नयी दिल्ली, 15 फरवरी (भाषा) भारत में स्थायी ठिकाना बनाने का विचार कर रहे विदेशियों की प्राथमिक चिंता यहां वायु प्रदूषण की समस्या है, जो राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच उलझी है। यह बात जर्मनी के दूतावास में कार्यरत एक अधिकारी ने बृहस्पतिवार को कही।
जर्मन दूतावास में आर्थिक और वैश्विक मामलों के विभाग के प्रमुख हेंड्रिक सेले ने यहां वायु प्रदूषण पर आयोजित एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि वायु प्रदूषण न केवल लोगों के स्वास्थ्य को बल्कि अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करता है।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत के संदर्भ में वायु प्रदूषण प्राथमिक कारणों में से एक है और यहां अपना स्थायी ठिकाना बनाने के बारे में सोच रहे विदेशी लोग इस पहलू पर विचार करते हैं…(वे) कहते हैं कि यह ऐसी चीज है, जिसका खतरा हम नहीं मोल सकते हैं।’’
सेले ने कहा, ‘‘तो, यह वास्तव में एक बहुत ही महत्वपूर्ण चिंता और बहुआयामी समस्या है, जो अक्सर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के खेल में फंस जाती है। ईंट भट्ठा मजदूर इसका कारण वाहन प्रदूषण बताते हैं, पराली जलाने वाले किसान इसका दोष दूसरे राज्य के किसानों पर मढ़ते हैं…जो हमें नहीं चाहिए। हमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक कार्रवाई की आवश्यकता है।’’
सेले ने कहा कि राजनीतिक कार्रवाई अकेले वायु प्रदूषण को कम नहीं कर सकती और निजी क्षेत्र का सहयोग भी अहम है।
जर्मन अधिकारी ने कहा कि उनके देश ने भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) का स्वागत किया है, जिसका उद्देश्य देश के 131 शहरों में वायु प्रदूषण के स्तर को कम करना है।
उन्होंने कहा कि जर्मनी 2019 में शुरू एनसीएपी परियोजना के तहत सूरत, पुणे और नागपुर में इसके प्रभावी क्रियान्वयन के वास्ते भारत के साथ काम कर रहा है।
सेले ने कहा कि अब विभिन्न देश भारत में शहरी प्रदूषण को कम करने के लिए नयी द्विपक्षीय योजनाओं पर काम कर रहे हैं।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के पूर्व अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) स्वतंत्र कुमार ने कहा कि मौजूदा पीढ़ी आने वाली पीढ़ी को स्वच्छ वायु देने में बुरी तरह असफल हुई है।
उन्होंने कहा कि भारत के कुछ शहरों को वायु प्रदूषण कम करने के लिए गंभीर प्रयास करने की जरूरत है।
भाषा धीरज सुरेश
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