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Saturday, 27 April, 2024
होमदेशकेवल 4 महीनों में वित्तमंत्री के तौर पर निर्मला सीतारमण भारत की मंदी का चेहरा बन गई हैं

केवल 4 महीनों में वित्तमंत्री के तौर पर निर्मला सीतारमण भारत की मंदी का चेहरा बन गई हैं

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का मई 2019 में सभी महत्वपूर्ण पदों के प्रभार संभालने के बाद उनका करिअर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है.

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नई दिल्ली : मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में जब निर्मला सीतारमण को वित्तमंत्री के रूप में नामित किया गया, तब न केवल इस हाई-प्रोफाइल जिम्मेदारी के लिए उनके के लिए खुशी मनाई गई, बल्कि पहली महिला वित्तमंत्री के रूप में उनके लिए जश्न मनाया गया, क्योंकि उन्होंने अर्थशास्त्र में एमए किया है और इससे पहले उन्होंने इस मंत्रालय में काम किया था. लेकिन, ये जश्न अल्पकालिक रहे हैं.

60 वर्षीय निर्मला सीतारमण मई में कार्यभार संभालने के बाद दो चौंकाने वाले डेटा के साथ मंत्रालय पहुंची थीं.

पहले डेटा में 2018-19 की अंतिम तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था 6 प्रतिशत से कम हो गई थी और पूरे वर्ष की वृद्धि दर घटकर 6.8 प्रतिशत रह गई थी और दूसरे डेटा में पता चलता है कि 2017-18 में बेरोजगारी दर 6 प्रतिशत को छू गई थी.

उनकी शुरुआत इससे ज्यादा चुनौतीपूर्ण नहीं हो सकती थी. भारत की आर्थिक स्थिति तब खराब हो गई, जब देश मंदी की मार झेल रहा था और 2019-20 की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 5 प्रतिशत को भी छू नहीं सकी.

एक के बाद एक आर्थिक संकेतक हर दूसरे हफ्ते बुरी खबर लाने लगे जिसके बाद निर्मला सीतारमण मंदी का चेहरा बन गई हैं. उद्योगपतियों और व्यापारी नेताओं से परामर्श कर देश भर में यात्रा की और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अपने प्रशासनिक अधिकारियों को एकजुट करने के लिए नए उपायों को लागू करने की कोशिश की.

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उन्होंने भारत के सबसे खराब आर्थिक संकटों में से एक के बीच रास्ता निकालने का प्रयास किया है. सीतारमण ने अपने पहले बजट में बहुत कुछ नहीं किया है. उनको प्रतिगामी उपायों के लिए व्यापक आलोचना झेलनी पड़ी और लगातार दोस्तों, प्रतिद्वंदियों और वैश्विक एजेंसियो से आलोचना का सामना करना पड़ा.


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जेएनयू की पूर्व स्टूडेंट निर्मला की व्यापारियों ने आलोचना की और मोदी समर्थकों द्वारा निशाना बनाया गया है. हालांकि, उनके अर्थव्यवस्था को संभालने को लेकर सीधे तौर पर तो नहीं पति ने भी आलोचना की. हालांकि, उन्हें जिम्मेदारी छोड़ने के लिए लिखना बहुत जल्दी हो सकता है, विश्लेषकों का कहना है वह अभी भी एक आत्मविश्वास से ओत-प्रोत और स्पष्ट संवाद करने वाली होने के बावजूद भरोसा बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रही हैं.

वित्त मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि सीतारमण को मौका दिया जाना चाहिए, क्योंकि वह अपने कुछ विवादास्पद निर्णयों को सुधारने का प्रयास कर रही हैं.

वह भारत की पहली पूर्णकालिक रक्षामंत्री और वित्तमंत्री बनकर महिलाओं के लिए नई जमीन तैयार की है. निर्मला सीतारमण को भाजपा में उनके सहयोगी ‘ईमानदार’ और वित्त मंत्रालय के कर्मचारी ‘निर्णायक’ छवि वाला बताते हैं. लेकिन, विवाद उनके लिए कोई नई बात नहीं है, क्योंकि वह मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी मंत्री थीं.

अपने तरीके से करती हैं काम

निर्मला सीतारमण को उनकी कार्यशैली के लिए जाना जाता है. वह हर सुबह मंत्रालय में अपने पांचो सचिवों के साथ बैठक करती हैं.

