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सोमवार, 9 जून, 2025
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फ्रांस ‘उच्च सागर संधि’ का शीघ्र कार्यान्वयन चाहता है, भारत को कोई जल्दबाजी नहीं

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नयी दिल्ली, छह जून (भाषा) भारत अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में समुद्री जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग से संबंधित वैश्विक समझौता ‘उच्च सागर संधि’ के अनुमोदन की जल्दबाजी में नहीं है, जबकि संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन (यूएनओसी-3) का मेजबान फ्रांस इस संधि के शीघ्र कार्यान्वयन के लिए दबाव बना रहा है।

अगले हफ्ते होने वाले सम्मेलन से पहले फ्रांस ‘राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता समझौते’ (जिसे आमतौर पर उच्च सागर समझौता कहा जाता है) के अनुमोदन को लेकर बेहद इच्छुक है। इस संधि पर भारत ने पिछले साल संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक से इतर हस्ताक्षर किए थे।

यह कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि 60वें देश द्वारा अनुमोदन के 120 दिन बाद प्रभावी होगी। एक सौ से अधिक देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन इस सप्ताह तक केवल 32 देशों ने ही इसे अनुमोदित किया है। फ्रांस के नीस शहर में होने वाले सम्मेलन की सह-मेजबानी कोस्टा रिका कर रहा है।

फ्रांस नौ जून से शुरू एवं सप्ताह भर तक चलने वाले इस सम्मेलन के दौरान 28 और देशों से इस संधि का अनुमोदन करवाने के प्रयास में जुटा है, ताकि इसके लागू होने का मार्ग प्रशस्त हो सके।

भारत में फ्रांस के राजदूत थिएरी मथौ ने यहां संवाददाताओं से कहा, “उच्च सागर संधि असफल नहीं हो सकती। यदि हम यूएनओसी-3 के अवसर का लाभ नहीं उठाते हैं, तो हम महासागर के सतत प्रबंधन के लिए बहुमूल्य वर्षों को बर्बाद करने का जोखिम उठाएंगे।”

पृथ्वी विज्ञान मंत्री जितेन्द्र सिंह इस सम्मेलन में भाग लेंगे तथा 10 जून को भारत का पक्ष रखेंगे।

ऐसा समझा जाता है कि भारत इस बात का अध्ययन कर रहा है कि यह संधि मौजूदा भारतीय कानूनों, यथा- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, जैव विविधता अधिनियम, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम और राज्य स्तरीय समुद्री मछली पकड़ने के कानूनों, के साथ किस प्रकार मेल खाती है।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘संधि के समर्थन के लिए मौजूदा कानूनों की समीक्षा के बाद संसद द्वारा इसे अनुमोदित किया जाना आवश्यक है।”

भाषा

प्रशांत सुरेश

सुरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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