नई दिल्ली : मद्रास उच्च न्यायालय ने मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा तमिलनाडु के पांच कलेक्टरों को जारी किए गए समन की कार्रवाई पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी है, यह देखते हुए कि केंद्रीय एजेंसी का यह कदम “अपराध के अुनमान पर जांच” का हिस्सा प्रतीत होता है. पहले से दर्ज एक अपराध की जांच करने के बजाय, यह पता लगाने की कोशिश की गई है, क्या कोई अपराध किया गया है.
यह आदेश बुधवार को सार्वजनिक किया गया.
ईडी ने नदी से खनन की गई रेत की अवैध बिक्री के आरोपों पर सितंबर से राज्यभर में रेत खदानों की जांच के तहत समन जारी किया था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, केंद्रीय एजेंसी इस बात की जांच कर रही हैं कि क्या नदी से निकाली गई रेत को ऑनलाइन बिक्री तंत्र के बजाय ऑफ़लाइन बेचा जा रहा था, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हो रहा था. मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष ईडी ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार मामले में आरोपियों को बचाने का प्रयास कर रही है.
समन पर अंतरिम रोक लगाते हुए, न्यायमूर्ति एस.एस. सुंदर और सुंदर मोहन की पीठ ने कहा, “यह किसी भी आपराधिक गतिविधि के परिणामस्वरूप, अपराध की किसी भी तरह की आय संभावना की जांच का एक कोशिश है, जिसे (मामले को) कि राज्य की एजेंसियों ने अभी तक दर्ज नहीं किया है.”
अदालत ने कहा कि इस आक्षेपित समन द्वारा, प्रतिवादी अपराध का अनुमान लगाकर इस अभियान में शामिल हुए कि क्या जिला प्रशासन से जुटाई गई जानकारी और सबूतों के आधार पर अन्य स्रोतों के जरिए अपराध पर आगे की कार्रवाई की जा सकती है, ताकि प्रतिवादी अपराध की आय की पहचान कर सके, जो उन्हें पीएमएलए, 2002 के तहत आगे बढ़ने में मदद करता.
अदालत उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए) के तहत वेल्लोर, तिरुचिरापल्ली, करूर, तंजावुर और अरियालुर जिलों के कलेक्टरों को जारी किए गए समन को रद्द करने की मांग की गई थी. इन समन के तहत उन्हें ईडी द्वारा की जा रही जांच के संबंध में सबूत देने और रिकॉर्ड पेश करने की जरूरत थी. राज्य सरकार और कलेक्टरों द्वारा समन के साथ-साथ राज्य सरकार की सहमति के बिना ऐसे अपराधों की जांच करने के ईडी के अधिकार को चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर की गई थीं.
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याचिकाकर्ताओं ने रेत खनन के संबंध में जांच करने के ईडी के अधिकार क्षेत्र पर भी सवाल उठाया था और कहा था कि यह राज्य सरकार के विशेष क्षेत्र में है.
ईडी ने अपराध की आय को लेकर मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों की जांच के लिए पीएमएलए के तहत शिकायत दर्ज की है. मनी लॉन्ड्रिंग, अवैध गतिविधियों से अर्जित धन- या अपराध की आय – को “सफेद” धन में परिवर्तित करने का कार्य होता है.
इसलिए, इन आय को कथित तौर पर किसी व्यक्ति द्वारा किए गए अलग अपराध से जोड़ना होता है, जिसके आधार पर ईडी पीएमएलए के तहत अपनी स्वतंत्र शिकायत दर्ज करता है. पीएमएलए इन अलग-अलग अपराधों और कानूनों को सूचीबद्ध करता है, और इन्हें अनुसूचित अपराध या विधेय अपराध कहा जाता है. इसलिए, सरल शब्दों में, आमतौर पर कम से कम दो मामले समानांतर में चलते हैं – एक अनुसूचित अपराध के तहत, और दूसरा मनी लॉन्ड्रिंग को लेकर पीएमएलए के तहत.
इस संदर्भ में, अदालत ने कहा कि मामले में ईडी की जांच अपराध की आय के संबंध में नहीं, बल्कि यह पता लगाने के लिए है कि क्या मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित कोई अनुसूचित अपराध किया गया था. मामला 21 दिसंबर के लिए टाल दिया गया है.
समन
ईडी ने कलेक्टरों को निर्धारित प्रारूप में संबंधित जिले के सभी रेत खनन स्थलों की सूची के साथ अपने आधार और पासपोर्ट आकार की तस्वीरों की एक प्रति के साथ उपस्थित होने को कहा गया था. उन्हें इन शीर्षकों के तहत साइटों का विवरण देना जरूरी था: (ए) साइट का नाम, (बी) खदान का पूरा पता, (सी) खदान का जीपीएस समन्वय, (डी) डिपो का पूरा पता, (ई) डीपो की जीपीएस कोऑर्डिनेट, (एफ) स्वीकृत क्षेत्र, (जी) व्यक्तिगत टिप्पणियों के साथ स्वीकृत गहराई.
इन प्रश्नों से, अदालत ने अनुमान लगाया कि ईडी की जांच “अपराध की मौजूदा आय के संबंध में नहीं थी, बल्कि यह पता लगाने के लिए थी कि क्या जिले में कोई अनुसूचित अपराध किया गया है.”
पिछले फैसलों का हवाला देते हुए, अदालत ने कहा कि पीएमएलए, 2002 के तहत अधिकारी किसी भी व्यक्ति पर काल्पनिक आधार पर या इस धारणा पर मुकदमा नहीं चला सकते कि कोई अनुसूचित अपराध किया गया है, जब तक कि ऐसा मामला पुलिस में दर्ज न हो और पूछताछ या ट्रायल के लिए ऐसी शिकायत लंबित न हो.
इसने पाया कि, “जिला कलेक्टर से बुनियादी जानकारी पाने के बाद आगे की जांच द्वारा एक विधेय (वैध) अपराध के वजूद में होने का पता लगाने के लिए उन्हें समन जारी किया गया था. दूसरे शब्दों में, जांच अवैध खनन के प्रभाव की पहचान करने के लिए प्रतीत होती है, भले ही इससे अनुसूचित अपराध के होने अनुमान या फिर ‘अपराध की आय’ के होने का अनुमान लगाया जा सके.”
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