नई दिल्ली: शिखा श्रीवास्तव ने पाया कि उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में उनके गांव नवाबगंज से मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक टोल प्लाजा चार पहिया वाहनों से टैक्स वसूल रहा है, जबकि नियम यह है कि पांच किलोमीटर की सीमा के दायरे में रहने वालों को ऐसे भुगतान से छूट हासिल होती है. तब शिखा ने कानूनी सलाह के लिए अपने जिले के ही एक टेली-लॉ सेंटर से संपर्क किया और इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की. इसके बाद अदालत ने न केवल उन्हें बल्कि पूरे मोहल्ले को राहत दिला दी.
वहीं, झारखंड के गिरिडीह जिले की तेजिया देवी को उसके रिश्तेदारों ने जबरन उसकी जमीन से बेदखल कर दिया था. जब बातचीत के जरिये समझौते की कोशिश की गई तो उन लोगों ने और भी ज्यादा दुर्व्यवहार किया, तब स्थानीय टेली-लॉ सेंटर के पैनल में शामिल एक वकील ने उसे अपनी जमीन पंजीकृत कराने के लिए स्थानीय रजिस्ट्रार कार्यालय से संपर्क साधने की सलाह दी—इस कदम की वजह से उसे और ज्यादा उत्पीड़न झेलने से राहत मिल गई.
ओडिशा में कालाहांडी जिले के खैरपदार गांव के महेश्वर लाहजल ने जब खुद को सात साल पुराना म्यूटेशन मामला सुलझाने में असमर्थ पाया तो उन्होंने मदद के लिए स्थानीय टेली-लॉ सेंटर से संपर्क किया. एक लीगल वालंटियर की सलाह पर उन्होंने जो कदम उठाए, उससे महज 23 दिनों में उनके आवेदन का निपटारा हो गया.
किसी मुकदमे से पहले विवादों के समाधान के लिए पंचायत स्तर पर ऑनलाइन सलाह मुहैया कराने के उद्देश्य से स्थापित टेली लॉ सर्विस का यह तंत्र आसपास के किसी साधारण मुद्दे को सुलझाने से लेकर संपत्ति विवाद निपटारे, प्रक्रियागत बाधाओं को दूर करने और सड़क निर्माण जैसे मुद्दों पर लाभार्थियों को सशक्त बनाने वाली सूचनाएं मुहैया कराने आदि तक सब कुछ करता है.
अप्रैल 2017 में केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय की तरफ से शुरू की गई टेली-लॉ सेवा के तहत 1 अप्रैल 2022 तक देश के दूरदराज तक के इलाकों में 16.34 लाख से अधिक लाभार्थियों को कानूनी सहायता मिली है.
दिप्रिंट को मिले न्याय विभाग के डेटा से पता चलता है कि महिलाएं इसका फायदा उठाने वालों में सबसे आगे हैं. चाहे कोई घरेलू विवाद हो या फिर कोविड से जुड़ी कोई समस्या, करीब 4.66 लाख महिलाओं—जो कि इस सेवा का फायदा उठाने वालों में 31.31 प्रतिशत हैं—ने अपने परिवार पर असर डालने वाले तमाम मुद्दों पर कानूनी सलाह ली है.
इसका फायदा पाने वालों में से 27.91 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 19.15 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति और 30.42 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के हैं.
केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘तथ्यात्मक तौर पर देखे तो किसी भी अन्य श्रेणी की तुलना में इसका फायदा उठाने वाली महिलाओं की संख्या 31.31 फीसदी हैं जो इस बात का सबूत है कि उनका जवाब तलाशना बढ़ा है और वे विवाद को सुलझाने के लिए कानूनी उपायों का लाभ उठा रही हैं.’
अधिकारी ने एक घटना का जिक्र करते हुए बताया एक महिला ने तब टेली-लॉ सर्विस की मदद मांगी जब कुछ स्थानीय लड़कों द्वारा छेड़छाड़ के बाद उसकी लड़की को उसके घरवालों ने ही स्कूल जाना बंद कर देने पर बाध्य किया.
