नई दिल्ली: हाल ही में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पार्टी के चेहरे के रूप में केवल पांच रैलियों को संबोधित किया. उन्हें देश में नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में शायद ही कभी देखा गया. वायनाड से सांसद राहुल गांधी 25 नवंबर को समाप्त हुए शीतकालीन सत्र के पहले सप्ताह के दौरान संसद में भी मौजूद नहीं थे.
लोकसभा चुनाव हारने के बाद इस साल की शुरुआत में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में पद से इस्तीफा दे दिया था, उन्हें अक्सर देश के राजनीतिक परिदृश्य से अनुपस्थित देखा गया है.
2015 के बाद से पिछले चार वर्षों में मोदी सरकार के अनुसार राहुल ने कम से कम 247 बार विदेश यात्रा की है – एक साल में औसतन 62 यात्राएं, जो एक महीने में पांच बार होती हैं.
यह आंकड़े गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले महीने संसद में दिए थे, जब वह लोकसभा में विशेष सुरक्षा समूह (एसपीजी) विधेयक पर चर्चा कर रहे थे.
गृहमंत्री शाह ने कहा था कि डेटा एसपीजी को सूचित किए बिना राहुल द्वारा यात्रा की गई संख्या पर आधारित था. गृह मंत्री के अनुसार, यह एसपीजी के मानदंडों का उल्लंघन था.
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शाह ने यह भी कहा कि 2015 से राहुल ने एसपीजी को सूचित किए बिना भारत में 1,892 बार और विदेश में 247 बार यात्रा की है.
हालांकि, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एसपीजी को सूचित करने के बाद देश और विदेश में यात्रा की संख्या का गृहमंत्री शाह ने कोई उल्लेख नहीं किया.
गृह मंत्री ने यह भी कहा कि गांधी परिवार के अन्य सदस्यों, अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी एसपीजी मानदंडों का उल्लंघन किया.
शाह ने कहा, ‘सोनिया गांधी जी ने 2015 से पूर्व सूचना दिए बिना 50 से अधिक बार यात्रा की है. इनमें से 24 विदेशी दौरे थे.’
प्रियंका के लिए गृहमंत्री शाह ने कहा कि उन्होंने 1991 के बाद से 99 विदेशी यात्राएं कीं, जिनमें से उन्होंने 78 दौरों में उन्होंने एसपीजी कवर की मांग नहीं की.
विदेश यात्राओं पर राहुल गांधी की आलोचना
राहुल बार-बार अपनी विदेश यात्राओं के लिए आलोचना का सामना करते रहे हैं.
जब देशभर में नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ, तो विपक्ष के नेता राहुल गांधी गायब थे, क्योंकि वह एक कार्यक्रम के लिए दक्षिण कोरिया में थे. दक्षिण कोरिया जाकर झारखंड चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में शामिल होने से भी चूक गए. उनकी बहन प्रियंका गांधी पाकुड़ में एक रैली में भाग लिया.
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उनकी यात्राओं से पार्टी को भी नुकसान पहुंचा है. अक्टूबर में कांग्रेस ने अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर मोदी सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू करने की तैयारी की, लेकिन देश में पूर्व पार्टी प्रमुख नहीं थे.
वह हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार शुरू होने के कुछ हफ़्ते बाद ही फिर से वापसी की और फिर चुनाव ख़त्म होते ही निकल गए.
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