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Sunday, 26 October, 2025
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300 साल के पारिवारिक रख-रखाव के बाद, क्यों गुरु गोबिंद सिंह और पत्नी के ‘जोड़े साहिब’ पटना जा रहे हैं

इस पवित्र वस्तु में दसवें सिख गुरु के दाएं पैर की पादुका और माता साहिब कौर की बाएं पैर की पादुका शामिल है. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह 1704 ईस्वी में आनंदपुर साहिब में उनके पूर्वजों को दी गई थी.

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नई दिल्ली: पवित्र ‘जोड़े साहिब’—सिखों के दसवें और अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह और उनकी पत्नी माता साहिब कौर की एक-एक पादुका—जो केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी के परिवार के पूर्वजों को 300 साल पहले प्रदान की गई थी, अब बिहार के पटना में तख्त श्री हरिमंदिर जी साहिब ले जाई जा रही हैं.

पुरी परिवार द्वारा अब तक सावधानीपूर्वक संरक्षित ‘जोड़े साहिब’ बुधवार को नई दिल्ली में पुरी के आवास पर एक संक्षिप्त समारोह के बाद सिख ‘पंथ’ को सौंपे गए.

दिप्रिंट से बात करते हुए हरदीप पुरी ने कहा कि ‘जोड़े साहिब’ उनके परिवार के पूर्वजों को “1704 ईस्वी में आनंदपुर साहिब में प्रदान किए गए थे और तब से हमारे परिवार में सुरक्षित रखे गए और पीढ़ियों से पूजनीय रहे हैं.”

‘जोड़े साहिब’ और कई अन्य व्यक्तिगत वस्तुएं, जिन्हें सिख गुरुओं ने इस्तेमाल किया था, सदियों से जीवित संग्रह का हिस्सा हैं. ‘जोड़ा’ का अर्थ है जोड़ी और ‘साहिब’ का उपयोग सम्मान देने के लिए किया जाता है, क्योंकि यह पादुकाएं सिख गुरुओं की है.

वर्तमान मामले में, ‘जोड़े साहिब’ में गुरु गोबिंद सिंह के दाएं पैर की पादुका (आकार 11” x 3 ½”) और माता साहिब कौर की बाएं पैर की पादुका (आकार 9” x 3”) शामिल हैं. गुरु गोबिंद सिंह ने 1699 में खालसा की स्थापना की थी और माता साहिब कौर को खालसा की “माता” के रूप में पूजनीय माना जाता है.

पुरी ने कहा, “चूंकि पवित्र ‘जोड़े साहिब’ सिख समुदाय के लिए अत्यंत पूजनीय हैं, इसलिए यह महसूस किया गया कि इसे एक गुरुद्वारे में रखा जाए ताकि सिख संघत पीढ़ियों तक अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर सके.”

उन्होंने बताया कि प्रमुख सिखों की एक समिति ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुझाव दिया कि बिहार का तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब ‘जोड़े साहिब’ के लिए आदर्श स्थान होगा, क्योंकि गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज का जन्म यहीं हुआ था.

सिख इतिहास में इन पवित्र वस्तुओं के महत्व को समझाते हुए, रूपिंदर सिंह, जिन्होंने ‘Sikh Heritage: Ethos and Relics’ पुस्तक लिखी है, ने दिप्रिंट को बताया कि सिख गुरु काल्पनिक या कविता के पात्र नहीं बल्कि वास्तविक व्यक्ति थे, जिन्होंने सामान्य जीवन बिताते हुए असाधारण कार्य किए.

रूपिंदर सिंह ने कहा, “कुछ परिवार गुरु के संपर्क से धन्य हुए हैं, जिसे मौखिक परंपरा या समकालीन ग्रंथों में याद किया जाता है. इस धरोहर का ठोस प्रतीक वे वस्तुएं हैं, जो गुरुओं ने उन्हें दीं या जिनका उपयोग उन्होंने किया. हर वस्तु, हर धरोहर जीवन की परंपरा का प्रतीक है और समुदाय की शक्ति और उद्देश्य को मजबूत करती है.”

उन्होंने यह भी कहा कि “सिख गुरुओं से जुड़ी वस्तुओं की संख्या ज्ञात नहीं है, लेकिन अंदाजित तौर पर यह कुछ सौ हो सकती हैं. ये वस्तुएं तख्तों, ऐतिहासिक गुरुद्वारों और कुछ परिवारों के पास सुरक्षित रखी हैं. हमारी 2012 की किताब में हमने इन व्यक्तिगत संग्रहों पर ध्यान केंद्रित किया.”

पुरी ने बताया कि गुरुओं के उपहार, उनके जीवन से जुड़ी वस्तुएं और उनकी संपत्ति परिवारों के लिए पवित्र हैं. इन्हें जिस श्रद्धा से रखा गया है, वह उनकी प्रामाणिकता को प्रमाणित करती है.

