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Sunday, 5 May, 2024
होमदेशदिल्ली के डॉक्टरों ने 8-घंटे में पूरी की किर्गिस्तान की महिला की ऑटो लीवर ट्रांसप्लांट सर्जरी

दिल्ली के डॉक्टरों ने 8-घंटे में पूरी की किर्गिस्तान की महिला की ऑटो लीवर ट्रांसप्लांट सर्जरी

ओखला के फोर्टिस एस्कॉर्ट्स में एक चुनौतीपूर्ण लीवर की सर्जरी की गई. रोगग्रस्त हिस्से को हटाना मुश्किल काम था क्योंकि वो आसपास के अंगों में फंस गया था.

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नई दिल्ली: फोर्टिस एस्कॉर्ट्स, ओखला के डॉक्टरों ने किर्गिस्तान की 35-वर्षीय एक महिला का ऑटो लीवर ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किया है, जिसके शरीर का अंग 75 प्रतिशत क्षतिग्रस्त हो गया था. अस्पताल के अधिकारियों ने कहा कि भारत में यह अपनी तरह का दूसरा ट्रांसप्लांट है.

मरीज़ अल्टीनाई टेंटिमिशोवा की शुरुआती जांच किर्गिस्तान में की गई थी, जहां उन्हें इचिनोकोकोसिस मल्टीलोक्युलैरिस नाम की बीमारी के बारे में पता चला था- यह एक तरह का परजीवी संक्रमण है जिसके कारण धीमी गति से अंग को नुकसान होता है और लीवर में ट्यूमर बनने लगता है. अधिकारियों ने गुरुवार को एक प्रेस रिलीज़ में कहा कि इस बीमारी का इलाज हो पाने की केवल 10 प्रतिशत संभावना है.

फोर्टिस में किए गए एक सीटी स्कैन में लीवर में संक्रमण की उपस्थिति पाई गई और इसके फेलियर का पता चला.

लीवर और आसपास के अंगों को हो रहे नुकसान के कारण, डॉक्टरों ने ऑटो लीवर ट्रांसप्लांट करने का फैसला किया. अस्पताल के अधिकारियों ने कहा कि इस प्रक्रिया में लीवर के रोगग्रस्त हिस्से को हटा दिया जाता है और क्षतिग्रस्त नसों को फिर से बनाया जाता है या कृत्रिम नसों के साथ बदल दिया जाता है और फिर लीवर को वापस शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है.

फोर्टिस एस्कॉर्ट्स, ओखला, नई दिल्ली में डॉ. विवेक विज, चेयरमैन लीवर ट्रांसप्लांट स्पेशलिस्ट के नेतृत्व में डॉक्टरों की एक टीम ने लगभग आठ घंटे में प्रत्यारोपण पूरा किया.

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डॉ विज ने कहा, “सर्जरी के दौरान, हमने लीवर के क्षतिग्रस्त हिस्से को हटा दिया और इसे लीवर के सामान्य हिस्से से सफलतापूर्वक बदल दिया.”

उन्होंने कहा कि मरीज़ तेजी से ठीक हो रही हैं और सर्जरी के आठवें दिन बिना किसी इम्यूनोसप्रेसेंट दवाओं के उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी. हालांकि, आमतौर पर अंग प्रत्यारोपण के बाद इसकी ज़रूरत होती है.

डॉ विज ने बताया कि रोगग्रस्त हिस्से को हटाना काफी चुनौतीपूर्ण कार्य था क्योंकि लीवर दूसरे अंगों के पास फंस गया था और जटिलताओं और रक्तस्राव के साथ-साथ महत्वपूर्ण अंगों को चोट लगने का खतरा था.

डॉ. विज ने कहा, “रोगी के अपने लीवर का उपयोग करना फायदेमंद है क्योंकि इम्यूनोसप्रेसिव दवाओं की ज़रूरत नहीं पड़ती है.”

फोर्टिस एस्कॉर्ट्स, ओखला के जोनल निदेशक बिदेश चंद्र पॉल के अनुसार, यह स्वास्थ्य देखभाल और चिकित्सा विज्ञान में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है क्योंकि ऑटो लीवर ट्रांसप्लांट के लिए काफी अनुभव और कौशल की ज़रूरत होती है.

उन्होंने कहा, “यह भारत में किया गया दूसरा ऑटो लीवर ट्रांसप्लांट है. जोखिम को ध्यान में रखते हुए, यह विशेष रूप से कठिन मामला था. हालांकि, डॉ विज के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने सभी मापदंडों का मूल्यांकन किया और प्रक्रिया को सक्षम रूप से अंजाम दिया.”

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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