नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट की तरफ से 34 पेपरलेस कोर्ट, जो निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स (एनआई) अधिनियम के तहत दर्ज मामलों की सुनवाई करेंगी, स्थापित किए जाने के साथ दिल्ली में चेक बाउंसिंग के मामलों की डिजिटल सुनवाई अब एक आदर्श व्यवस्था बन जाएगी.
इन अदालतों को दो मुख्य उद्देश्यों के साथ शुरू किया गया है, एक तो वादियों को बिना किसी झंझट वाला माहौल मिलेगा—जो इन अदालतों में वर्चुअली पेश हो सकेंगे—और अदालती मामलों का बोझ घटाने में भी मदद मिलेगी. इन अदालतों में वाद दायर करने से लेकर बहस करने और निर्णय सुनाए जाने तक सारी प्रक्रिया डिजिटल प्रारूप में ही होगी.
एनआई अधिनियम के तहत मामले सीधे अदालत के समक्ष दायर किए जाते हैं न कि अन्य आपराधिक मामलों की तरह, जहां पहले पुलिस शिकायत दर्ज करती है.
यह पहली बार है कि आपराधिक न्याय प्रक्रिया के मामलों को सुनने और फैसले सुनाने के लिए एक डिजिटल सेट-अप लागू किया गया है. दिल्ली की अदालतों में चेक-बाउंसिंग के 3.70 लाख से अधिक मामले अंतिम फैसले के इंतजार में अटके हैं.
दिल्ली हाईकोर्ट की स्टेट कोर्ट मैनेजमेंट सिस्टम कमेटी (एससीएमएससी) के सदस्य सचिव एस.एस. राठी ने दिप्रिंट को बताया कि 17 नवंबर से चेक-बाउंसिंग के मामलों की नई ई-फाइलिंग अनिवार्य हो गई है. ये 34 नई अदालतें मौजूदा न्यायालयों के अलावा होंगी जो पहले से ही समान मामलों की सुनवाई कर रहे हैं, और केवल नए ढांचे के तहत दायर नए मामलों की सुनवाई करेंगी.
हालांकि, मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के तहत सेफ कस्टडी के लिए बाउंस चेक, लीगल डिमांड नोटिस, डिसपैच की रसीद और सर्विस प्रूफ जैसे दस्तावेजों या सबूतों की मूल प्रतियां अदालत में जमा करानी होंगी.
राठी ने कहा, ‘ये अदालतें 17 नवंबर के बाद दाखिल एनआई से जुड़ी सभी शिकायतों में पूरी तरह कागजरहित, डिजिटल वातावरण वाली कानूनी प्रक्रिया अपनाएंगी, जहां वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई होगी. ये किसी अन्य मामले की सुनवाई नहीं करेंगी.’
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वकीलों के लिए मिरर इमेज फाइल जरूरी
पेपरलेस कोर्ट के संचालन संबंधी दिशानिर्देशों के तहत न्यायाधीश की ई-फाइल की एक मिरर इमेज मेंटेन की जाएगी और इसे अधिवक्ता के साथ-साथ मामले में वादकर्ता के साथ भी साझा किया जाएगा. यह काम क्लाउड या ड्राइव पर एक समर्पित, सुरक्षित और ट्रांसफर न किए जाने वाले वेबलिंक के माध्यम से किया जाएगा.
इसे विस्तार से समझाते हुए राठी ने कहा, ‘तकनीक हमें जज की फाइल की मिरर-इमेज एक वकील को मुहैया कराने में सक्षम बनाती है, जिन्हें अब केस की फिजिकल फाइल तैयार करने की आवश्यकता नहीं है. उनकी फाइल भी जज के साथ रियल टाइम में अपडेट की जाएगी.’
नए नियमों में वकीलों के लिए चेक-बाउंसिंग की शिकायत दर्ज करते एक फॉर्म भरना आवश्यक है. इस तरह जुटाए गए डाटा को एक समान मामलों की पहचान, क्लबिंग और बंचिंग के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) टूल का डेटाबेस तैयार करने में उपयोग किया जाएगा.
राठी ने कहा कि मेटाडाटा का इस्तेमाल कानूनी रिसर्च के लिए भी किया जाएगा, जिसका उद्देश्य शिकायतों का जल्द से जल्द निपटारा करना है.
चेक-बाउंसिंग मामलों ने न्याय प्रक्रिया का बोझ बढ़ाया
दिल्ली उच्च न्यायालय के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली की अदालतों में लंबित सिविल और आपराधिक मामलों में 42 फीसदी चेक-बाउंसिंग के हैं और कुल आपराधिक मामलों में इनका आंकड़ा 54 प्रतिशत है.
आंकड़े ऐसे मामले दायर किए जाने में हुई वृद्धि को भी दर्शाते हैं. 2018 में 1.15 लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए, जबकि 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 1.92 लाख हो गया.
दिल्ली हाई कोर्ट की तरफ से इस माह के शुरू में डिजिटल अदालतों के संबंध में जारी दिशानिर्देशों में स्पष्ट कहा गया है, ‘वाणिज्यिक मामलों में हेराफेरी और भुगतान के लिए चेक का उपयोग बढ़ने के कारण ही कानून के तहत इस तरह की शिकायतें इतनी बड़ी संख्या में दर्ज कराई जा रही हैं कि अदालतों के लिए उचित समय में उन्हें निपटान असंभव हो गया है.’
विशेष अदालतों की जरूरत इसलिए उत्पन्न हुई क्योंकि बड़ी संख्या में लंबित चेक-बाउंसिंग के मामलों का निपटारा करने के लिए उच्च न्यायालय द्वारा उठाए गए कदमों और कानून में संशोधनों, जिसमें चेक-बाउंसिंग अपराध को दंडनीय बनाना शामिल था, का वांछित नतीजा नहीं निकला.
सुप्रीम कोर्ट के 2017 के एक फैसले, जिसमें एनआई अधिनियम के तहत शिकायतों के मामले में तकनीकी के इस्तेमाल का प्रस्ताव किया गया था, और कोविड महामारी के कारण उपजी परिस्थितियों ने बहुत ज्यादा अपेक्षित इन अदालतों की स्थापना के लिए प्रोत्साहित किया.
राठी ने कहा कि हाई कोर्ट ने जिला अदालतों के सभी ई-सेवा केंद्रों पर चेक बाउंसिंग मामलों में डिजिटल शिकायत दर्ज कराने में मदद चाहने वालों के लिए भी एक समर्पित सुविधा केंद्र सेटअप किया है.
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