गुरुवार से दिल्ली से ‘जोड़े साहिब’ के साथ नगर कीर्तन यात्रा शुरू हुई. यह यात्रा 1 नवंबर को पटना में समाप्त होगी. यात्रा के दौरान, ‘जोड़े साहिब’ को सड़क मार्ग से दिल्ली से पटना ले जाया जा रहा है और हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार में नौ स्थानों पर रात्री विश्राम होगा.

केंद्रीय मंत्री ने कहा, “सिख संघत और कई अन्य लोग रास्ते में बड़ी संख्या में निकल रहे हैं ताकि अंतिम स्थापना से पहले इन पवित्र वस्तुओं को श्रद्धांजलि दे सकें, जो 1 नवंबर को तख्त श्री हरिमंदिर जी साहिब, पटना में स्थापित की जाएगी.”

रखवाला

‘जोड़े साहिब’ के अंतिम रखवाले सरदार जसमीत सिंह पुरी थे, जो दिल्ली के करोल बाग में रहते थे. स्थान की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए, उस घर तक जाने वाली सड़क का नाम गुरु गोबिंद सिंह मार्ग रखा गया था, जहां ‘जोड़े साहिब’ रखे गए थे.

सरदार जसमीत सिंह पुरी के निधन के बाद, उनकी पत्नी मनप्रीत सिंह पुरी ने परिवार के वरिष्ठ पुरुष सदस्य के रूप में सरदार हरदीप सिंह पुरी से अनुरोध किया कि वह ‘जोड़े साहिब’ की सुरक्षित रख-रखाव और भविष्य की पीढ़ियों के लिए सार्वजनिक पूजन की सुविधा सुनिश्चित करें.

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के अनुसार, ‘जोड़े साहिब’ की प्रामाणिकता सुनिश्चित करने के प्रयास में, पुरी ने संस्कृति मंत्रालय से संबंधित विशेषज्ञों की जांच कराने का अनुरोध किया.

बाद में, केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के अधीन कार्यरत एक सिख विद्वान की रिपोर्ट में निष्कर्ष निकला कि यह वास्तव में वही ‘जोड़े साहिब’ हैं, जिनका उल्लेख विभिन्न ऐतिहासिक दस्तावेजों में है और यह प्रामाणिक हैं. ‘जोड़े साहिब’ का उल्लेख 1930 में सिख विद्वान भाई खां सिंह नाभा जी द्वारा लिखित ‘गुरशब्द रत्नाकर—महान कोश’ में भी किया गया है.

इसके बाद, ‘जोड़े साहिब’ की प्रामाणिकता स्थापित करने के लिए इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स (IGNCA) द्वारा कार्बन टेस्टिंग भी की गई. सूत्रों के अनुसार, प्रामाणिकता सुनिश्चित करने के लिए यह परीक्षण तीन बार किया गया.

एक सोर्स ने कहा, “पुरी जी ने ‘जोड़े साहिब’ को संस्कृति मंत्रालय की देखरेख में पेशेवरों के पास सौंपा था.”

केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने इसके बाद एक समिति का गठन किया, जिसमें प्रमुख सिख शामिल थे, ताकि ‘जोड़े साहिब’ के लिए उचित कार्यवाही का मार्ग सुझाया जा सके.

एक अन्य अधिकारी ने बताया कि समिति ने लंबी चर्चा के बाद ‘जोड़े साहिब’ को पटना स्थित गुरुद्वारे में सार्वजनिक पूजन के लिए रखने की सिफारिश की.

जुलूस

अधिकारी ने कहा, “समिति के सदस्यों ने अपनी सिफारिशों के साथ एक रिपोर्ट तैयार की. उन्होंने 16 सितंबर 2025 को प्रधानमंत्री से मुलाकात की और अपनी सिफारिशें पेश की—जो उनके कार्यालय द्वारा सोशल मीडिया, एक्स पर भी साझा की गईं.”

इस फैसले के पालन में, सिख संगत, दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति (जिसकी अध्यक्षता सरदार हरमीत सिंह कालका कर रहे हैं) और तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब (जिसकी अध्यक्षता सरदार जगजोत सिंह सोही कर रहे हैं) के साथ सलाह मशविरा किया गया.

उन्होंने दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार में सभी संबंधित गुरुद्वारों से संपर्क किया. उनके साथ परामर्श के आधार पर, ‘जोड़े साहिब’ को पटना स्थित तख्त श्री हरिमंदिर साहिब जी में अंतिम सार्वजनिक पूजन से पहले यात्रा के माध्यम से ले जाने का प्रस्ताव रखा गया.

गुरुवार को नई दिल्ली के गुरुद्वारा मोती बाग साहिब के पास एक ‘नगर कीर्तन’ आयोजित किया गया, जिसके बाद यात्रा दिल्ली से शुरू हुई. यह यात्रा 23 अक्टूबर से 1 नवंबर के बीच हरियाणा और उत्तर प्रदेश होते हुए पटना तक जाएगी.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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