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Sunday, 28 April, 2024
होमदेश'सालों तक केवल चारदीवारी देखी, मरती मां को भी नहीं देख सका': जेल में एक दशक बिताने पर क्या बोले साईबाबा

‘सालों तक केवल चारदीवारी देखी, मरती मां को भी नहीं देख सका’: जेल में एक दशक बिताने पर क्या बोले साईबाबा

माओवादियों से संबंध होने के मामले में बरी होने के बाद, डीयू के पूर्व प्रोफेसर ने सलाखों के पीछे बिताए अपने वक्त के बारे में बताया. साथ ही यह भी बताया कि इस दौरान उनके साथ कैसा 'अनुचित व्यवहार' किया गया.

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नई दिल्ली: जी.एन. साईंबाबा ने कहा, “मैंने एक बार नहीं बल्कि दो बार अग्नि परीक्षा पास की है.” दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के पूर्व प्रोफेसर माओवाद से संबंधित एक मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा बरी किए जाने के बाद पहली बार शुक्रवार को मीडिया से बात कर रहे थे.

उन्होंने कहा, “मुझे आतंकवादी कहा गया. मेरे परिवार को कलंकित किया गया. मुझे अपनी मां की मृत्यु के समय उनसे मिलने की भी अनुमति नहीं दी गई,”

दिल्ली के एचकेएस सुरजीत भवन में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में बोलते हुए, भावुक साईबाबा ने सलाखों के पीछे बिताए अपने समय के बारे में बताया, उन्होंने जेल की स्थितियों, 2014 में अपनी गिरफ्तारी के बाद से कथित तौर पर विकसित हुई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और नागपुर सेंट्रल जेल की उस तंग कोठरी के बारे में बात की जहां 2017 में दोषी ठहराए जाने के बाद उन्हें रखा गया था.

साईबाबा को पहली बार मई 2014 में महाराष्ट्र पुलिस ने प्रतिबंधित संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का सदस्य होने, उन्हें साजो-सामान मुहैया कराने और भर्ती में मदद करने के आरोप में गिरफ्तार किया था. उन्हें 2016 में अंतरिम जमानत दी गई थी, लेकिन फिर मार्च 2017 में दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. अक्टूबर 2022 में, हाईकोर्ट की एक अन्य पीठ ने साईबाबा और अन्य को बरी कर दिया था, लेकिन उसी वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने फैसले पर रोक लगा दी थी. 23 अप्रैल, 2023 को, शीर्ष अदालत ने फैसले को रद्द कर दिया और बॉम्बे एचसी के मुख्य न्यायाधीश को साईबाबा द्वारा दायर अपील को एक नई पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने के लिए कहा.

उनकी प्रारंभिक गिरफ्तारी के लगभग 10 साल बाद, बॉम्बे HC ने मंगलवार को उन्हें और पांच अन्य लोगों को जांच में कई खामियों जैसे कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के प्रावधानों का अनुपालन न करना और पुलिस के डॉक्युमेंट में गिरफ्तारी की तारीख में विसंगतियां सहति कई अन्य बातों का हवाला देते हुए उन्हें बरी कर दिया.

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“आज, मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि मैं कहां हूं… क्योंकि मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं अभी भी अपनी जेल की कोठरी के अंदर हूं. अपनी रिहाई के 24 घंटे बाद भी मैं अपने सामने मौजूद हकीकत से रू-ब-रू नहीं हो पा रहा हूं. साईबाबा ने कहा, ‘मैं परिवेश के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रहा हूं क्योंकि मैंने सात साल (2017 से) तक केवल बंद दीवारों को ही देखा है.’

उन्होंने कहा, “शायद पूरी दुनिया को पता था कि मामला 10 साल पहले भी मनगढ़ंत था, लेकिन कोई राहत नहीं मिली. तब भी नहीं जब उच्च न्यायपालिका ने मुझे बरी कर दिया. यह सीता की अग्निपरीक्षा के समान था. और हमें इससे दो बार गुजरना पड़ा.”

‘मेरे वकील को निशाना बनाया गया’

साईबाबा ने कारावास के दौरान अपने परिवार पर आई कठिनाइयों के बारे में बात की. उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में लगभग एक दर्जन पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा, “उन्हें कलंकित किया गया. आपके समर्थन के कारण मेरा परिवार अपना भरण-पोषण कर सका.”

उन्होंने कहा, “यह शायद देश का सबसे बड़ा राजनीतिक मामला बन गया है जहां अभियोजन पक्ष ने मुझे सभी प्रकार के अवैध और अनैतिक तरीकों से दबाने की पूरी कोशिश की है. यह वकीलों के लिए एक लंबा संघर्ष था.”