इस वर्ष जुलाई में अपने बजट के दौरान उन्होंने पुरानी परंपरा को बदलते हुए बजट दस्तावेज को ब्रीफकेस में रखने के बजाए एक लाल रंग के कपड़े में रखा है. जिस पर ‘अशोक चिन्ह’ बना हुआ था. उन्होंने अपने भाषण में राजकोषीय घाटे की संख्या का उल्लेख भी नहीं किया.

सीतारमण ने अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में अधिक धार्मिक झुकाव को दिखाया है. उन्होंने नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा के सम्मान में रोजाना ट्वीट किए.

वित्तमंत्री के रूप में सीतारमण के शुरुआती दिनों में विवादास्पद निर्णयों के लिए उनकी आलोचना की गई, जिसमें अमीरों  जो अपनी कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) प्रतिबद्धताओं के साथ नहीं रहते हैं पर सरचार्ज और निजी क्षेत्रों पर प्रस्तावित जुर्माना शामिल है.

हाल ही में ई-सिगरेट के संभावित दुष्प्रभावों की वजह से प्रतिबंध ने नए विवाद को जन्म दिया, क्योंकि मोदी सरकार की आईटीसी में एक बड़ी हिस्सेदारी है.

जब बायोकॉन की अध्यक्ष किरण मजूमदार शॉ ने ट्विटर पर सवाल किया था कि उन्होंने अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए राजकोषीय उपायों के साथ बाहर आने के बजाय प्रतिबंध की घोषणा की, तो सीतारमण ने जवाब दिया कि वह नियमित रूप से उन उपायों के बारे में लगातार बोल रही हैं, जो हम अर्थव्यवस्था के मामलों लागू कर रहे हैं.


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एक अर्थशास्त्री शामिका रवि जो पिछले महीने तक प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य थीं, वो भी अर्थव्यवस्था को लेकर आलोचना करती रही हैं. उन्होंने कहा था कि भारत मंदी का सामना कर रहा है और इसे विकास की रणनीति की आवश्यकता है. यह भी कहा कि मरम्मत की बजाय भारत में प्रमुख सुधार करने का समय है.

उन्होंने कहा, ‘अर्थव्यवस्था को वित्त मंत्रालय के पास छोड़ना एक फर्म के विकास को उसके लेखा विभाग में छोड़ने जैसा है.’

भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने विशेष रूप से बैंकों के विलय के बारे में संदेह व्यक्त करते हुए आर्थिक नीति की कमी के लिए मंत्री पर निशाना साधा है. ब्लूमबर्ग क्विंट को बताया,’समष्टि अर्थशास्त्र एक चक्रव्यूह में फंसा हुआ है, जो कि टूटने की ओर बढ़ रहा है.’

आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने आलोचना की थी कि मोदी सरकार केंद्रीकृत है और आर्थिक विकास कैसे प्राप्त करे, इस पर सरकार के दृष्टिकोण में अनिश्चितता है. बुधवार को सीतारमण ने पीएम मनमोहन सिंह के साथ रघुराम राजन पर इसे बढ़ा-चढ़ाकर देखने का आरोप लगाया और कहा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सबसे बुरा दौर उन्हीं की देन है.

हालांकि, अगस्त के बाद से वित्तमंत्री ने अपनी कई विवादास्पद घोषणाओं को वापस ले लिया है और ऑटो, आवास और निर्यात जैसे क्षेत्रों में तनाव को कम करने और विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए रियायतों की घोषणा की है.

उन्होंने भारतीय कंपनियों को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने और विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कॉर्पोरेट कर को खत्म कर दिया है और सीएसआर के नियमो में तब्दीली कर दी है.

विदेशी निवेशकों द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं को खारिज करने के बाद, सीतारमण ने अमीरों के सरचार्ज को ख़त्म कर दिया. हालांकि कई निर्णयों की आलोचना ‘बहुत कम और देर से’ हुई है.

‘बहुत कम समय मिला’

इस आलोचना के बीच वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने मंत्री का बचाव करते हुए कहा कि उन्हें पद संभालने और बजट पेश करने के बीच ‘बहुत कम समय’ मिला है.

