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Thursday, 18 April, 2024
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31 पैसे, लैंड डील और SBI: 2 साल तक अनसुलझे रहे मामले को गुजरात HC ने कैसे सुलझाया

दिसंबर 2019 में सानंद तालुका में दो भाइयों ने 79 एकड़ जमीन खरीदी थी लेकिन एसबीआई ने संपत्ति के पुराने मालिकों को 'नो-ड्यूज़ सर्टिफिकेट' देने से इनकार कर दिया. हाई कोर्ट ने 'लोगों का उत्पीड़न' करने के लिए बैंक को फटकार लगाई.

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नई दिल्ली: महज 31 पैसे और दो साल से ज्यादा का लंबा समय. गुजरात के राकेश ईश्वरभाई वर्मा और मनोज ईश्वरभाई वर्मा को अहमदाबाद के साणंद तालुका के ज़ोलापुर गांव में दिसंबर 2019 में खरीदी गई अपनी 79 एकड़ कृषि भूमि का स्वामित्व नहीं मिल पा रहा था.

कारण? भारतीय स्टेट बैंक पिछले मालिक को ‘एनओसी’ जारी नहीं कर रहा था. ‘नो-ड्यूज सर्टिफिकेट‘ एक ऐसा बैंक डाक्यूमेंट है जो एक कर्जदार द्वारा अपना पूरा कर्ज चुकाने और उस पर कोई बकाया नहीं रहने के बाद जारी किया जाता है.

ये मामला किसान की जमीन के सौदे से जुड़ा है. याचिकाकर्ता राकेश वर्मा और मनोज वर्मा ने अहमदाबाद शहर के पास किसान श्याम जी भाई और उनके परिवार से जमीन का एक टुकड़ा खरीदा था. शामजीभाई ने एसबीआई से लिए गए फसल ऋण को पूरा चुकाने से पहले ही याचिकाकर्ता को जमीन बेच दी थी. हालांकि किसान ने बाद में बैंक का पूरा कर्ज चुकता कर दिया. लेकिन सिर्फ 31 पैसे बकाया रहने पर बैंक उसे नोड्यूज सर्टिफिकेट जारी नहीं कर रहा था.

इसके चलते जमीन का नया मालिक यानि याचिकाकर्ता राजस्व रिकॉर्ड में अपना नाम नहीं दर्ज करवा पा रहा था. एसबीआई के इस एनओसी के बिना राजस्व विभाग ने उनके आवेदन को खारिज कर दिया.

लेन-देन पूरा करने के बाद भी जब जमीन अपने नाम न करा पाए तो याचिकाकर्ता वर्मा ने डिप्टी कलेक्टर का दरवाजा खटखटाया. बैंक को तीन नोटिस जारी किए गए लेकिन कोई जवाब नहीं आया. फिर उन्होंने दिसंबर 2020 में गुजरात उच्च न्यायालय में विशेष नागरिक आवेदन संख्या 15691 दायर की. इसमें बैंक को लंबित राशि स्वीकार करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था ताकि उन्हें भूमि का स्वामित्व मिल सके.

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अंत में 2 मई 2022 को अदालत ने एसबीआई को लंबित 31 पैसे स्वीकार करने और भूमि के स्वामित्व को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया.


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‘बैंक ने चेक स्वीकार करने से किया इनकार’

अधिवक्ता जिनेश एच. कपाड़िया के माध्यम से दायर अपनी याचिका में वर्मा ने कहा कि जमीन के पिछले मालिकों ने एसबीआई से 4.55 लाख रुपये के दो ऋण लिए थे. याचिका में सात कर्जदारों का नाम लिया गया: शामजीभाई पाशाभाई, धनजीभाई पाशाभाई, डूंगरभाई पाशाभाई, मंजूबेन, रतिलाल लद्राभाई, दिनेशभाई लद्रभाई और कैलाशबेन लद्रभाई.