उन्होंने कहा, ‘उसने टेली-लॉ सर्विस की सलाह पर स्थानीय पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और इस मामले की जांच की गई.’
इस सेवा के तहत सबसे ज्यादा जिन विवादों पर सलाह दी गई, वे पात्रता से जुड़े हैं—यह एक ऐसी श्रेणी है जिसमें व्यक्तिगत और प्रक्रियात्मक विषयों को शामिल किया गया है, जैसे विकलांगता प्रमाणपत्र के लिए आवेदन और बैंक खाता एक्टिवेट कराना आदि—10 लाख से अधिक मामले इसी श्रेणी के तहत सामने आए हैं.
टेली लॉ सर्विस के जरिये भूमि विवाद, किरायेदारी, संपत्ति पर हक और उत्तराधिकार से जुड़े 1.5 लाख से अधिक मामलों के अलावा गिरफ्तारी, जमानत और प्राथमिकी दर्ज कराने जैसे 66,506 आपराधिक मामलों का निपटारा किया गया है. पारिवारिक विवादों और उत्तराधिकार से संबंधित 72,202 मामलों का निपटारा किया गया है, जबकि 33,978 बाल श्रम, शिक्षा और बाल यौन शोषण से जुड़े रहे हैं.
दायरा लगातार बढ़ रहा
टेली-लॉ सर्विस की शुरुआत टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए कानूनी सहायता को मुख्यधारा से जोड़ने के उद्देश्य से हुई थी. शुरुआती चरण में 1,800 सामान्य सेवा केंद्रों (सीएससी) के साथ 11 राज्यों के 170 जिलों—जिनमें अधिकांश यूपी और बिहार के हैं—में शुरू की गई इस परियोजना को सितंबर 2019 में देश में 117 ‘आकांक्षी जिलों’ तक विस्तारित किया गया और इसके साथ ही सीएससी की संख्या बढ़ाकर 29,860 पर पहुंच गई.
सीएससी में उपलब्ध वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या टेलीफोन सुविधा के माध्यम से नागरिकों को कानूनी मदद उपलब्ध कराई जाती है जिसमें लोगों को मुकदमा शुरू करने से पूर्व सलाह और परामर्श के लिए पैनल में शामिल वकीलों तक सीधी पहुंच मिलती है.
भारत सरकार की नजर में एक ‘आकांक्षी जिले’ का मतलब एक ऐसे जिले से है जो स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा, कृषि और जल संसाधन, वित्तीय समानता और कौशल विकास और बुनियादी ढांचे जैसे कई संकेतकों में पीछे हो—ये सभी पैरामीटर जो मानव विकास सूचकांक को प्रभावित करते हैं.
ऐसे जिलों के लिए, भारत सरकार ने ‘प्रभारी अधिकारी’ नियुक्त किए हैं, जिन्हें यह सुनिश्चित करना होता कि केंद्र सरकार की सभी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ जरूरतमंद लोगों तक पहुंचे.
मार्च 2020 में सीएससी की संख्या और बढ़ाकर 50,000 और मार्च 2021 में 75,000 कर दी गई. अप्रैल 2022 तक कानून मंत्रालय देश के सभी 733 जिलों को कवर करने की इच्छा रखता है, और एक लाख सीएससी स्थापित करने का लक्ष्य है.
मंत्रालय के तहत आने वाला न्याय विभाग अब टेली-लॉ सेवा के माध्यम से दी गई सलाह के नतीजों के फॉलोअप पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. इसके लिए, विभाग जल्द ही राष्ट्रीय कानूनी सहायता निकाय नालसा के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर करेगा, जिसके तहत हर जिले में कानूनी सेवा प्राधिकरण में सूचीबद्ध एक वकील नियुक्त किया जाएगा.
प्रोजेक्ट से जुड़े एक अन्य अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘इसी माह हम देश के सभी जिलों को कवर करने में सक्षम हो जाएंगे. नालसा के साथ करार से हमें प्रत्येक जिले के लिए एक समर्पित वकील नियुक्त करने में मदद मिलेगी, जिससे वकील के लिए उसकी सलाह पर हुई कार्रवाई को ट्रैक करना आसान हो जाएगा.’
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