दिप्रिंट से बात करते हुए एक अधिकारी ने कहा कि मंत्री एक अच्छी श्रोता हैं और मामलों पर स्पष्टता पाने से कतराती नहीं हैं, जैसा कि उन्होंने उद्योग निकायों के साथ बातचीत करके दिखाया है.

एक अन्य अधिकारी ने बताया कि मंत्रालय के भीतर वह शुरुआती बातचीत के दौरान वो सतर्क रहती हैं.


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रेटिंग एजेंसी वाले एक अर्थशास्त्री ने बताया कि वित्त मंत्री अपने काम के लिए नई थीं और बजट से पहले उनको पैर ज़माने का शायद ही समय मिला, जिसकी वजह से कई घोषणाओं को बदलना पड़ा. उन्होंने कहा कि वित्तमंत्री को पैर ज़माने का समय लेना चाहिए, लेकिन उन्होंने अब मंदी का जवाब देना शुरू कर दिया है.

वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि हालांकि कॉर्पोरेट कर कटौती पर कुछ समय के लिए चर्चा हुई थी, एक बार निर्णय ‘राजनीतिक स्तर’ पर लेने के बाद, वित्त मंत्री इसे लागू करने के लिए तेजी से आगे बढ़ीं.

अधिकारी ने कहा कि नई दरों को अंतिम रूप देने और अध्यादेश लाने की पूरी प्रक्रिया 48 घंटे से भी कम समय में हुई, यह निर्णय देर रात हुआ था. वित्तमंत्री अधिकारियों से तय समयसीमा की मांग कर रही थीं.

सीतारमण ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए प्रस्थान करने से ठीक पहले 24 अगस्त को कर कटौती की घोषणा की, जहां उन्होंने विदेशी निवेशकों से भारत में आने की अपील की.

घोषणा के एक दिन बाद पत्रकारों के साथ एक ब्रीफिंग में, सीतारमण ने स्वीकार किया कि घोषणा के पीछे का उद्देश्य बहुत आवश्यक सुधारों के माध्यम से ‘मूड को बदलना’ था.

हाल के हफ्तों में सीतारमण कई भारतीय शहरों में रुक रही हैं और एक के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर रही हैं. देशभर के कर अधिकारियों के साथ बातचीत के बाद संकट का सामना कर रहे बाजारों को शांत करने की कोशिश कर रही हैं.

लेकिन, सीतारमण को यह स्वीकार करना होगा कि भारत 2024-25 तक पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के अपने लक्ष्य से पटरी से उतर रहा है, क्योंकि वह अभी मंदी का सामना कर रहा है.

लीखा चक्रवर्ती नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी, नई दिल्ली में प्रोफेसर ने कहा कि सीतारमण कड़ी मेहनत कर रही हैं और उनका हस्तक्षेप अच्छा है. लेकिन, उन्होंने बताया कि उनके द्वारा उठाए गए संरचनात्मक उपाय, जैसे कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती का असर दिखने में अभी और अधिक समय लगेगा.

उन्होंने कहा, ‘समस्या यह है कि वास्तविक मंदी है, आप वृद्धिशील उपायों की घोषणा नहीं कर सकते हैं और आशा करते हैं कि वे काम करें.’ उसने कहा, सीतारमण मंदी को कम करने के लिए अन्य स्रोतों को देख रही हैं बिना इस बात का पता लगाए कि मंदी को ख़त्म करने के लिए वित्तीय नीति सबसे प्रभावी उपकरण है.

रक्षा मंत्री के रूप में असहज स्थिति

केंद्रीय मंत्री के रूप में सीतारमण का पहला कार्यकाल मोदी सरकार के 2014 में पद संभालने के बाद हुआ. 2017 में वह भारत की पहली पूर्णकालिक महिला रक्षा मंत्री बनीं, जब तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर कैंसर की बीमारी के कारण गोवा के मुख्यमंत्री के रूप में वापस लौट गए थे.

हालांकि, रक्षा मंत्रालय में उनका कार्यकाल आसान नहीं था, क्योंकि वह एक ऐसे नेता के रूप में सफल रहीं, जिन्होंने उद्योग और सशस्त्र बलों दोनों का विश्वास जीता था.

