नई दिल्ली: रेस्तरां एग्रीगेटर जोमैटो द्वारा पिछले हफ्ते 10 मिनट में खाना घर पहुंचाने के ऐलान पर कई लोगों ने नकारात्मक प्रतिक्रियाएं दीं थीं और उनमें से कुछ ने कहा था कि भारत को वास्तव में 10 मिनट में उपलब्ध होने वाली एम्बुलेंस सेवा की जरूरत है. अब हैदराबाद में मौजूद एक मेडिकल इमरजेंसी रिस्पांस (आपातकालीन चिकित्सा प्रतिक्रिया) वाला प्लेटफार्म- स्टैनप्लस, सिर्फ आठ मिनट में ऐसा करने का लक्ष्य बना रहा है.
3,000 से अधिक एम्बुलेंस के साथ, स्टैनप्लस फिलहाल छह सेकंड के भीतर आपातकालीन कॉल का उत्तर देने और मरीजों को 15 मिनट के भीतर एम्बुलेंस की सुविधा प्रदान करने का वादा करता है. इस साल जनवरी में दो करोड़ डॉलर की नई फंडिंग हासिल करने के बाद, इस कंपनी के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) प्रभदीप सिंह अब एम्बुलेंस के मरीज तक पहुंचने के समय को घटाकर आठ मिनट करने की कोशिश कर रहे हैं.
दिप्रिंट से बातचीत के दौरान सिंह ने याद करते हुए कहा कि एक बार जब वह देश से बाहर थे और उनके माता-पिता को एक चिकित्सा सम्बन्धी आपातकालीन स्थिति का सामना करना पड़ा था, तो वह कितना असहाय महसूस कर रहे थे. उन्होंने कहा, ‘हम में से बहुत से लोग ऐसे हालात से गुजरे हैं. हम अक्सर नहीं जानते कि कैसे और क्या करें, किसको फोन करें, या फिर यह तक भी नहीं जानते कि सबसे नजदीकी अस्पताल कहां है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘शहरों के मामले में सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोग अक्सर एम्बुलेंस के लिए अस्पताल को फोन करते हैं, और ज्यादातर मामलों में वह सबसे नजदीकी अस्पताल नहीं होता है. इसलिए एम्बुलेंस को आने में इतना समय लगता है.’
2015 में, एक दवा निर्माता कंपनी के कार्डियोलॉजी डिवीजन (हृदयरोग विभाग) के साथ काम करते हुए, सिंह ने महसूस किया कि ऐसी एम्बुलेंस सेवा की भारी मांग है.उन्होंने कहा, ‘लोग खुद के लिए एम्बुलेंस पाने के प्रयास में में बहुत सारा पैसा खर्च कर देते हैं.’
स्टैनप्लस फ़िलहाल हैदराबाद, बेंगलुरु, रायपुर, भुवनेश्वर, अहमदाबाद और कोलकाता में अपनी सेवाएं प्रदान करता है. यह जल्द ही कानपुर, लखनऊ, मुंबई और पुणे सहित 10 और भारतीय शहरों में अपनी सेवाओं का विस्तार करने की योजना बना रहा है.
इसके एम्बुलेंस के बेड़े में कंपनी द्वारा खुद से चलाई जाने वाली एम्बुलेंस के साथ-साथ इसके भागीदार के रूप में अन्य एम्बुलेंस सेवाएं भी शामिल हैं. सिंह ने कहा कि, ‘भविष्य में, हमारी सेवाओं को और आगे बढ़ाने के लिए हम सरकारों के साथ साझेदारी करने पर भी विचार करेंगे.’
