नई दिल्ली: पंजाब में मुख्य सचिव के पद पर 1987 बैच की आईएएस अधिकारी विनी महाजन की नियुक्ति कई वजहों से सुर्खियों में है. महाजन पंजाब में यह पद संभालने वाली पहली महिला तो हैं ही, लेकिन यह भी शायद पहला मौका होगा जब किसी राज्य में शीर्ष सिविल सेवक पद पर आसीन अफसर का जीवनसाथी (दिनकर गुप्ता) उसी राज्य का पुलिस महानिदेशक है.
हालांकि, महाजन की नियुक्ति को लेकर इसलिए भी सुगबुगाहट है, क्योंकि उन्होंने मुख्य सचिव बनने की दौड़ में पांच आईएएस अधिकारियों को पछाड़ दिया. महाजन, जो अक्टूबर 2024 तक इस पद पर रहेंगी, के चयन के लिए पंजाब के सबसे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी 1984 बैच के केबीएस सिद्धू के अलावा 1985 बैच के सतीश चंद्र, अरुण गोयल, कल्पना मित्तल बरुआ और सी राउल की वरिष्ठता की अनदेखी की गई है.
प्रशासनिक नियमों के अनुसार 30 वर्षों तक सेवा देने वाले किसी भी अधिकारी को चीफ सेक्रेटरी स्केल मिल सकता सकता है और फिर इनमें से किसी भी अधिकारी को किसी राज्य का मुख्य सचिव बनाया जा सकता है.
महाजन की नियुक्ति को लेकर संभवत: राज्य की नौकरशाही में चल रही सुगबुगाहट को ही महसूस करते हुए मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने सोमवार को कहा भी कि सेवा में निरंतरता और काबिलियत को ध्यान में रखकर यह फैसला किया गया.
अमरिंदर ने कहा, केबीएस सिद्धू राज्य में सबसे वरिष्ठ अफसर हैं. लेकिन, जून 2021 में सेवानिवृत्त हो जाएंगे. अरुण गोयल और सी राउल केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं. कल्पना मित्तल बरुआ और सतीश चंद्रा भी कुछ महीनों में सेवानिवृत्त होने वाले हैं. ऐसे में मेरे पास महाजन के अलावा 2022 तक पद संभालने के लिए कोई और नहीं था. निरंतरता को ध्यान में रखकर यह किया गया. उनका (अमरिंदर) कार्यकाल उसी वर्ष विधानसभा चुनावों तक जारी रहना है.
वरिष्ठता में नजरअंदाज आईएएस अधिकारियों ने तो चुप्पी साध रखी है. लेकिन पिछले हफ्ते पंजाब के नेता प्रतिपक्ष सुखपाल सिंह खैरा ने इस कदम को असंवैधानिक करार दिया और इसे शीर्ष अधिकारियों का मनोबल गिराने और अपमानित करने वाला बताया.
बमुश्किल असामान्य मामला
महाजन के मामले को बमुश्किल ही असामान्य कहा जा सकता है. प्रशासनिक नियुक्तियों में वरिष्ठता एक निर्धारित सिद्धांत होना अपेक्षित है. लेकिन वैधानिक तौर पर किसी ठोस व्यवस्था के अभाव में मुख्य सचिवों, जो सभी विभागों के शीर्ष समन्वयकों के तौर पर काम करते हैं, के मामले में इसे आसानी से और बार-बार नजरअंदाज कर दिया जाता है.
एक वरिष्ठ आईएएस ने कहा, किसी भी अधिकारी के लिए अपने जूनियर के अधीन काम करना बेहद शर्मनाक और अपमानजनक है. लेकिन यह किसी से छिपा नहीं है. यह तो ऐसा है जिसे सभी सरकारों और सभी राज्यों में किया जाता है.
अधिकारी ने आगे कहा, यद्यिप योग्यता-सह-वरिष्ठता के सिद्धांत का पालन करने की बात कही जाती है. लेकिन वास्तव में यह सुनिश्चित करने के लिए कोई नियम या दिशानिर्देश नहीं हैं कि मनमाने ढंग से नियुक्ति के लिए मेरिट क्लाज का सहारा न लिया जाए.
हाल के कुछ उदाहरण यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि वरिष्ठता की अनदेखी कितनी आम बात हो गई है.
तेलंगाना में 1989 बैच के सोमेश कुमार को दिसंबर 2019 में मुख्य सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था, जिसमें 12 अधिकारियों की वरिष्ठता की अनदेखी हुई. इनमें एक तो उनसे पांच साल वरिष्ठ थे. इस पर विपक्षी कांग्रेस ने सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति पर निष्ठा का ईनाम देने का आरोप लगाया था.
