नई दिल्ली: 4 सितंबर की सुबह, दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में सेब उगाने वाले किसान जब जागे तो उनके बागों में घुटनों तक पानी भरा था. पके हुए सेब बिखरे पड़े थे और पेड़ उखड़ चुके थे.
यह त्रासदी उस समय आई जब घाटी में सेब की तुड़ाई अपने चरम पर थी. सेब बाजारों में भेजने के लिए तैयार थे. लेकिन कई दिनों की लगातार बारिश, निचले इलाकों के बागों में बाढ़ और जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर भूस्खलन ने कश्मीर की बागवानी, जो उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, को बुरी तरह प्रभावित कर दिया.
कश्मीर फ्रूट ग्रोअर्स एसोसिएशन के अनुसार, इस सीजन का नुकसान 150 से 200 करोड़ रुपये तक हो सकता है, जिससे करीब सात लाख किसान प्रभावित होंगे. एसोसिएशन के अध्यक्ष बशीर अहमद बशीर ने कहा, “यह प्राकृतिक आपदा है. हमारा माल या तो बागों और बाजारों में फंसा हुआ है या ट्रकों में सड़ रहा है. सेबों को चार-पांच दिनों में बाजार पहुंचना चाहिए. अगर नहीं पहुंचे तो वे ज्यादा पककर सड़ जाते हैं. यही हकीकत है.”

पुलवामा के चेरसू गांव के किसान और व्यापारी शेख जाकिर इस साल की अपनी सबसे अच्छी फसल की उम्मीद कर रहे थे. अब वह और दूसरे किसान सड़ते सेबों के साथ रह गए हैं.
उन्होंने कहा, “यह पिछले दस सालों की सबसे अच्छी फसल थी. फलों में कोई खराबी नहीं थी. लेकिन पानी रात को आया जब लोग सो रहे थे. सुबह देखा तो बागों में घुटनों तक पानी था. करीब 70 प्रतिशत ‘कुल्लू डिलिशियस’ सेब गिर गए थे. पेड़ उखड़ गए थे.”
जाकिर का अनुमान है कि उनके परिवार ने इस साल बागों की देखभाल में करीब 20 लाख रुपये लगाए. उन्होंने कहा, “जो सेब 1,100 से 1,200 रुपये डिब्बा बिकना चाहिए था, अब 200 रुपये में बिकेगा. लोग घबराए हुए हैं.”
हाईवे बंद होने से व्यापार ठप
सेब उगाने वाले किसान अब जो कुछ बचा है उसे बाजार तक ले जाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. श्रीनगर-जम्मू नेशनल हाईवे, जो घाटी का देश से एकमात्र हर मौसम में खुला रहने वाला सड़क मार्ग है, अगस्त के अंत से भूस्खलन और पत्थर गिरने की वजह से बार-बार बंद हो रहा है. फलों से भरे ट्रक कई दिनों से फंसे हैं. ड्राइवरों को सड़क किनारे सड़ा हुआ माल उतारने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.
इस बीच, किसानों ने बताया कि केवल मुगल रोड ही खुला है जहां छह पहियों वाले छोटे ट्रक ही जा सकते हैं और फल सिर्फ जम्मू तक ही ले जाए जा सकते हैं.

