चौबीस वर्षीय तरुण शर्मा दर्द से चीख़ उठा था, जब उसने पहली बार अपनी छाती वैक्स कराई थी. वो 2017 में एक पूल पार्टी के लिए गया था. टेक कंसल्टेंट मेहनत से बनाई अपनी ‘जिम बॉडी’ सबको दिखाना चाहता था, बालों से बेदाग़ सपाट ब्राउन डिप्स और छाती की आकृति. उस समय वो सबसे अलग दिखा था, और उसके पुरुष मित्रों ने उस पर ख़ूब व्यंग्य कसे थे. अब ऐसा नहीं है.
नई ‘मैनस्केपिंग’ व्यवस्था में आपका स्वागत है. शरीर के बाल हटाने की ये एक बिल्कुल नई दुनिया है, जहां शरीर का कोई हिस्सा अछूता नहीं है. पुरुष सिर्फ अपनी छाती के बाल ही नहीं हटाते, बल्कि ‘बॉयज़ीलियन’ वैक्स भी कराते हैं. मुम्बई में वैक्सिंग को समर्पित एक यूनिसेक्स सैलून मिनिस्ट्री ऑफ स्ट्रिप में हर महीने क़रीब 150 पुरुष ग्राहक आते हैं, और उनमें से ज़्यादातर अपने शरीर से सारे बाल हटाना चाहते हैं. और नहीं, उनके सभी ग्राहक जेनरेशन ज़ेड के मर्द, मॉडल्स, या बॉलीवुड स्टार बनने के इच्छुक लोग नहीं हैं. कॉर्पोरेट एग्ज़ीक्यूटिव्ज़ से लेकर प्रोफेसर्स तक, बिना बालों के रहना अब एक नया गंजा सच है.
44 वर्षीय ऋषभ सरीन चट से कहते हैं, ‘मैं अक्षय का एक बड़ा फैन हूं. उसने भी अपने बाल हटा लिए थे, और वो 50 को पार कर चुका है. तो मैं क्यों नहीं?’
इस बढ़ते सांस्कृतिक रुझान के तहत, पुरुष नए-नए विकल्प खोज रहे हैं जिनमें पील्स और लेज़र्स से लेकर वैक्सिंग और पारंपरिक शेविंग तक शामिल हैं. ‘मर्द भी अब वैक्सिंग, फेशियल्स, और मेनिक्योर-पेडिक्योर जैसी सेवाओं पर महीने में क़रीब 10,000 रुपए तक ख़र्च कर देते हैं. पहले केवल महिलाएं सैलून्स में आकर अपने ऊपर इतना पैसा ख़र्च किया करती थीं,’ ये कहना था मोहम्मद शोएब का जो दिल्ली के महंगे जीके-1 मार्केट में टोनी एंड गाइ आउटलेट पर काम करते हैं.
शर्मा, जो अब 30 से बस एक साल कम के हैं, नियमित रूप से वैक्सिंग के लिए जाते हैं. जो लोग उनका मज़ाक़ उड़ाया करते थे, वो भी अब इस राह पर चल पड़े हैं. मर्दानगी के एक उत्तर-आधुनिक अवतार को गले लगाते हुए वो कहते हैं, ‘अब साफ छाती का फैशन है’.
बालदार से बाल रहित तक
1970 और 1980 के दशकों में बड़े हुए ज़्यादातर लोगों के लिए, बालदार पुरुष को असली ‘मर्दाना’ आदमी माना जाता था.
बॉलीवुड ने भी समय समय पर इसी छवि को आगे बढ़ाया है, जिसकी सबसे बड़ी मिसाल अनिल कपूर को माना जाता है. उससे पहले बालदार सीने वाले एक क्रोधित युवा अमिताभ बच्चन, और एक सौम्य सुशील राजेश खन्ना देश भर के दिल की धड़कन हुआ करते थे.
एक समय था जब सीने पर बालों के साथ-साथ घनी मूछें भी एक मर्दाना शान समझी जाती थीं. लेकिन धीरे धीरे रुझान बदल गए, और अब ‘बालदार’ आईकॉन कपूर भी बिना बालों के हो गए हैं.
कोई स्पष्ट घटनाक्रम नहीं है कि मैट्रोसेक्शुअल पुरुष कब एक मर्दाना पुरुष पर भारी पड़ गया. हो सकता है कि ये 2005 में अपनी 75वीं वर्षगांठ पर लक्स का विज्ञापन रहा हो, जिसमें बिना बालों के शाहरुख़ ख़ान एक बाथ टब में करीना कपूर ख़ान, जूही चावला, हेमा मालिनी और दिवंगत श्रीदेवी से घिरे हैं.
