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Sunday, 5 May, 2024
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भारत में पहली बार UP की एक महिला को दी जा सकती है फांसी, कुल्हाड़ी से की थी पूरे परिवार की हत्या

शबनम और उसके प्रेमी सलीम को, उसके परिवार के सात लोगों की हत्या का क़सूरवार पाया गया है, जिसमें उसका 10 महीने का भतीजा भी शामिल था.

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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में मौत की सज़ा पाई हुई शबनम अली, आज़ाद भारत में फांसी पर चढ़ाई जाने वाली, पहली महिला बन सकती है.

शबनम को उत्तर प्रदेश की मथुरा जेल में फांसी दी जा सकती है- जो देश की अकेली जेल है, जहां महिला अपराधियों को फांसी पर चढ़ाने के लिए, एक अलग कक्ष है.

लेकिन, अमरोहा की सेशंस कोर्ट ने अभी तक, डेथ वॉरंट जारी नहीं किया है, जिसमें फांसी की तारीख़ और समय तय किया जाता है. उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ जेल अधिकारियों का कहना है, कि वो कम से कम दो बार, कोर्ट को इसकी याद दिला चुके हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल जनवरी में, शबनम की सज़ाए मौत को बरक़रार रखा था.

उसे और उसके प्रेमी सलीम को, 14-15 अप्रैल 2008 की रात, अपने परिवार के सात सदस्यों को बेहोश करने के बाद, कुल्हाड़ी से उनकी हत्या का दोषी क़रार दिया गया था, जिनमें उसका 10 महीने का भतीजा भी शामिल था.

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सलीम को भी फांसी की सज़ा सुनाई गई थी, और वो फिलहाल प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल में है.

डेथ वॉरंट का इंतज़ार

यूपी के एक वरिष्ठ जेल अधिकारी के अनुसार, शबनम अपने सभी क़ानूनी उपाय इस्तेमाल कर चुकी है. स्वर्गीय राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अगस्त 2016 में, उसकी दया याचिका ख़ारिज कर दी थी, और सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी पुनर्विचार याचिका को ठुकराते हुए, सज़ाए मौत बरक़रार रखी था.

अधिकारी ने कहा, ‘उसकी सभी याचिकाएं ख़त्म हो चुकी हैं. हमने शीर्ष अदालत के अस्वीकृति आदेश को, तुरंत संबंधित सत्र न्यायालय (अमरोहा) को भेज दिया था, लेकिन उसका वॉरंट नहीं आया है’.

‘शीर्ष अदालत से पुनर्विचार याचिका ख़ारिज होने के बाद, रामपुर जेल अधीक्षक ने 6 मार्च 2020 को, अमरोहा सत्र न्यायालय को लिखा था, कि शबनम के केस में डेथ वॉरंट जारी किया जाए. जेल अधीक्षक ने 28 जनवरी 2021 को, सत्र न्यायालय से फिर तक़ाज़ा किया. आमतौर से जेल अधीक्षक सेशंस कोर्ट को लिखते नहीं हैं, ये प्रोटोकोल का हिस्सा नहीं है. इसकी बजाय निचली अदालतों को, शीर्ष अदालत के आदेश का संज्ञान लेते हुए, डेथ वॉरंट जारी करना होता है’.

एक अन्य जेल अधिकारी ने कहा, ‘अब कुछ ख़बर है, कि डेथ वॉरंट के तक़ाज़े के बाद, शबमन की फाइल सेशंस कोर्ट में आगे बढ़ रही है, लेकिन अधिकारिक रूप हमें अभी तक, इस बारे में सूचित नहीं किया गया है’.

दिप्रिंट ने शबनम की वकील श्रेया रस्तोगी से संपर्क किया, जिन्होंने केस की बारीकियों में जाने से इनकार कर दिया. रस्तोगी ने कहा, ‘इस स्टेज पर हम कोई टिप्पणी नहीं कर सकते’.

लेकिन, क़ानूनी विशेषज्ञ अनूप सुरेंद्रनाथ ने कहा, कि शबनम के पास अभी भी कुछ क़ानूनी रास्ते बचे हैं. एनएलयू दिल्ली में प्रोजेक्ट 39ए (अपराधिक न्याय केंद्र) के कार्यकारी निदेशक सुरेंद्रनाथ ने कहा, ‘डेथ वॉरंट तब तक जारी नहीं किया जा सकता, जब तक शबनम अपने सारे क़ानूनी उपाय इस्तेमाल न कर ले. शबनम के पास अभी कुछ उपाय बचे हैं, जिनमें एक और रिव्यू पिटीशन शामिल है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘फैसले में ख़ामियों के आधार पर, वो एक क्यूरेटिव पिटीशन भी दायर कर सकती है, या अगर फरियादी दावा करे, कि उसे सुना नहीं गया’. उन्होंने ये भी कहा, ‘अगर डेथ वॉरंट जारी हो जाता है, तो उसे भी शीर्ष अदालत में चुनौती दी जा सकती है’.

