नई दिल्ली: एक नाटकीय घटनाक्रम में शनिवार की सुबह 5.47 बजे महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन हटा लिया गया और राज्य में भाजपा-एनसीपी की सरकार स्थापित हो गई. भाजपा के देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अजीत पवार के उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के इस अभूतपूर्व घटनाक्रम में जिस एक और बात ने विशेषज्ञों का ध्यान खींचा, वो है राष्ट्रपति शासन हटाए जाने की प्रक्रिया.
महाराष्ट्र में पिछले महीने हुए विधानसभा चुनाव के बाद सरकार का गठन नहीं हो पाने के मद्देनज़र 12 नवंबर को राष्ट्रपति शासन लगाया गया था. आमतौर पर केंद्रीय मंत्रिमंडल की राष्ट्रपति से सिफारिश के बाद राष्ट्रपति शासन हटाया जाता है. लेकिन मौजूदा मामले में केंद्र सरकार ने केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक के बगैर राष्ट्रपति शासन को हटाने के लिए भारत सरकार (कार्य संचालन) नियम-12 का उपयोग किया है.
इस प्रावधान में कहा गया है: ‘नियम से विचलन– प्रधानमंत्री किसी भी मामले में या मामलों की श्रेणियों में, अपनी समझ से आवश्यक सीमा तक इन नियमों से विचलन की अनुमति या सहमति दे सकता है.’ उल्लेखनीय है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में शासन की कार्यकारी शाखा के प्रमुख के रूप में अपने मंत्रिमंडल से सलाह-मशविरे के बगैर आपातकालीन अधिकार हासिल करने के लिए इसी प्रावधान का सहारा लिया था.
आमतौर पर ‘घटना विशेष से जुड़ी असाधारण तात्कालिकता या अप्रत्याशित आपात स्थिति’ में लागू किए जाने वाले इस प्रावधान के उपयोग पर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है.
‘साध्य अनियमितता’
वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने दिप्रिंट को बताया कि नियम-12 का इस्तेमाल एक ‘साध्य अनियमितता’ है – यानि जिसे राष्ट्रपति के फैसले को मंत्रिमंडल के समक्ष रखकर दूर किया जा सकता है.
इस बारे में विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा: ‘राष्ट्रपति द्वारा लिया गया निर्णय मंत्रिमंडल के समक्ष रखा जाएगा. मंत्रिमंडल को राष्ट्रपति के फैसले की पुष्टि करनी होगी… 44 वें संविधान संशोधन ने राष्ट्रपति को आपातकाल घोषित करते समय मंत्रिमंडल की सहायता और सलाह लेना अनिवार्य कर दिया है. लेकिन नियम-12 को तब भी लागू किया जा सकता है, जब राष्ट्रपति को इसके लायक तात्कालिकता दिखती हो, और बाद में वह इसे मंत्रिमंडल से अनुमोदित करा सकता है.’
हेगड़े ने कहा, ‘मुझे आपातकाल लगाए जाने के बाद प्रकाशित वो प्रसिद्ध कार्टून याद आता है जिसमें राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर करते दिखाया गया था, उसमें इस बात को चित्रित किया गया था कि मंत्रिमंडल का फैसला कितना महत्वपूर्ण होता है. जैसा कि इस मामले में दिखा, मात्र प्रधानमंत्री के भेजे नोट के आधार पर राष्ट्रपति नियम-12 का इस्तेमाल कर राष्ट्रपति शासन को खत्म कर सकता है.’
लोकसभा के पूर्व महासचिव और संविधान विशेषज्ञ पीडीटी अचारी राष्ट्रपति शासन हटाए जाने के शनिवार के कदम को एक अपवाद बताते हैं ‘जिसे आमतौर पर नहीं अपनाया जाता है’. पर, वह इस प्रक्रिया में कुछ भी कानून-विरुद्ध नहीं पाते हैं.
उन्होंने कहा, ‘ये नियम सरकार के परामर्श पर बनाए गए हैं और विशेष तौर पर मंत्रिमंडल के कामकाज के अनुरूप तैयार किए गए हैं. इसलिए राष्ट्रपति द्वारा नियम-12 का उपयोग बिल्कुल वैध है और इसकी मंत्रिमंडल द्वारा पुष्टि की जानी चाहिए.’
‘संविधान के साथ धोखा’
हालांकि, वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी मौजूदा घटनाक्रम में आपातकालीन प्रावधान के उपयोग को ‘संविधान के साथ धोखा’ बताते हैं.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘फैसला कामकाज के नियमों के अनुरूप लिया जाना चाहिए और सरकार को, मंत्रिमंडल के ज़रिए, ये फैसला करना चाहिए.’
तुलसी ने कहा, ‘इससे भी अहम बात, जो मीडिया के ज़रिए सामने आ रही है, ये है कि राकांपा-कांग्रेस-सेना गठबंधन के समर्थन में सौंपे गए विधायकों के पत्रों का अजीत पवार ने ये दावा करते हुए दुरुपयोग किया कि वे भाजपा-राकांपा गठबंधन के लिए हैं. हमारे पास पत्रों के पाठ मौजूद नहीं हैं, पर यदि उन पर राकांपा-कांग्रेस-सेना या सेना-कांग्रेस गठबंधन के नाम हैं, तो ऐसी स्थिति में राज्यपाल द्वारा अपनाई गई पूरी प्रक्रिया ही असंवैधानिक हो जाती है.’
उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है राज्यपाल को हटना पड़ सकता है.’
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