याचिकाकर्ताओं ने कहा, ‘उन्होंने कई बार बैंक (एसबीआई) से संपर्क किया. बकाया राशि के बारे में पूछताछ की और देय राशि का चेक भी दिया. लेकिन बैंक प्रबंधक ने एक के बाद एक बहाने बनाते हुए इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया.’

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने सितंबर 2020 में डिप्टी कलेक्टर से भी संपर्क किया था. एसबीआई को तीन नोटिस भी जारी किए गए. लेकिन ‘बकाया स्वीकार करने के लिए’ 16 सितंबर 2020 को दिए गए अंतिम नोटिस पर कोई जवाब नहीं दिया गया. याचिका में कहा गया, ‘न तो बैंक की तरफ से कोई जवाब आया और न ही राशि स्वीकार की गई.’

याचिकाकर्ताओं ने आखिरकार दिसंबर 2020 में गुजरात उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.


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कोर्ट की फटकार और बैंक की दलील

इस मामले को लेकर गुजरात उच्च न्यायालय के सामने 15 बार सुनवाई की गई और अदालत ने इस साल 2 मई को इसका निपटारा कर दिया.

27 अप्रैल को अंतिम सुनवाई के दौरान अदालत ने बकाया प्रमाण पत्र जारी नहीं करने के लिए बैंक को फटकार लगाई थी.

मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस भार्गव डी. करिया ने तंज कसते हुए बैंक के वकील एडवोकेट बी.बी. गोगिया से कहा कि अपने मैनेजर को यहां बुलाएं. अदालत ने कहा, ‘बैंकिंग नियामक कानून कहता है कि 50 पैसे से कम की रकम की गणना नहीं की जानी चाहिए. उसे (प्रबंधक को) अदालत में पेश करो.’

आरबीआई के सर्कुलर बैंकों को सलाह देते हैं कि ‘सभी लेनदेन … की रकम का निपटारा निकटतम रुपये में करना होगा, यानी 50 पैसे और उससे अधिक राशि की गणना उससे अगले उच्चतर रुपये में की जाएगी और 50 पैसे से कम की राशि पर ध्यान नहीं दिया जाएगा.’

न्यायमूर्ति करिया ने एसबीआई के वकील से पूछा: ‘आप लोगों को क्यों परेशान कर रहे हैं … यह आपके प्रबंधक द्वारा उत्पीड़न के अलावा और कुछ नहीं है ….आप एक राष्ट्रीयकृत बैंक हैं और कह रहे हैं कि 0.31 बकाया पैसे के लिए आप ‘नो ड्यू’ जारी नहीं करेंगे.’

एक दिन बाद एसबीआई ने नो-ड्यूज सर्टिफिकेट जारी कर दिया.

हालांकि, 30 अप्रैल को दायर एक हलफनामे में बैंक ने अपनी याचिका में दलीलों को ‘बिल्कुल झूठा, अंगभीर और अफसोसजनक’ बताया और अपनी कार्रवाई को सही ठहराया था.

बैंक ने अदालत को बताया कि 2018 में ऋण एक गैर-निष्पादित संपत्ति बन गया था लेकिन पिछले मालिकों ने जुलाई 2019 से किश्तों में ऋण चुकाना शुरू कर दिया. अंतिम किस्त का भुगतान जनवरी 2022 में किया गया था.

एसबीआई ने दावा किया कि एक कर्जदार ने राजस्व प्राधिकरण के समक्ष याचिकाकर्ताओं के आवेदन पर भी आपत्ति जताई थी. हलफनामे में कहा गया है कि इस कर्जदार ने बैंक को यह दावा करते हुए लिखा था कि ‘पारिवार के बीच कुछ विवाद हैं और किसी बाहरी व्यक्ति से कोई पैसा स्वीकार नहीं किया जाए और खुद कर्जदार के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को नो ड्यू सर्टिफिकेट भी नहीं दिया जाए.’

एसबीआई ने अदालत को यह भी बताया कि उसने 28 अप्रैल को ‘कर्जदार से संपर्क करने और उन्हें विश्वास में लेने के बाद’ बकाया प्रमाणपत्र जारी कर दिया है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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