मथुरा जेल में फांसी की तैयारी

लेकिन, मथुरा जेल के अधिकारियों ने पहले ही, फांसी देने की तैयारी शुरू कर दी है

फांसी पर चढ़ाने का ज़िम्मा पवन कुमार पर आया है, एक चौथी पीढ़ी का जल्लाद, जिसने पिछले साल तिहाड़ जेल में, निर्भया के बलात्कारियों को भी फांसी पर लटकाया था.

तैयारियों का जायज़ा लेने के लिए, वो पहले ही मथुरा जेल के फांसी कक्ष का दौरा कर चुका है. कुमार ने दिप्रिंट से कहा, ‘उसकी फांसी की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं’. उसने आगे कहा, ‘ये रस्सी बिहार के बक्सर से मंगाई गई है, और मैं बस तारीख़ का इंतज़ार कर रहा हूं. फांसी कक्ष की स्थिति की जांच करने के लिए, मैंने मथुरा जेल का दौरा किया है- लीवर और रस्सी आदि, ताकि सब चीज़ें सही हों’.

कुमार ने, जो मेरठ जेल में तैनात है, दिप्रिंट को बताया कि किसी पुरुष या महिला की फांसी में केवल ये अंतर है, कि ‘फांसी के कक्ष अलग’ होते हैं.

1870 में बनी मथुरा जेल देश की अकेली जेल है, जिसमें महिलाओं की फांसी के लिए एक अलग कक्ष है.

देश में इस कक्ष का एकमात्र उल्लेख, यूपी जेल मैनुअल 1956 में पाया जा सकता है, जिसमें मौत की सज़ा-याफ्ता महिलों को, फांसी देने के नियम तय किए गए हैं, और साथ ही ये भी कहा गया है, कि यहां केवल महिलाओं को फांसी दी जा सकती है.

लेकिन, पुरुषों और महिलाओं को फांसी देने के कक्ष एक जैसे होते हैं.


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वो अपराध जिसपर सज़ाए मौत मिली

शबनम को, सलीम के साथ मिलकर, उसके सात परिजनों की हत्या का दोषी क़रार दिया गया है.

मारने से पहले, उसने कथित रूप से पीड़ितों को बेहोश कर दिया- उसके पिता शौकत अली, 55, मां हाशमी,50, बड़ा भाई अनीस, 35, उसकी पत्नी अंजुम,25, छोटा भाई राशिद,22, और कज़िन राबिया,14. उसने कथित रूप से अपने 10 महीने के भतीजे (अनीस के बेटे) का भी गला घोंट दिया.

दोनों ने ये कथित हत्याएं इसलिए कीं, क्योंकि उसके परिवार को उनके रिश्तों पर ऐतराज़ था, जिसकी बुनियादी वजह उनकी शैक्षिक योग्यताएं थीं.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा की रहने वाली शबनम, अंग्रेज़ी और भूगोल में डबल पोस्टग्रेजुएट है. सलीम कक्षा छह ड्रॉपआउट है.

अभियोजन के अनुसार, 14 अप्रैल 2008 की रात, सलीम बावनखेड़ी गांव में शबनम के घर आया था, जहां उसने एक कुल्हाड़ी से, उसके परिजनों के गले काट डाले, जबकि शबनम उनके बाल पकड़े हुए थी

हत्याओं के पांच दिन बाद, जब शबनम को गिरफ्तार किया गया, तो उस समय वो सात हफ्ते के गर्भ से थी. उसका बेटा ताज, जो अब 12 साल का है, अपने पालक पेरेंट्स – उस्मान जो एक पत्रकार हैं, और उनकी पत्नी सुहीना- के साथ रहता है.

जेल मैनुअल के अनुसार कोई महिला क़ैदी, बच्चे के छह साल की उम्र को पहुंचने के बाद, उसे अपने साथ नहीं रख सकती.

ऊपर हवाला दिए गए पहले वरिष्ठ जेल अधिकारी ने कहा, ‘एक साल पहले ही उसे मुरादाबाद जेल से, रामपुर जेल भेजा गया था’. उन्होंने आगे कहा, ‘वो सामान्य है और ख़ामोश रहती है. ऐसा लगता है कि वो इसकी आभारी है, कि उसका बेटा एक अच्छा और सामान्य जीवन जिएगा. लेकिन फांसी सज़ा पाए दूसरे तमाम मुजरिमों की तरह, शबनम को भी लगता है कि उसकी सज़ा बदल दी जाएगी’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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