‘तकनीक को देखभाल के साथ जोड़ना’
सिंह ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कहा कि फिलहाल मांग आपातकालीन स्थिति के प्रबंधन और समग्र रूप से की जाने वाली प्रतिक्रिया की है, और एम्बुलेंस सेवा चलाना इसका सिर्फ एक हिस्सा भर है. उन्होंने कहा कि किसी अस्पताल के बाहर एक आपातकालीन चिकित्सा वाली परि स्थिति के प्रति प्रतिक्रिया करने के लिए तीन प्रमुख घटक हैं – यह समझना कि क्या गलत है, तत्काल प्राथमिक चिकित्सा या उपचार प्रदान करना, और फिर परिवहन सुविधा उपलब्ध करवाना.
उन्होंने कहा, ‘हमारी सेवा में तीनों वर्टिकल से संबधित उत्पाद शामिल हैं. हमारी सेवा किये गए कॉल का जवाब देने से शुरू होती है. हम तकनीक को लोगो की देखभाल के साथ जोड़ते हैं.’
यह पूछे जाने पर कि उनके द्वारा दी जा रही सेवा सड़क पर सामने आने वाली अप्रत्याशित चुनौतियों, जैसी कि यातायात, का सामान कैसे कर पायेगी, सिंह ने कहा कि एम्बुलेंस के समय पर पहुंचने में सबसे बड़ी बाधा यातायात नहीं है, बल्कि समस्या यह है कि लोग गलत गंतव्य का चयन कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि लोग पेशेवर सहायता के लिए फोन नहीं करते हैं, बल्कि वे किसी ऐसे प्रसिद्ध अस्पताल को फोन करते हैं जो 25 मिनट की दूरी पर भी हो सकता है. उन्होंने बताया कि न्यूयॉर्क शहर भी अक्सर भीड़भाड़ वाला होता है, लेकिन वहां एम्बुलेंस का समय कम होता है क्योंकि 911 सेवा केंद्रीकृत है.
सिंह ने कहा, ‘हमारी उम्मीद भारत के लिए 911 सेवा जैसा बनने की है, जहां कोई भी व्यक्ति कॉल कर के अपनी आपात स्थिति के बारे में और उनके पास किस तरह का बीमा है, यह सब बता सकता है और फिर हम उन्हें निकटतम अस्पताल में ले जाने के लिए उपलब्ध निकटतम एम्बुलेंस भेज देते हैं.‘
सिंह के मुताबिक, यह सेवा जिस तरह से काम करेगी वह नियोक्ताओं (एम्प्लोयी) या इवेंट मैनेजरों के साथ साझेदारी के जरिए होगी, ताकि किसी भी व्यक्ति को स्वयं एम्बुलेंस का खर्च वहन न करना पड़े.
इस बारे में समझाते हुए सिंह ने कहा, ‘उदाहरण के तौर पर हम किसी भी कंपनी के सभी कर्मचारियों के लिए एक समर्पित हेल्पलाइन नंबर तैयार करेंगे. किसी भी आपात स्थिति के मामले में, कर्मचारियों को पता चल जाएगा कि उनके कार्यालय में मदद पाने के लिए किस नंबर पर कॉल करना है.’
फिलहाल, एम्बुलेंस में ले जाये जाने की लागत को या तो अस्पताल या उन नियोक्ता द्वारा वहन किया जाता है जो अपने कर्मचारियों के लिए इस सेवा हेतु साइन-अप करते हैं. कोई भी व्यक्ति स्वयं से इसकी लागत वहन नहीं करता है.
उन्होंने कहा, ‘हम नहीं चाहते कि व्यक्ति खुद से भुगतान करे. यदि व्यक्तिगत स्तर पर लेन-देन या बातचीत होती है तो हम 8 या 10 मिनट का पिकअप (मरीजों को एम्बुलेंस में ले जाना) नहीं कर सकते. यह सारा सिस्टम तभी व्यावहारिक होता है जब कोई कंपनी अपने कर्मचारियों के लिए इसकी लागत का वहन करती है.’
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: जब तक जनता ‘राजनीतिक उपभोक्ता’ बनी रहेगी, उसे ऐसे ही महंगाई झेलनी पड़ेगी!