(अपर्णा बोस)
नयी दिल्ली, 20 जनवरी (भाषा) दिल्ली की जहांगीरपुरी में रहने वाली कई महिलाओं का पिछले साल हुए दंगे के बाद घरेलू सहायिका का काम छूट गया और वे अपनी जिंदगी को तब से संवारने की जद्दोजहद कर रही हैं और इनमें से कई महिलाएं ऐसी हैं जो काम पाने के लिए अपनी धार्मिक पहचान छिपाने को मजबूर हैं।
जहांगीरपुरी के सी ब्लॉक में पिछले साल अप्रैल में हुई हिंसक घटनाओं के बाद उत्तर पूर्वी दिल्ली के इस इलाके में सांप्रदायिक अविश्वास का माहौल है और कई महिलाओं का दावा है कि उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है।
उन्होंने दावा किया कि हिंसा के बाद हुए अतिक्रमण विरोधी अभियान ने उनकी मुश्किलों को तब और बढ़ा दिया जब कई अस्थायी दुकानों को हटा दिया गया या ध्वस्त कर दिया गया, जिन्हें महिलाएं चलाती थी।
अल्पसंख्यक समुदाय की एक महिला ने बताया कि झड़पों और दुकानों पर बुलडोजर चलाने के नौ महीने पूरे हो गए हैं, लेकिन ‘‘अब भी हम अपनी जिंदगी को पटरी पर लाने और घर चलाने को लिए कर्ज की वापसी में मुश्किल का सामना कर रहे हैं।’’
पहचान गुप्त रखते हुए महिला ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ हम हमेशा से अपनी धार्मिक पहचान की वजह से अनुचित व्यवहार का सामना कर रहे थे लेकिन हिंसा के बाद स्थितियां और बिगड़ गई।’’
महिला ने दावा किया कि ऐसी कई महिलाएं हैं जिन्हें घरेलू सहायिका का काम प्राप्त करने के लिए नाम बदलकर अपनी पहचान छिपानी पड़ी। उसने बताया, ‘‘बहुसख्यंक समुदाय के घरों ने उनकी बहन को काम देने से मना कर दिया।’’
महिला ने बताया, ‘‘ हिंदू और मुसलमान जहांगीरपुरी में वर्षों से शांतिपूर्ण तरीके से साथ रहते थे लेकिन हिंसा के बाद अल्पसख्यंक, खासतौर पर (समुदाय की)महिलाएं काम पर जब जाती हैं तो अनुचित व्यवहार और भेदभाव का सामना कर रही हैं।’’
उसने दावा किया, ‘‘ मेरी बहन रोहिणी में काम करने जाती थी, लेकिन बहुसंख्यक समुदाय के घरों में उसे काम मिलना बंद हो गया।’’महिला ने बताया कि उसकी 34 वर्षीय बहन के तीन बच्चे हैं और दो साल पहले पति से अलग होने के बाद वह एक मात्र कमाने वाली सदस्य है।
अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान अस्थायी दुकानों के ध्वस्त किए जाने से प्रभावित परिवारों की मदद कर रहे गैर सरकारी संगठन ‘माइल्स टू स्माइल्स’ का आकलन है कि सी ब्लॉक इलाके में ऐसी 70-80 महिलाएं हैं जिन्हें दंगों के बाद घरेलू सहायिका के काम से हाथ धोना पड़ा है।
संगठन के निदेशक आसिफ मुजतबा ने बताया कि ध्वस्तीकरण की वजह से 160 से अधिक परिवार वित्तीय रूप से प्रभावित हुए हैं।
उन्होंने बताया कि ‘‘ जहांगीरपुरी के हिंसा प्रभावित इलाके में करीब 80 प्रतिशत महिलाएं या तो अस्थायी दुकान चलाती थी या घरेलू सहायिका का काम करती हैं।’’
मुजतबा ने बताया, ‘‘जो महिलाएं घरेलू सहायिका का काम करती हैं, वे नाम बदल रही हैं और ‘हिजाब’ नहीं पहन रही हैं ताकि उनकी धार्मिक पहचान को छिपाया जा सके।’’
भाषा धीरज पवनेश
पवनेश
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