उन्होंने आरोप लगाया कि कार्यकर्ता-वकील सुरेंद्र गाडलिंग – जिन्होंने मामले की सुनवाई के दौरान साईबाबा का प्रतिनिधित्व किया था और जो वर्तमान में एल्गार परिषद मामले में जेल में बंद हैं – को ट्रायल कोर्ट में उनकी दलीलों के कारण गलत तरीके से निशाना बनाया गया था. उन्होंने कहा कि तलोजा जेल में गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे गाडलिंग को आवश्यक चिकित्सा सहायता नहीं मिल रही है. ठीक वैसे ही जैसे साईंबाबा की स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को कथित तौर पर जानबूझकर नजरअंदाज किया गया.

“मुकदमे के दौरान, कुछ पुलिस अधिकारी मेरे वकील के सामने पेश हुए और उन्हें धमकी देते हुए कहा, ‘साईंबाबा के बाद, हम तुम्हें देखेंगे.’ अब उन्हें भी वही परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं जो मुझे भुगतने पड़े.’ उन्हें दिल की बीमारी हो गई है और कभी-कभी वह जेल की कोठरी के अंदर बेहोश हो जाते हैं. यहां तक कि गाडलिंग को लाइफ-सेविंग दवाएं भी देने से इनकार किया जा रहा है,” साईं बाबा ने आरोप लगाया कि गाडलिंग ने तलोजा जेल अधिकारियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 307 (हत्या का प्रयास) के तहत मामला दर्ज किया है.

साईंबाबा ने कहा, “मुझे नहीं पता कि मैं कैसे बच गया. शायद केवल इस उम्मीद के साथ कि एक दिन मैं वापस आ सकूंगा और अपने दोस्तों और साथियों के साथ काम कर सकूंगा.”

‘पांडु नरोटे मेरी आंखों के सामने मर गए’

साईं बाबा ने मामले के सह-अभियुक्त पांडु नरोटे की मौत का जिक्र किया. कथित तौर पर 33 साल की उम्र में स्वाइन फ्लू के कारण नरोटे का 2022 में निधन हो गया. साईबाबा के अनुसार, नरोटे को कानून या फैसले की बहुत कम समझ थी और उन्होंने कहा कि नागपुर सेंट्रल जेल में एक साथ कैद होने से पहले दोनों कभी नहीं मिले थे.

“उन्होंने मुझसे पहला सवाल यह पूछा कि फैसले का क्या मतलब है और हमारा क्या होगा. उन्हें कानून और उसकी प्रक्रियाओं की जानकारी नहीं थी. वह सबसे आदिम जनजाति से थे. उन्होंने कभी गढ़चिरौली स्थित अपने गांव से बाहर कदम नहीं रखा था.”

साईबाबा ने दावा किया कि नरोटे की मौत “साधारण बुखार” से हुई, जिसे बाद में स्वाइन फ्लू करार दिया गया. उन्होंने कहा, ”वह मेरी आंखों के सामने मर गए. उन्हें तब तक अस्पताल नहीं ले जाया गया जब तक कि उनकी आंखों से बहुत अधिक खून बहने नहीं लगा और उनके मूत्र में भी खून आने लगा. आखिरी मिनट तक स्वाइन फ्लू का कोई जिक्र नहीं किया गया था. कोई टेस्ट नहीं किया गया. यह हैरान करने वाली बात है कि आधुनिक चिकित्सा उपलब्ध होने पर भी ऐसी मौत कैसे हो सकती है.”

‘मेरे शरीर का लगभग हर अंग मुझे जवाब दे रहा है’

अपने स्वास्थ्य के बारे में बात करते हुए, साईबाबा ने कहा कि जिस समय वह जेल गए थे, उस समय उन्हें एकमात्र बीमारी पोलियो थी, जो उन्हें बचपन से थी. उन्होंने कहा, “लेकिन अब, मेरा हर अंग मुझे जवाब दे रहा है.”

उन्होंने आरोप लगाया कि हिरासत में रहने के दौरान पुलिस ने उनके बाएं कंधे को पकड़कर घसीटा, जिससे उनके बाएं कंधे और नर्वस सिस्टम के लिए जरूरी पांच मांसपेशियों को नुकसान पहुंचा. उन्होंने कहा कि उन्हें नौ महीने तक कोई इलाज नहीं दिया गया और जब उन्हें अस्पताल ले जाया गया, तो डॉक्टरों ने कहा कि काफी देर हो चुकी है और उनका नर्वस सिस्टम अब ठीक नहीं हो सकता.

2016 में अंतरिम जमानत के बाद उन्होंने सर्जरी की तैयारी की, लेकिन दोषी ठहराए जाने के बाद 2017 में उन्हें वापस जेल भेज दिया गया.