इससे कुछ समय पहले ही मेघालय में 1987 बैच के एमएस राव ने मुख्य सचिव बनने ही दौड़ में अपने से दो साल सीनियर हेक्टर मार्विन को पीछे छोड़ दिया था.
मार्विन, जो उस वक्त अतिरिक्त मुख्य सचिव के रूप में सेवारत थे, ने तब सरकार को एक पत्र लिखकर कहा था, यह बेहद दुखद है कि इतने वर्षों तक पूरी निष्ठा और ईमानदारी से राज्य की सेवा करने के बावजूद बिना किसी वैध कारण मुख्य सचिव के पद के लिए मेरी वरिष्ठता की अनदेखी की गई. इस अधिमूल्यन ने राज्य में एक खराब मिसाल कायम की है क्योंकि इससे सरकार के शीर्ष प्रशासनिक पदों के लिए अधिकारियों में एक अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाएगी.
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महाराष्ट्र में तो 2018 में दो आईएएस अधिकारी मेधा गाडगिल और सुधीर श्रीवास्तव विरोध के तौर पर छुट्टी पर चले गए थे, जब उनकी वरिष्ठता की अनदेखी कर उनके 1983 बैच के साथी डीके जैन की नियुक्ति की गई, जो इंट्रा-बैच सीनियॉरिटी में दोनों से जूनियर थे. हालांकि, इस तरह के विरोध दुर्लभ हैं, न कि स्वत: स्फूर्त.
बेहद शर्मनाक
भारत सरकार में सचिव के रूप में कार्य करने वाले आईएएस एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष राकेश श्रीवास्तव कहते हैं कि वरिष्ठता की अनदेखी सभी राज्यों में होती है. यह पूरी तरह से मुख्यमंत्रियों पर निर्भर है कि वे किसे चुनना चाहते हैं. इसको लेकर कोई नियम नहीं है.
श्रीवास्तव ने कहा, आमतौर पर जब एक कनिष्ठ को मुख्य सचिव नियुक्त किया जाता है, तो उसके वरिष्ठों को सेवानिवृत्ति तक सचिवालय से इतर ट्रस्टों, निगमों आदि में तैनात कर दिया जाता है. लेकिन उनकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट मुख्य सचिव ही बनाते हैं और यह किसी भी वरिष्ठ अधिकारी के लिए बहुत अपमानजनक होता है.
उन्होंने आगे कहा, इस पर भी यह मुद्दा शायद ही कभी उठाया गया हो.
श्रीवास्तव ने कहा, ज्यादातर लोग इसे अनदेखा कर देते हैं और जो भी काम सौंपा जाता है. उसे करते रहते हैं. यदि आप कैट (केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण) में जाएंगे भी तो निर्णय आने में लंबा समय लगेगा, फिर मामला डीओपीटी (कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग) के पास जाएगा. तब तक तो संबंधित अधिकारी शायद सेवानिवृत्त भी हो जाएगा.
एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी, जिन्होंने खुद अपनी वरिष्ठता की अनदेखी झेली है, ने कहा कि ऐसे संवेदनशील पदों पर नियुक्तियों के लिए नियमों या दिशानिर्देशों का अभाव चिंताजनक है.
उक्त अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, तीस साल (चीफ सेक्रेटरी स्केल पाने के लिए) एक योग्यता मानदंड है. लेकिन, इसका उपयोग 30 साल की सेवा अवधि पूरी कर चुके सभी अधिकारियों में से अपने पसंदीदा को चुनने के तरीके के रूप में किया जाता है. वरिष्ठता के सिद्धांत की पूरी तरह से अनदेखी होती है.
उन्होंने कहा, अधिकारियों को इस तरह के मनमाने रवैये से बचाने के लिए कोई नियम नहीं हैं और यह एक अंतर्निहित असमान प्रतिस्पर्धा बन जाती है. अधिकारियों की स्थिति ऐसी खराब है कि अगर कोई बोलता भी है तो बदले में एफआईआर, पूछताछ, भ्रष्टाचार के मामले तक दर्ज हो सकते हैं.
आईपीएस के लिए नियम, आईएएस के मामलों में मनमानी
उक्त आईएएस अधिकारी ने कहा कि यदि पुलिस महानिदेशक के पद के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश हो सकते हैं, तो मुख्य सचिव के लिए क्यों नहीं?