उसके कुछ ही समय बाद भारत में लोकप्रिय फेयर एंड लवली क्रीम का एक पुरुष समकक्ष- फेयर एंड हैण्डसम आ गया. हालांकि उसकी लोकप्रियता की तुलना महिलाओं वाले ब्राण्ड से नहीं की जा सकती थी, लेकिन संयोगवश 2016 में एसआरके को ब्राण्ड एंबेसेडर बनाकर, इसे फिर से लॉन्च किया गया था.
1990 के बिना बालों वाले पुरुष के दशक में, जो चीज़ अलग नज़र आई वो थी मशहूर पॉप ग्रुप बॉम्बे वाइकिंग्स की एक म्यूज़िक वीडियो क्या सूरत है का मूछों वाला आदमी. दक्षिण भारत भी ज़्यादातर बिना बालों के रुझान के खिलाफ ही चला है. अपने भरपूर बालों की शान दिखाते ज़्यादातर नायकों के लिए, शरीर पर बाल होना या न होना अब बातचीत का विषय ही नहीं रह गया है. एसएस राजामौलि की ताज़ा ब्लॉकबस्टर फिल्म आरआरआर में जूनियर एनटीआर को अपनी पहली ही फिल्म में एक धोती पहने हुए दिखाया गया है, जो बड़ी शान से अपनी छाती के बाल, चेहरे की छोटी डाढ़ी, और मूछों का प्रदर्शन कर रहे हैं, और उसके धड़ से ख़ून टपक रहा है जब वो एक ख़ूंख़ार बाघ को पकड़ने के लिए अपने आपको एक चारे के तौर पर रख देता है.
दूसरी ओर बॉलीवुड ने बिना बालों के लुक को अपना लिया- जो उन तराशे गए एब्स और बाज़ुओं के दिखावे के लिए और भी अच्छा था. जहां 90 के दशक के सितारे ‘छाती के बाल सेक्सी हैं’ से आगे बढ़कर ‘बाल न होना अच्छा है’ वाली मुद्रा में आ गए, वहीं दोस्ताना में स्विमिंग शॉर्ट्स पहनकर समंदर से बाहर निकलते हुए जॉन अब्राहम, या कहो न प्यार है में ऋतिक रोशन जैसे अदाकारों ने सिक्स-पैक एब्स, और उभरी हुए बाईसेप्स के साथ बिना बालों का लुक शुरू किया.
जैसे-जैसे जिमों में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ी, जो अपने पसंदीदा बॉलीवुड सितारों जैसा दिखने के लिए हांफते हुए कसरत करते थे, वैसे-वैसे उनके एब्स के ऊपर से बाल हटाने का दबाव भी बढ़ने लगा. एक फिटनेस उत्साही रितेश सिंह, जिन्होंने 2015 में कसरत करनी शुरू कर दी थी, कहते हैं, ‘पहले मुझे अपनी छाती पर बालों की चिंता नहीं थी. लेकिन अब, जब एक फिटनेस ट्रेनर के तौर पर मैं ख़ुद अपने ग्राहक बनाना चाहता हूं, तो मुझे उन्हें अपनी मांसल बॉडी का एक बिना बालों वाला लुक पेश करना होता है’.
यह भी पढ़ेंः मोदी के लिए यह सबका साथ, सबका विकास, सबका लिबास तो है- लेकिन कुछ फैशन आजमाना कतई संभव नहीं लगता
किस तरह के बाल?
मर्दों के बीच ‘बॉयज़ीलियन’ वैक्स या प्यूबिक हेयर को हटाने का चलन भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है. हालांकि बॉज़ीलियन वैक्स को पारंपरिक तौर पर महिलाओं से जोड़कर देखा जाता रहा है, लेकिन मिनिस्ट्री ऑफ स्ट्रिप जैसी जगहों पर ऐसे बहुत से ग्राहक आते हैं, जो अपने शरीर को बालों से पूरी तरह मुक्त कराना चाहते हैं, जिनमें उनके निजी अंग भी शामिल होते हैं.
ये रुझान भले ही मुख्य रूप से उभरते हुए कलाकारों, मॉडल्स, और शायद गे समुदाय के बीच भी शुरू हुआ हो, लेकिन अब ये केवल पुरुषों तक सीमित नहीं है. बहुत से लोग अपने टेस्टिकल्स और पीछे की वैक्सिंग के ख़याल से ही डर जाते हैं, लेकिन अक्षय सैनी के लिए बाक़ी पूरे शरीर पर वैक्स कराने के बाद, ये एक अगला स्वाभाविक क़दम था. उसकी उत्सुकता तब जग उठी जब उसकी गर्लफ्रेण्ड ने कमेंट किया, कि मर्दों के लिए बाल हटाना आसान होता है. सैनी ने कहा, ‘मुझे उत्सुकता हो गई. जब मैं एक बार मुम्बई के दौरे पर था तो मैंने इसे आज़माया. हां, उसमें तकलीफ ज़रूर हुई, लेकिन मुझे वास्तव में बिना बालों का एहसास अच्छा लगता है’.