“मुझे अब भी बाएं हाथ से बाएं पैर तक चुभने वाला तेज़ दर्द होता है. मुझे जब पैरालिसिस अटैक आया, तब भी डॉक्टर्स को नहीं बुलाया गया.”

उन्होंने उन अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का भी जिक्र किया जिनका वह वर्तमान में सामना कर रही हैं.

“मुझे नहीं पता कि मुझे एचसीएम (हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी) कैसे हुआ. मेरे दिल का बायां हिस्सा केवल 55 प्रतिशत क्षमता पर काम कर रहा है. डॉक्टरों ने कहा है कि अगर इसमें कुछ प्रतिशत की भी गिरावट आई, तो मैं बच नहीं पाऊंगा,” उन्होंने कहा कि वह तीव्र पैंक्रियायटिस से भी पीड़ित हैं और उनके पित्ताशय में पथरी है.

“चूंकि मैं ज्यादा खा नहीं पाता था, इसकी वजह से मेरा पित्ताशय सिकुड़ गया और उसमें पथरी हो गई. इसके बाद, मुझे तीव्र पैक्रियायटिस हो गया. बाद में, एक एमआरआई से पता चला कि मेरे मस्तिष्क में एक सिस्ट है. डॉक्टरों ने चार साल पहले हार्ट मॉनीटरिंग और स्लीप एपनिया टेस्ट की सलाह देते हुए कहा कि मुझे सात साल पहले ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया हो गया था. आज तक कोई भी परीक्षण नहीं किया गया है.”

उन्होंने आगे आरोप लगाया कि जब तक वह भूख हड़ताल पर नहीं बैठे तब तक उन्हें उनकी पत्नी वसंता द्वारा भेजी गई दवाएं देने से इनकार कर दिया गया. उन्होंने कहा, “और तब भी, यह 10-15 दिनों की देरी के बाद दिया गया था,”

G.N. Saibaba at the press conference in Delhi’s HKS Surjeet Bhawan with wife Vasantha | Photo: Manisha Mondal, ThePrint
दिल्ली के एचकेएस सुरजीत भवन में प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी पत्नी वसंता के साथ जी.एन. साईबाबा | फोटो: मनीषा मंडल, दिप्रिंट

जी.एन. पत्नी वसंता के साथ दिल्ली के एचकेएस सुरजीत भवन में प्रेस कॉन्फ्रेंस में साईबाबा | फोटो: मनीषा मंडल, दिप्रिंट

“जेल एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों से भरी हुई है. उन्हें कभी कोई इलाज नहीं मिलता. शायद वे मुझे दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी मानते हैं और इसीलिए मुझे इलाज नहीं मिला.”

‘मेरी मरती हुई मां को देखने के लिए पैरोल से इनकार’

अपने लगभग 40 मिनट के संबोधन के अंत में, साईं बाबा अपनी मां की मृत्यु के समय पैरोल से इनकार किए जाने के बारे में बात करते हुए काफी भावुक हो गए.

उन्होंने कहा, “मेरी मां का निधन 1 अगस्त, 2020 को हो गया. बचपन से ही विकलांग होने के कारण, मेरी मां – जो अनपढ़ थी और एक गांव में पली-बढ़ी थी – ने मेरी बहुत देखभाल की थी. जब वह मरी तो मुझे उसे देखने की अनुमति नहीं दी गई. उनकी मृत्यु से पहले, मुझे उनसे मिलने के लिए पैरोल देने से इनकार कर दिया गया था. उनकी मृत्यु के बाद, मुझे उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति नहीं दी गई. अंतिम संस्कार के बाद, मुझे जेल अधिकारियों, सरकारों और अदालतों द्वारा अंतिम संस्कार के बाद की गतिविधियों में शामिल होने के लिए पैरोल देने से इनकार कर दिया गया.”

साईबाबा के अनुसार, उन्हें दोषसिद्ध करार दिए जाने और कारावास के कारण उनकी मां की मृत्यु हो गई. साईबाबा ने आगे कहा कि उनके जीवन के अंत में उनकी केवल एक ही इच्छा थी – उन्हें देखने की – और उन्हें उस इच्छा से वंचित कर दिया गया.

उन्होंने पूछा, “किस अपराधी को आज तक इस अधिकार से वंचित किया गया है? राज्य लोगों की सेवा करने के लिए है, मानवता को कुचलने के लिए नहीं….” राज्य का गठन लोगों ने अव्यवस्था और अराजकता को रोकने के लिए किया है, लेकिन राज्य ही अराजकता बन गया है. अब, यह मानवता को बेरहमी से कुचल रहा है.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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