36 जेट विमानों की खरीद में अनियमितताओं के आरोपों पर राफेल विवाद ने उनकी जानकारी और विषय विशेषज्ञता का टेस्ट किया और यह पाया कि वह अपने पूरे कार्यकाल के दौरान निशाने पर रहीं.


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पत्रकारों के साथ उनके संबंध असहज थे. उन्होंने नई परंपरा की शुरुआत करते हुए वित्त मंत्रालय में पत्रकारों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है. यहां तक ​​कि प्रेस सूचना ब्यूरो द्वारा मान्यता प्राप्त पत्रकारों को भी बैन कर दिया. अगर उनके पास अपॉइंटमेंट नहीं हो तो वे नहीं मिल सकते हैं.

जेएनयू, यात्रा और ट्रैकिंग

निर्मला सीतारमण का जन्म मदुरै के एक मध्यम वर्गीय परिवार में 18 अगस्त 1959 को हुआ था.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से उन्होंने अर्थशास्त्र में एमए किया. इसके बाद उन्होंने अंतरराष्टीय संबंधों में एमफिल किया.

बतौर छात्र उन्हें खुले विचारों वाले के तौर पहचाना जाता था. एक ऐसी विचारधारा जो अपने विचारों को खुद बनाता था.

राजनीति में आने से पहले उन्होंने कई जगह अपना भविष्य आजमाया जिसमें लंदन में एक कंस्लटेंसी फर्म में सेल्सपर्सन की नौकरी भी शामिल थी. निर्मला ने बीबीसी तेलुगु सर्विस के लिए भी काम किया. यात्रा, ट्रैकिंग, खाना बनाना और संगीत उनका पसंदीदा काम है.

सीतारमण की अपने जेएनयू के दिनों में ही प्रभाकर से मुलाकात हुई थी. 12 सितबंर 1986 को दोनों की शादी हो गई थी.

सीतारमण की शादी एक ऐसे परिवार में हुई थी, जो कांग्रेस के काफी करीब था. (प्रभाकर और उसके परिवार वाले कांग्रेस का कई स्तरों पर प्रतिनिधित्व भी कर चुके हैं). इसके बावजूद सीतारमण भाजपा में एक बड़ी नेता बनकर उभरीं.

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी जिस समय भाजपा के अध्यक्ष थे उसी वक्त निर्मला सीतारमण ने भाजपा की सदस्यता ली थी. 2006 में निर्मला ने भाजपा की सदस्यता बनीं. उन्हें जल्द ही पार्टी में प्रवक्ता की जिम्मेदारी सौंप दी गई थी.

एक भाजपा नेता ने कहा कि पार्टी को एक मजबूत महिला नेता की जरूरत थी. निर्मला दक्षिण भारत से संबंध रखती हैं जहां पार्टी काफी कमजोर है, ऐसे में उनकी महत्ता और भी बढ़ गई.

भाजपा नेता ने कहा, राजनीति में उनका आगे बढ़ना उनके भाग्य की अहम भूमिका है. पार्टी में आते ही वो प्रवक्ता बना दी गईं और बाद में उन्हें मंत्री भी बना दिया गया.

उनके अनुशासन ने उनके राजनीतिक सफर में काफी अहम भूमिक निभाई है.


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जो लोग सीतारमण को जानते हैं वो कहते हैं कि निर्मला खुले विचारों वाली हैं और वो जाने-पहचाने विचारों के इतर अपने विचारों को महत्ता देती हैं.

मिलेनिएल्स पर दिए गए उनके बयान के बाद ऑटो सेक्टर में काफी हलचल होने लगी थी. लेकिन उनके इतर भाजपा के कई नेता भी विवादासप्द बयान देते रहते हैं.

भाजपा के एक और वरिष्ठ नेता ने कहा, पीयूष गोयल और संतोष गंगवार भी विवादास्पद बयान दे चुके हैं जिसके बाद उन्हें इस पर स्पष्टीकरण भी देना पड़ा. लेकिन सीतारमण ने अपने बयान के बाद ऐसा कुछ भी नहीं किया.

अगर वो अपनी बातों को लेकर स्पष्ट रहती हैं और उन्हें इसमें कुछ भी गलत नहीं दिखता तो वो कभी भी उस पर स्पष्टीकरण नहीं देती हैं और न ही माफी मांगती हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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