नई दिल्ली: 1962 में भारत-चीन युद्ध शुरू होने के साथ ही अस्तित्व में आए भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) पर 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की रखवाली की जिम्मेदारी है. पिछले 60 सालों में इस बल का न केवल आकार बढ़ा है बल्कि इसकी भूमिका भी काफी व्यापक हो गई है.
आईटीबीपी को युद्ध शुरू होने के ठीक चार दिन बाद 24 अक्टूबर 1962 को सीआरपीएफ अधिनियम के तहत गठित किया गया था. अग्रिम रक्षा पंक्ति के तौर पर भूमिका संभालने वाला यह बल सालों से एलएसी के उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों में चीनी आक्रामकता को रोकने में जुटा है.
एलएसी पर जारी गतिरोध के दौरान भी आईटीबीपी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 2020 में चीनी सैनिकों के खिलाफ मोर्चा संभालने के लिए उसे 20 वीरता पदक से सम्मानित किया गया.
अगर मौजूदा समय की बात करें तो भारत-चीन सीमा पर आईटीबीपी की 180 बॉर्डर पोस्ट हैं.
ये बल सेना के साथ कदम से कदम मिलाकर काम करता है लेकिन इसका ऑपरेशनल कंट्रोल गृह मंत्रालय (एमएचए) के हाथ में है. सेना चाहती है कि आईटीबीपी का ऑपरेशनल कंट्रोल उसे सौंपा जाए लेकिन गृह मंत्रालय इसके सख्त खिलाफ है.
सभी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) में आईटीबीपी अद्वितीय है क्योंकि यह एक ऐसा केंद्रीय बल है जिसे पर्वतीय क्षेत्रों में प्रशिक्षित किया जाता है और यह खतरनाक और दुर्गम इलाकों और प्रतिकूल प्राकृतिक वातावरण में भी सीमाओं की रक्षा करने में सक्षम है. हिमालय में 18,900 फीट की ऊंचाई पर स्थित सीमा चौकियां इसकी गवाह हैं.
आईटीबीपी नक्सल विरोधी अभियानों में भी शामिल रहा है. इसके अलावा सामान्य कानून-व्यवस्था, राहत एवं बचाव अभियानों और अन्य कार्यों के अलावा वीआईपी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी संभालता है.
काफी समृद्ध है केंद्रीय बल का इतिहास
आईटीबीपी ने 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों के साथ-साथ कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों में भी हिस्सा लिया है.
आईटीबीपी की स्थापना के 16 साल बाद 1978 में सरकार ने इस बल का पुनर्गठन कर 9 सर्विस बटालियन, 4 स्पेशलिस्ट बटालियन और 2 प्रशिक्षण केंद्र बनाए.
1982 में जब नई दिल्ली में 9वें एशियाई खेलों का आयोजन किया गया तो आईटीबीपी को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई. उन्हें आयोजन में हिस्सा लेने वालों की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभानी थी.
बल के अनुभव को देखते हुए ही इसे राष्ट्रमंडल शासनाध्यक्षों की बैठक और पड़ोसी राज्य पंजाब में आंतकवाद के दौर के बीच 1983 में दिल्ली में सातवीं गुटनिरपेक्ष आंदोलन बैठक के दौरान एंटी-टेरर सिक्योरिटी कवरेज का जिम्मा सौंपा गया.
1987 में पंजाब में आतंकवादियों और चरमपंथियों की तरफ से डाली जा रही बैंक डकैतियों को रोकने के लिए आईटीबीपी की 6 बटालियनों का गठन किया गया. दो साल बाद आईटीबीपी जवानों को जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों का हिस्सा बनाया गया और उन्होंने 2004 तक यह जिम्मेदारी निभाई.
यद्यपि यह केंद्रीय बल सीआरपीएफ अधिनियम के तहत स्थापित किया गया था, संसद ने 1992 में आईटीबीपी अधिनियम बनाया. इसके बाद 1994 में इस अधिनियम के तहत नियम-कायदे निर्धारित किए गए.