उन्होंने कहा, अब समय आ गया कि भारत सरकार मुख्य सचिव की नियुक्ति और कार्यकाल के निर्धारण के लिए कुछ नियम-कायदे या दिशानिर्देश तय करे. बाकी छोड़ दें तो भी मुख्य सचिव का पद डीजीपी के पद के बराबर या उससे कहीं अधिक संवेदनशील है.
सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार, डीपीजी की नियुक्ति के लिए दावेदारों के नाम राज्य सरकारों को संघ लोक सेवा आयोग को भेजने होते हैं और वो भी डीजीपी की सेवानिवृत्ति से तीन महीने पहले.
इसके बाद यूपीएससी योग्यता और वरिष्ठता के आधार पर तीन लोगों का एक पैनल तय करती है, जिनकी दो साल की सेवा बची हुई हो. राज्य सरकारें तब इसी पैनल में से एक अधिकारी चुनती हैं.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद भी कई बार डीजीपी तक की नियुक्तियां विवादों में घिरी रही है. हालांकि आईएएस अधिकारियों का तर्क है कि उनके आईपीएस साथियों के लिए कम से कम ऐसे दिशानिर्देश मौजूद तो हैं.
ऐसा ही कुछ मामला महाजन के पति दिनकर गुप्ता का भी है. फरवरी 2019 में गुप्ता को पंजाब डीजीपी नियुक्त किए जाने के दौरान पांच आईपीएस अधिकारियों की अनदेखी हुई थी. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के उल्लंघन को लेकर केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने इस साल जनवरी में उनकी नियुक्ति को रद्द कर दिया था.
हालांकि, मुकदमे के चलते वह डीजीपी की कुर्सी पर बने हुए हैं.
राजनेताओं की राय, निष्पक्षता होनी चाहिए
राजनेताओं का भी मानना है कि ऐसी नियुक्तियों में अधिक निष्पक्षता होनी चाहिए. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्र में डीओपीटी के प्रभारी रह चुके पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा, आदर्श स्थिति तो यही होगी कि वरिष्ठता क्रम का उल्लंघन न हो.
कांग्रेस नेता ने कहा, उदाहरण स्वरूप अपने कार्यकाल में हमने कहा कि केंद्र में कुछ वरिष्ठ पदों कैबिनेट सचिव, रक्षा सचिव, गृह सचिव आदि के लिए निर्धारित कार्यकाल होगा. हम मुख्य सचिवों के लिए ऐसी व्यवस्था करने से रह गए.
मानदंड पूरी तरह से यांत्रिक बनाए जाने की जरूरत नहीं है. लेकिन कुछ नियमों पर तो सरकार को विचार करना चाहिए.
पूर्व आईएएस अधिकारी और केंद्रीय मंत्री रह चुके भाजपा नेता केजे अल्फोंस ने भी इससे सहमति जताई.
उन्होंने कहा, राजनीतिक कनेक्शन रखने वालों के लिए अक्सर कुशल अधिकारियों की वरिष्ठता ताक पर रख दी जाती है. वास्तविकता यही है कि निष्ठा के आगे सिविल सेवा की आधारशिला योग्यता की पूरी तरह अनदेखी हो रही है.
अल्फोंस ने आगे कहा कि जहां राजनीतिक हस्तक्षेप है, वहां कोई दोषमुक्त निर्धारित मापदंड नहीं हो सकता.
उन्होंने कहा, आमतौर पर एक एसीआर को निर्धारित मानदंड माना जाएगा. लेकिन इस देश में हर आईएएस अधिकारी एसीआर अपने मनमुताबिक तैयार कराने में सक्षम हैं. वे सभी राजनीतिक जीव हैं. तो फिर हम क्या करें? दरअसल हमें बेहतर राजनेताओं की जरूरत है जो योग्यता को अहमियत देते हों.
हालांकि, कुछ राजनेताओं के लिए इस सबके लिए खुद आईएएस अधिकारी जिम्मेदार हैं.
पूर्व रेल मंत्री और राज्यसभा सदस्य दिनेश त्रिवेदी ने कहा, भारतीय नौकरशाही दुनिया में सर्वश्रेष्ठ में से एक है. लेकिन उन्हें यह तय करना होगा कि किसकी सेवा करना चाहते हैं. अपने राजनीतिक आकाओं की या या जनता की.
किसी की वरिष्ठता की अनदेखी हो या किसी की नियुक्ति हो जाए. नौकरशाही के स्तर पर एक अधिकारी का काम तो अंततः फाइल क्लियर करना ही रहेगा ना, क्या ऐसा नहीं है? इसलिए इस तरह की खामियों के लिए खुद नौकरशाही जिम्मेदार है.
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