नयी दिल्ली/मुंबई, 13 जून (भाषा) प्रतिदिन हजारों वाणिज्यिक उड़ानें आसमान में उड़ान भरती हैं और चमकीले नारंगी रंग वाला एक मजबूत बक्सा विमान के मुख्य भाग में छिपा कर रखा होता है।
‘ब्लैक बॉक्स’ के नाम से जाना जाने वाला यह बक्सा उड़ान के दौरान बिना किसी रुकावट डेटा रिकॉर्ड करता है। बृहस्पतिवार दोपहर को हुई एअर इंडिया विमान दुर्घटना जैसे हादसों के कारणों का पता लगाने में ये महत्वपूर्ण साबित होते हैं।
आधुनिक विमानों में कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (सीवीआर) और डिजिटल फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (डीएफडीआर) होते हैं।
आम तौर पर इन्हें ब्लैक बॉक्स कहा जाता है, हालांकि उच्च दृश्यता सुनिश्चित करने के लिए इन्हें चमकीले नारंगी रंग से रंगा जाता है।
कुछ विमानों में दोनों रिकॉर्डर एकीकृत होते हैं।
विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (एएआईबी) ने अप्रैल 2025 में, विमान दुर्घटनाओं की अधिक प्रभावी जांच करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी में अपने परिसर में एक फ्लाइट रिकॉर्डर प्रयोगशाला स्थापित की।
एजेंसी के अनुसार, डीएफडीआर चमकीले नारंगी रंग से लेपित किया जाता है और पानी के अंदर इसका पता लगाने के लिए स्वचालित रूप से सक्रिय सिग्नलाइजेशन के साथ इसे सुरक्षित रूप से जोड़ा जाता है।
नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत, एएआईबी दुर्घटनाओं की विस्तृत जांच करता है और सुरक्षा में सुधार के उपाय भी सुझाता है।
अहमदाबाद से लंदन के गैटविक जा रहे एअर इंडिया के बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर विमान के बृहस्पतिवार को उड़ान भरने के तुरंत बाद दुर्घटनाग्रस्त होने की जांच एएआईबी द्वारा की जा रही है।
फ्लाइट रिकॉर्डर ट्रैजेक्टर
फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर का विकास समय के साथ हुआ। इसकी शुरुआत डेटा रिकॉर्ड करने के लिए धातु के फ्वॉइल के इस्तेमाल से हुई और बाद में, उन्हें चुंबकीय टेप से बदल दिया गया। वर्तमान में, फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर में ‘सॉलिड-स्टेट चिप’ का उपयोग किया जाता है।
फ्लाइट रिकॉर्डर का इतिहास
1950 : फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (एफडीआर) की पहली पीढ़ी रिकॉर्डिंग माध्यम के रूप में धातु के फ्वॉइल के साथ तैयार की गई।
1953: जनरल मिल्स ने लॉकहीड एयरक्राफ्ट कंपनी को पहला एफडीआर बेचा, जो पीले रंग के गोलाकार खोल में बंद था।
1954: ऑस्ट्रेलिया के डेविड रोनाल्ड डी मे वॉरेन ने एक हवाई दुर्घटना की जांच करते हुए दुनिया के पहले एफडीआर का आविष्कार किया।
1953 में, जेट ईंधन विशेषज्ञ वॉरेन, हवा में विमानों के आग के गोले में तब्दील होने के कारणों का विश्लेषण करने वाली एक विशेष टीम के हिस्से के रूप में काम कर रहे थे।
इसके बाद, उन्होंने एफडीआर. का आविष्कार किया ताकि इसकी रिकॉर्डिंग विमान दुर्घटनाओं के विश्लेषण में सहायक हो सके।
1960 : विमानों के लिए एफडीआर और सीवीआर अनिवार्य कर दिए गए।
1965 : एफडीआर को चमकीले नारंगी या पीले रंग से रंगा जाना आवश्यक था, ताकि दुर्घटना स्थलों पर उन्हें आसानी से खोजा जा सके।
1990 : एफडीआर में चुंबकीय टेप की जगह ‘सॉलिड-स्टेट मेमोरी डिवाइस’ ने ले ली।
अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (आईसीएओ) के अनुसार, कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर से प्राप्त ऑडियो रिकॉर्डिंग चालक दल की प्रतिक्रियाओं से जुड़े विवरण प्रदान कर फ्लाइट डेटा को व्यापक बनाती है।
रिकॉर्डिंग इस बात का आकलन करने में भी सहायता करती है कि रेडियो संचार या अन्य बाहरी व्यवधान दुर्घटना में कैसे कारक हो सकते हैं।
आईसीएओ के अनुसार, उनके डेटा ने जांचकर्ताओं को यह समझने में सहायता की है कि दुर्घटना या घटना से पहले और उस दौरान विमान की स्थिति क्या होती है।
भाषा सुभाष पवनेश
पवनेश
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