जाकिर ने कहा, “कल से अब तक कम से कम 15-20 गाड़ियों को खाली करके दोबारा पैक करना पड़ा. बक्सों से रस टपक रहा था. फल अगर चार-पांच दिन सड़क पर रह जाएं तो खत्म हो जाते हैं.”
हजारों फल उत्पादकों की चिंता को दोहराते हुए बशीर ने कहा कि नेशनल हाईवे-44 करीब 10 दिनों से बंद है. “छोटे छह पहियों वाले ट्रक अभी भी मुगल रोड से दिल्ली जा सकते हैं. लेकिन बड़े वाहन, जिनमें 1200 बॉक्स होते हैं और जो मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और यहां तक कि बांग्लादेश जा रहे थे, वे फंसे हुए हैं. हर दिन की देरी का मतलब है और ज्यादा नुकसान.”
पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने माइक्रोब्लॉगिंग साइट एक्स पर पोस्ट साझा कर केंद्र सरकार से अपील की कि सड़कें बंद होने से सैकड़ों फल-लदे वाहन फंस गए हैं जिससे “अनिवार्य नुकसान” हो रहा है, इसलिए आपातकालीन परिवहन उपाय किए जाएं.
उन्होंने लिखा, “मैं रेल मंत्री @AshwiniVaishnaw से अपील करती हूं कि घाटी और दिल्ली के बीच एक विशेष ट्रेन सेवा शुरू करें ताकि किसानों को हो रही चुनौतियों को कम किया जा सके. ऐसा कदम व्यापार से जुड़े सभी लोगों को बहुत राहत देगा. @RailMinIndia”
अपरिवर्तनीय नुकसान
बागान भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. सेब के पेड़ जो आमतौर पर 12 साल में फल देना शुरू करते हैं, वे उखड़ गए हैं. जाकिर ने बताया, “पुलवामा और कुलगाम में हजारों पेड़ उखड़ गए हैं. एक बड़ा पेड़ 50 बॉक्स दे सकता है, जबकि छोटा पेड़ मुश्किल से एक या दो. इन्हें खोना सिर्फ इस साल का नुकसान नहीं है, बल्कि दशकों का नुकसान है.”
जाकिर ने बताया कि बागों में पानी भरने से पेड़ कमजोर हो जाएंगे और इसका लंबी अवधि का नुकसान होगा, जिसकी भरपाई संभव नहीं. “उनकी पकड़ फल पर से खत्म हो गई है. बचे हुए सेब भी ज्यादा देर शाखाओं पर नहीं टिकेंगे. हमें मजबूरी में जल्दी फसल काटनी पड़ रही है, जिससे गुणवत्ता और शेल्फ-लाइफ प्रभावित होगी.”
जम्मू-कश्मीर बागवानी विभाग के अनुसार, बागवानी से हर साल 20,000 करोड़ रुपये की आय होती है और लगभग सात लाख परिवारों की आजीविका इससे चलती है. जिसमें सेब घाटी के फलों के उत्पादन का सबसे बड़ा हिस्सा है. पुलवामा के एक और किसान जाहिर शकील ने दिप्रिंट से कहा, “हम सरकार से मांग कर रहे हैं कि सड़कों के बंद होने पर फल से भरे ट्रकों को प्राथमिकता दी जाए और जिनकी फसलें बर्बाद हो गई हैं उन्हें मुआवजा दिया जाए.”
शकील ने इस साल के नुकसान की तुलना 2014 की बाढ़ से की. उन्होंने कहा, “इस साल की फसल दशकों की सबसे अच्छी थी. अगर हम 100 बॉक्स की उम्मीद कर रहे थे तो अब मुश्किल से 40-50 मिलेंगे. बाकी नष्ट हो गया.” 2014 की बाढ़ में कश्मीर की सेब फसल को 1000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था.
शकील ने आगे कहा कि किसानों को अतिरिक्त नुकसान हुआ क्योंकि उन्होंने पिछले आठ महीनों में कम से कम 2 लाख रुपये उच्च गुणवत्ता वाले खाद और मजदूरों पर खर्च किए थे. जो अब बेकार चला गया.

पुलवामा में किसानों का कहना है कि नुकसान सिर्फ आर्थिक नहीं है. बशीर ने बताया कि उन्हें किसानों से परेशान करने वाले फोन आ रहे हैं जिनमें वे समाधान और मदद मांग रहे हैं. “हम उन्हें क्या कहें. यह प्राकृतिक आपदा है. हर जगह किसान रो रहे हैं, कश्मीर में, पंजाब में. हम केवल सरकार से कह सकते हैं कि वह तुरंत कदम उठाए, इससे पहले कि नुकसान अपूरणीय हो जाए.”
इस साल का नुकसान दो कठिन वर्षों के बाद आया है जब किसानों को बाजार में कम दामों का सामना करना पड़ा था क्योंकि हिमाचल प्रदेश में एक साथ बंपर पैदावार हुई थी और आयातित सेब भारतीय बाजारों में आ गए थे.
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