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बुधवार, 4 जून, 2025
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पूर्व डीजीपी की किताब में पीएमओ द्वारा कैटरर का बिल नामंजूर करने से लेकर योगी आदित्यनाथ तक के किस्से

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नयी दिल्ली, एक जून (भाषा) उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक ओ पी सिंह ने अपने कार्यकाल के दौरान के अनुभवों को एक किताब की शक्ल दी है जिनमें उन्होंने अनेक रोचक घटनाओं का जिक्र किया है।

इनमें 80 के दशक की शुरुआत में एक मुफस्सिल (ग्रामीण) इलाके में प्रधानमंत्री के दल को खाना खिलाने वाले एक कैटरर को मेन्यू में चिकन का उल्लेख होने के कारण 7,000 रुपये का बिल देने से मना करने और सर्दियों की एक सुबह प्रशासन द्वारा गृह मंत्री का स्वागत करना भूल जाने जैसे किस्से हैं। साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भी इसमें एक अध्याय है।

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के 1983 बैच के अधिकारी ने अपने 37 साल के करियर के अनुभवों को ‘थ्रू माई आईज: स्केचेस फ्रॉम ए कॉप्स नोटबुक’ नामक पुस्तक में लिखा है।

वह केंद्र में सीआईएसएफ और एनडीआरएफ जैसे बलों का नेतृत्व करने के बाद जनवरी 2020 में उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) पद से सेवानिवृत्त हुए।

पिछले साल, वह अपना संस्मरण ‘क्राइम, ग्राइम एंड गम्पशन: केस फाइल्स ऑफ एन आईपीएस ऑफिसर’ लेकर आए थे।

सिंह ने कहा, ‘‘यह पुस्तक ऐसे क्षणों का संग्रह है – जिसमें मेरे जीवन के-मेरे बचपन से लेकर पुलिस सेवा में मेरे कार्यकाल के वर्षों के किस्से हैं।’’

सिंह ने पुस्तक में लेखक की टिप्पणी के तौर पर लिखा है कि पुस्तक को पढ़ना ‘एक पुराने फोटो एल्बम को पलटने जैसा है’।

साल 1985 की गर्मियों की एक घटना को साझा करते हुए सिंह, जो उस समय मुरादाबाद जिले में नए-नए प्रशिक्षु आईपीएस अधिकारी के तौर पर पहुंचे थे, उस दिन को याद करते हैं जब वह सिटी मजिस्ट्रेट और डीएसपी के साथ रेलवे स्टेशन के पास एक कप चाय के लिए एक रेस्तरां में गए थे।

घटना के अनुसार एक आदमी उनके सामने खड़ा था जो ‘हाथ जोड़कर अभिवादन कर रहा था, सिर थोड़ा झुका हुआ था, उसके चेहरे पर सम्मान और हताशा का मिश्रण था’।

सिंह ने जानना चाहा कि वह कौन है? उन्होंने लिखा, ‘‘जैसा कि पता चला, वह व्यक्ति पेशे से कैटरर था। कई साल पहले, जब चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री थे, तो उन्हें इस जिले की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री के दल के लिए भोजन उपलब्ध कराने का काम सौंपा गया था।’’

सिंह लिखते हैं, ‘‘जिला प्रशासन द्वारा की गई भव्य व्यवस्था के तहत, उन्होंने अधिकारियों, मेहमानों और कर्मचारियों के लिए भोजन तैयार किया और परोसा।’’

उन्होंने यात्रा के बाद 7,000 रुपये का ‘मामूली’ बिल पेश किया और परोसे गए व्यंजनों में ‘चिकन’ का भी उल्लेख किया।

सिंह के अनुसार, ‘‘इसके बाद जो हुआ वह नौकरशाही की जिम्मेदारी इधर-उधर डालने का एक वास्तविक मामला था। यह बिल, जो देखने में बहुत ही सीधा सा लग रहा था, ने सरकारी अधिकारियों की भूलभुलैया से होते हुए अपनी लंबी और घुमावदार यात्रा शुरू की, फाइल पर फाइल, डेस्क पर डेस्क, गरीब हलवाई का बिल दूर-दूर तक घूमता रहा, हस्ताक्षर, प्रश्न, आपत्तियां और अंततः धूल जमा करता रहा।’’

सिंह लिखते हैं, ‘‘सालों बीत गए और बिल की यात्रा आखिरकार प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में समाप्त हुई, जहां इसे अंतिम मंजूरी की प्रतीक्षा थी।’’

पीएमओ ने अंतिम आदेश पारित किया, ‘‘प्रधानमंत्री चिकन नहीं खाते हैं। भुगतान अस्वीकार कर दिया गया।’’

सिंह कहते हैं कि ऐसा लगा कि उसका पैसा ‘‘खा लिया गया था – खाने वालों द्वारा नहीं, बल्कि व्यवस्था द्वारा’’।

सिटी मजिस्ट्रेट ने कहानी को यह कहते हुए समाप्त किया कि ‘‘बेचारा आदमी तब से उस भुगतान के पीछे भाग रहा है। जब भी हम उसे आते देखते हैं, तो हम समझ जाते हैं कि चिकन बिल का समय आ गया है।’’

सिंह इस घटना के ‘बेतुकेपन’ पर आश्चर्य करते हैं और कहते हैं कि कैटरर की कहानी ‘‘नौकरशाही के अजीबोगरीब तरीकों की एक मास्टरक्लास थी, जहां तर्क अक्सर लालफीताशाही के पीछे हो जाता है।’’

सिंह ने 42 अध्यायों में एक लघु कहानी के रूप में लिखी गई पुस्तक में पुलिस से जुड़ी कुछ मार्मिक घटनाओं का उल्लेख है। इसमें ‘झूठी शान के नाम पर हत्या’ का एक मामला भी शामिल है, जिसमें एक व्यक्ति ने अपनी बेटी की ‘बेरहमी से’ हत्या कर दी और उसके शव को आंगन में दफना दिया।

लेखक ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम पर एक अध्याय में उनके ‘नरम पक्ष’ को भी साझा किया है और बताया है कि किस तरह उन्होंने राज्य में क्षेत्रीय दौरे करने के लिए राज्य के हेलीकॉप्टर की सेवाएं देने की ‘पेशकश’ की थी।

भाषा वैभव शोभना

शोभना

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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