नयी दिल्ली, 11 जनवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि भारतीय संविधान किसी विदेशी नागरिक को भारत में निवास करने और बसने के अधिकार का दावा करने की अनुमति नहीं देता है। उसने कहा कि विदेशियों का मौलिक अधिकार जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार तक सीमित है।
उच्च न्यायालय ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें दावा किया गया था कि अजल चकमा नामक व्यक्ति की हिरासत अवैध और बिना अधिकार के थी।
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने कहा, “हम यह भी संज्ञान में ले सकते हैं कि विदेशी नागरिक यह दावा नहीं कर सकता कि उसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ई) के अनुसार भारत में निवास करने और बसने का अधिकार है…।”
उन्होंने कहा, “ऐसे किसी भी विदेशी या संदिग्ध विदेशी का मौलिक अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत घोषित, यानी जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार तक ही सीमित है और ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह सुझाव दे कि उसकी स्वतंत्रता को अवैध या गैरकानूनी तरीके से कम किया गया है।”
उच्च न्यायालय ने कहा कि चकमा अपने दुखों के लिए खुद दोषी हैं क्योंकि वह यह बताने में विफल रहे हैं कि जब वह बांग्लादेशी पासपोर्ट पर देश छोड़कर चले गए थे तो वह भारत वापस कैसे आए।
भाषा प्रशांत पवनेश
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