आईएफएस ग्रुप में हस्ताक्षरकर्त्ता है, वीआईएफ में एक लेखक-योगदानकर्ता रही हैं, और इंडिया फाउण्डेशन के साथ जुड़ी हैं.


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एक दूसरे की आलोचना

दोनों ही पक्ष किसी भी तरह की राजनीतिक प्रतिबद्धता से इनकार करते हैं.

सीसीजी के सदस्य एक रिटायर्ड अधिकारी ने कहा, ‘सीनियर सिविल सर्विस अधिकारी होने के नाते, हम प्राधिकारियों और लोगों की तवज्जो कुछ मुद्दों की ओर आकर्षित करना चाहते हैं, जो हमारी नज़र में हमारे संवैधानिक दिशानिर्देशों का उल्लंघन नज़र आती हैं’. हमने अलग अलग विषयों पर लिखा है, और हमें किसी राजनीतिक पार्टी के सामने नंबर बनाने की ज़रूरत नहीं है, और ना ही हमें कोई पद हासिल करने की तमन्ना है.

सीसीजी पत्रों के असर के बारे में बोलते हुए रिटायर्ड अधिकारी ने कहा, ‘हमने कई मरतबा भारत के चुनाव आयोग जैसी अथॉरिटीज़ से मिलने के लिए समय मांगा. हमें लगता था कि ईवीएम और वीवीपैट से जुड़े आरोपों की, जांच और विश्लेषण किए जाने की ज़रूरत है. 2018 में हमें एक बार समय मिला था, लेकिन उसके बाद से ईसीआई को हमारे अनुरोधों और पत्रों का कोई जवाब नहीं मिला है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन हमारी वेबसाइट्स को अच्छा रेस्पॉन्स मिलता है, और लोगों को कुछ चीज़ें पता चल जाती हैं, जिन्हें हमने व्यवस्था के हिस्से के तौर पर जाना और देखा है’. वेबसाइट से पता चलता है कि उसे 1,76,961 हिट्स मिल चुके हैं.

दिप्रिंट से बात करते हुए सरकार ने कहा, ‘जब हमने इसे शुरू किया तो ताक़त के सामने सच्चाई बयान करना बहुत मुश्किल था. हमारे साथ सभी सेवाओं और सभी महत्वपूर्ण मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारी जुड़े हैं. हमारे साथ तीन पूर्व कृषि सचिव जुड़े हुए हैं- इसलिए अगर वो कृषि क़ानूनों पर कुछ कहते हैं, और इनके विपरीत प्रभावों की व्याख्या करते हैं, तो लोगों को जानना चाहिए.

‘लेकिन, अगर पत्रों में सरकार की आलोचना होती है, तो अधिकारियों को गालियां पड़ती हैं. लेकिन, आप देखेंगे कि मोदी-समर्थक ग्रुप में कुछ सदस्य हैं, जिसके आरएसएस के साथ मज़बूत रिश्ते हैं.

एक वरिष्ठ राजनयिक और आईएफएस ग्रुप की सदस्य भास्वती मुखर्जी ने कहा, ‘हम तभी लिखते हैं जब हम देखते हैं किसी की ओछी राजनीति के चलते, अंतर्राष्ट्रीय मंच पर हमारे देश की बदनामी हो रही है. हम अनाप-शनाप तरीक़े से पत्र नहीं लिखते; हम किसी कारण से ही लिखते हैं, ताकि हमारे लोग और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय किसी भी घटना को जान सकें, और उसके दूसरे पक्ष से वाक़िफ हो सकें’.

उन्होंने आगे कहा, ‘हमने हिंसा का समर्थन कभी नहीं किया- बल्कि अपने ताज़ा पत्र में हमने नफरती भाषा की निंदा की है. सरकार नफरती भाषा को कभी माफ नहीं करती. हर राजनीतिक पार्टी में कुछ किनारे पर रहने वाले तत्व होते हैं, लेकिन पूरी पार्टी या सरकार को उनके मानदंड के हिसाब से नहीं आंकना चाहिए.

‘लेकिन दूसरा ग्रुप (सीसीजी) असंतुष्ट रिटायर्ड लोगों से भरा हुआ है. वो सिर्फ सरकार और बीजेपी-शासित प्रदेश सरकारों की हर नीति की केवल आलोचना करते हैं. हमने उन्हें एक शब्द भी कहते नहीं देखा, जब बंगाल में चुनाव बाद हुई हिंसा में इतने सारे लोग मारे गए थे. वो बहुत चयनशील हैं’.

रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी और सरकार-समर्थक आईपीएस ग्रुप के सदस्य प्रवीण दीक्षित ने कहा, ‘अगर हम वाजिब बात लिखते हैं, तो हमें बीजेपी या आरएसएस सदस्य कहा जाता है. हम कुछ ऐसे विषयों पर सवाल खड़े करते हैं, जिनकी वो अनदेखी कर देते हैं. सिविल सर्विस अधिकारी ऐसा चयनात्मक दृष्टिकोण कैसे रख सकते हैं? अगर वो बीजेपी या आरएसएस के लाथ हमारे रिश्तों को साबित कर सकते हैं, तो वो खुले में आकर ये कह सकते हैं’.

दीक्षित ने कहा कि 27 आईपीएस अधिकारियों के ग्रुप ने जो आख़िरी पत्र लिखा था, वो 5 जनवरी को पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में हुई कथित चूक को लेकर था. उन्होंने पूछा, ‘ये मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है, और एक संवेदनशील मामला है. क्या उन्होंने इसे उठाया?’

इंडिया फाउण्डेशन के निदेशक मेजर जनरल ध्रुव सी कटोच (रिटा.) ने कहा, ‘सीसीजी की प्रतिक्रिया के तौर पर, दूसरे समूहों को सामने आकर चीज़ों को स्पष्ट करना होता है. देश के अंदर हज़ारों की संख्या में रिटायर्ड सिविल सर्वेंट्स मौजूद हैं- एक मुठ्ठीभर 100 अधिकारी सभी की नुमाइंदगी नहीं कर सकते’.

उन्होंने आगे कहा, ‘और सबसे अहम बात ये है कि उनके बयानात तथ्यों से परे होते हैं. इसलिए दूसरे वर्गों को सामने आकर अपने लिए बोलना पड़ता है. वो सभी देश को बदनाम करने के भयावह डिज़ाइन का हिस्सा नहीं हो सकते’.

दिप्रिंट से बात करते हुए पश्चिमी नौसेना कमान के पूर्व फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ, वाइस एडमिरल शेखर सिन्हा (रिटा.) ने कहा, ‘मैं दोनों पक्षों के बयानात पढ़ता रहा हूं. ये हमारे देश में मानव स्वतंत्रता और बोलने की आज़ादी को दर्शाता है, जो एक अच्छी चीज़ है. सरकार हर चीज़ को, सभी बयानात को देखती है और कार्रवाई करती है. मैं इसे टकराव नहीं कहना चाहता. मैं समझता हूं कि वो जो कुछ भी कर रहे हैं, देश के हित में कर रहे हैं. उनके विचारों का स्वभाव अलग हो सकता है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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