2004 में आईटीबीपी को लद्दाख में काराकोरम दर्रे से अरुणाचल प्रदेश के जचेप ला तक भारत-चीन सीमा के 3,488 किलोमीटर के पूरे हिस्से की रखवाली की जिम्मेदारी सौंप दी गई थी. इस क्रम में सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में एलएसी के पूर्वी हिस्से की सुरक्षा की कमान असम राइफल्स की जगह आईटीबीपी के हाथ में आ गई.
सरकार ने 1999 के कारगिल युद्ध के बाद ‘वन बॉर्डर वन फोर्स’ की मंत्रियों के समूह (जीओएम) की सिफारिशों के आधार पर यह कदम उठाया था.
कैसा है इसका स्ट्रक्चर और मौजूदा भूमिका
एक डायरेक्टर जनरल के नेतृत्व में इस बल में तीन एडिशनल डायरेक्टर जनरल और 23 इंस्पेक्टर जनरल होते हैं. फिलहाल, आईटीबीपी में 56 सर्विस बटालियन, 4 स्पेशलिस्ट बटालियन, 2 एनडीआरएफ बटालियन, 17 ट्रेनिंग सेंटर और 7 लॉजिस्टिक प्रतिष्ठान हैं. इस बल के कुल कर्मियों की संख्या 88,430 है.
इन बटालियनों को 15 सेक्टर्स में बांटकर ऑर्गनाइज किया जाता है, जिसमें से हर एक की कमान एक डीआईजी के हाथ में होती है. साथ ही 5 फ्रंटियर में प्रत्येक का जिम्मा एक आईजी के पास और 2 कमांड में प्रत्येक का नेतृत्व एक एडीजी के पास होता है.
आईटीबीपी की तीन बुनियादी भूमिकाएं हैं. इनमें सीमा सुरक्षा भी शामिल है जिसके लिए 32 बटालियन तैनात हैं. आठ बटालियन नक्सल विरोधी अभियानों के लिए तैनात हैं जबकि 16 आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल रही हैं. इस बल को वीआईपी सुरक्षा भी सौंपी गई है और मौजूदा समय में यह 14 वीआईपी की सुरक्षा में तैनात है.
आईटीबीपी 1989 से संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों का भी हिस्सा रहा है, इसके सैकड़ों अधिकारी कई युद्धग्रस्त देशों में वर्षों से अपनी सेवाएं दे रहे हैं.
इसने 1988 से 2005 तक कोलंबो के उच्चायोग की सुरक्षा का जिम्मा संभाला और 2005 से 2019 तक कांगो में भी कार्य किया.
बल के कर्मियों को 2002 से अगस्त, 2021 तक काबुल में भारतीय दूतावास और चार महावाणिज्य दूतावासों की सुरक्षा के लिए अफगानिस्तान में भी तैनात किया गया.
2004 में, आईटीबीपी को अफगानिस्तान में गुरुगुरी, मीनार और जरंज में तैनात किया गया था ताकि सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) की तरफ से डेलाराम-जरंज सड़क निर्माण परियोजना के निर्माण कार्य में लगाए गए लोगों और मशीनों की सुरक्षा की जा सके.
आईटीबीपी सूत्रों ने बताया कि हिमालयी क्षेत्र में किसी भी आपदा की स्थिति में सबसे पहले यही बल आगे आता है और इसने पिछले चार वर्षों में ऐसे 113 राहत एवं बचाव अभियान चलाए हैं. इनके तहत 4,148 लोगों को बचाया गया और 186 शव निकाले गए.
आईटीबीपी ने कोविड महामारी के खिलाफ जंग में भी सक्रिय भूमिका निभाई और जनवरी 2020 में नई दिल्ली में देश का पहला क्वारंटाइन सेंटर स्थापित किया.
ग्रेटर नोएडा स्थित इसके रेफरल हॉस्पिटल को सभी सेवारत और सेवानिवृत्त सीएपीएफ कर्मियों और उनके परिवारों के इलाज के लिए एक कोविड केयर सेंटर और अस्पताल घोषित कर दिया गया था. आईटीबीपी सूत्रों का दावा है कि महामारी की तीन लहरों के दौरान इस बल ने छतरपुर, नई दिल्ली स्थित राधा स्वामी ब्यास में दुनिया के सबसे बड़े कोविड केयर सेंटर की जिम्मेदारी संभाली थी.
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