नयी दिल्ली, तीन अप्रैल (भाषा) राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को सौंपे गए वन क्षेत्र अतिक्रमण पर केंद्र सरकार के आंकड़े प्रामाणिक नहीं हैं, क्योंकि सरकार ने अभी तक वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) को पूरी तरह से लागू नहीं किया है। देश में 150 से अधिक आदिवासी और वनवासी संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक प्रमुख समूह ने बृहस्पतिवार को यह दावा किया।
इस संबंध में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की प्रतिक्रिया तत्काल उपलब्ध नहीं हो सकी।
वन अधिकार अधिनियम, 2006 आदिवासियों और वन-आश्रित समुदायों के उस भूमि पर अधिकारों को मान्यता देता है जिस पर वे पीढ़ियों से रहते आए हैं और जिसकी रक्षा करते आए हैं। हालांकि बड़ी संख्या में दावों को गलत तरीके से खारिज करके इसके क्रियान्वयन का उल्लंघन किया जा रहा है।
वन्यजीव के एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) द्वारा 2019 में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने उन 17 लाख से अधिक परिवारों को बेदखल करने का आदेश दिया था, जिनके एफआरए दावे खारिज कर दिए गए थे।
देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के बाद अदालत ने फरवरी 2019 में आदेश पर रोक लगा दी थी और खारिज किए गए दावों की समीक्षा करने का निर्देश दिया था।
हालांकि, कई आदिवासी और वन-आश्रित समुदायों का आरोप है कि समीक्षा प्रक्रिया में खामियां हैं और केंद्र और राज्य सरकारें कानून को ईमानदारी से लागू करने में विफल रही हैं।
‘पीटीआई’ द्वारा मंगलवार को दी गई एक खबर के अनुसार, पर्यावरण मंत्रालय ने एनजीटी को एक रिपोर्ट सौंपी, जिसमें कहा गया है कि अब तक उपलब्ध आंकड़ों में मार्च 2024 तक 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कुल 13,05,668.1 हेक्टेयर (या 13,056 वर्ग किमी) वन भूमि पर अतिक्रमण किया गया।
हालांकि 10 राज्यों ने अभी तक ‘वन भूमि अतिक्रमण’ पर आंकड़े प्रस्तुत नहीं किए हैं।
पिछले वर्ष अप्रैल में एनजीटी ने ‘पीटीआई’ की खबर पर स्वतः संज्ञान लेते हुए मंत्रालय को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से अतिक्रमण और उनकी स्थिति के बारे में आंकड़े एकत्र करने का आदेश दिया था।
यह रिपोर्ट 28 मार्च को एनजीटी को सौंपी गई और एफआरए की संवैधानिकता को चुनौती देने वाले मामले में बुधवार को उच्चतम न्यायालय में सुनवाई होनी थी।
हालांकि तीन न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ का गठन अभी तक नहीं होने के कारण सुनवाई नहीं हो सकी, लेकिन आदिवासी और वनवासी संगठनों ने आरोप लगाया है कि एनजीटी को सौंपी गई रिपोर्ट से पता चलता है कि केंद्र सरकार एफआरए के तहत आदिवासी और वन-आश्रित समुदायों के अधिकारों के संरक्षण पर ‘दोहरी बात’ कर रही है।
छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, महाराष्ट्र और गुजरात समेत 10 राज्यों के आदिवासी और वनवासी संगठनों के राष्ट्रीय मंच, ‘कैम्पेन फॉर सर्वाइवल एंड डिग्निटी’ ने एक बयान में कहा कि एनजीटी का मामला आदिवासियों और अन्य वन-आश्रित समुदायों के लिए बड़े पैमाने पर बेदखली का एक और खतरा पैदा कर सकता है।
भाषा यासिर देवेंद्र
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