बहुत से लोग लेज़र से भी बाल हटवाते हैं, जो हालांकि वैक्सिंग के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा महंगा है, लेकिन उससे शरीर पर लंबे समय तक बाल नहीं निकलते.
मर्दानगी का दबदबा
बाल हटाने की चिंताओं और बिना बाल के शरीर को महिलाओं से जोड़ने की अवधारणा ने, पुरुष सौंदर्य उद्योग को अपने पंख पसारने से नहीं रोका है. बाज़ार में ज़्यादातर वस्तुएं ‘मर्दानगी’ के फैक्टर को ध्यान में रखकर लाई गई हैं. बिकमिंग यंग मेन इन अ न्यू इंडिया किताब के लेखक शैनन फिलिप कहते हैं, बाज़ार से पता चलता है कि मर्दाना तरीक़े से बनने-संवरने में पुरुषों की विषमलैंगिकता पर सवाल नहीं उठते, लेकिन अगर वो ग़लत सौंदर्य प्रसाधन इस्तेमाल करते हैं, तो वो ‘नामर्द’, कायर, या लड़कियों जैसे बन सकते हैं’.
इसलिए, बाल हटाने की चीज़ों या उपकरणों को बढ़ावा देते हुए, ज़्यादा विज्ञापन ‘असली मर्द’ के नैरेटिव को अपील करते हैं. मर्दों को अब ये भी पता चलने लगा है कि उन्हें क्या सूट करता है. अंकित बाल हटाने वाली क्रीम इस्तेमाल नहीं करता, क्योंकि उससे त्वचा पर विपरीत असर पड़ता है, जबकि रितेश वैक्सिंग की क़सम खाते हैं क्योंकि कोई और इसे करता है और उन्हें सिर्फ बैठना होता है.
बहुत से लोगों के लिए, बिना बालों का लुक हासिल करने का सबसे आसान औज़ार है ट्रिमर- इसमें ‘शर्मिंदगी’ का कोई जोखिम नहीं है, और ये छोटे से नोटिस पर काम कर देता है, जैसे किसी डेट या पार्टी से ज़रा देर पहले.
यह भी पढ़ेंः क्या है e-way भूमि अधिग्रहण ‘घोटाला’? योगी सरकार ने गाजियाबाद की पूर्व DM को क्यों निलंबित किया
सिर्फ बाल हटाना नहीं
बाल हटाना हालांकि पुरुष सौंदर्य के क्षेत्र में सबसे तेज़ी से बढ़ते उद्योगों में से एक हो सकता है, लेकिन कॉस्मेटिक उपचार भी कोई बहुत पीछे नहीं हैं. पर्सनल ब्राण्डिंग गुरू- और वो शख़्स जिसे भारत में बोटॉक्स लॉन्च करने का श्रेय जाता है- राजीव नेगी कहते हैं, ‘पहले लोग बोटॉक्स लेने की बात छिपाया करते थे, और इन केंद्रों पर चोरी से आते थे, दाएं-बांए देखकर कि किसी ने उन्हें देख तो नहीं लिया है. अब हर कोई इस बारे में खुल गया है’.
नेगी कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में ग्राहकों का भी विस्तार हुआ है. बॉलीवुड हस्तियों से लेकर जो जवान दिखना चाहते थे, ये अब इतना फैल गया है कि इसमें कॉर्पोरेट प्रमुख, सेल्स मैनेजर्स, और स्थानीय कारोबारी तक शामिल हो गए हैं.
ज़िद्दी फैट से छुटकारा पाने और एक ख़ास तरह का तराशा हुई शरीर हासिल करने के लिए, मर्द भी आज कल सर्जरी करा रहे हैं. नेगी ने आगे कहा, ‘अब सिर्फ महिलाएं ही ये काम नहीं करा रही हैं’.
बहरहाल, सुंदर दिखना सिर्फ महिलाओं का विशेषाधिकार नहीं है.
(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ेंः दिल्ली में ‘नस्लवाद’ की एक और घटना: अरुणाचल प्रदेश की महिला ने कैफे में उत्पीड़न का लगाया आरोप