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Friday, 26 April, 2024
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कोविड की लड़ाई में पहली पंक्ति में खड़ी आशा कार्यकर्ताओं को सरकारी कर्मचारी बनने की आस

आशा कर्यकर्ताओं का सवाल है कि सरकारी कर्मचारी का दर्जे देने की मांग पर सरकार ख़ामोश क्यों है? दिप्रिंट द्वारा इससे जुड़े सवाल का स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोई जवाब नहीं दिया.

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नई दिल्ली: महाराष्ट्र सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) को मिलने वाले इंसेंटिव में बढ़ोतरी से अन्य आशा कार्यकर्ताओं में थोड़ी उम्मीद जगी है.

ऑल इंडिया स्कीम वर्कर्स फेडरेशन (एईएसडब्ल्यूएफ) ने 12 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखकर कोविड-19 के रोकथाम में लगे स्कीम वर्करों (आशा कार्यकर्ता, आंगनवाड़ी कर्मचारी और विद्यालय के रसोइयों) को सरकारी कर्मचारी घोषित करने समेत कई तात्कालिक मुद्दे उठाए थे. इनकी शिकायत है कि इन्हें मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल रही हैं. हालांकि इन्हें अबतक कोई जवाब नहीं मिला है.

एईएसडब्ल्यूएफ द्वारा लिखी गई चिट्ठी पर दिल्ली आशा कामगर यूनियन की अध्यक्ष श्वेता राज ने दिप्रिंट से कहा, ‘लॉकडाउन से अनलॉक तक जब लोग अपने घरों में बंद रहे तब आशा वर्कर ज़मीन पर बहादुरी से काम करती रहीं. लेकिन इनकी हालत बदतर बनी हुई है.’

स्वास्थ्य मंत्रालय ने जवाब में आशा कार्यकर्ताओं की भूमिका की सराहना करते हुए कहा, ‘कोविड महामारी के दौरान सर्वे, जागरुकता और निगरानी में आशा कर्यकर्ताओं ने पहली पंक्ति में अहम भूमिका निभाई है.’

आईएएस अधिकारी संध्या भुल्लर द्वारा दिए गए जवाब में ये भी लिखा है कि इस दौरान आशा कर्यकर्ताओं ने जच्चा-बच्चा देखभाल समेत गंभीर बीमारी के मरीज़ों तक मदद पहुंचाने का भी बड़ा काम किया है. हालांकि, आशा कार्यकर्ताओं की शिकायत है कि इतनी मेहनत के बदले उन्हें सरकार से कुछ भी नहीं मिला.

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आशा कर्यकर्ताओं की मांगें 

दिल्ली के साधना नगर की आशा कर्यकर्ता विजय लक्ष्मी ने दिप्रिंट से कहा, ‘पीपीई किट तो दूर की बात है यहां थोड़े दिनों पहले ही मास्क और ग्लव्स मिलना शुरू हुआ. सैनिटाइज़र अभी भी मुश्किल से मिलता है.’ इनका कहना है कि कोरोना महामारी के दौरान स्वास्थ्य कर्मियों सं हुई हिंसा से स्कीम वर्कर भी अछूते नहीं रहे.

इसी वजह से पीएम को लिखी चिट्ठी में स्कीम वर्करों को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराने और सबको तीन महीने का एडवांस मानोदय/प्रोत्साहन राशी देने की भी मांग की गई. साथ हीं 50 लाख के जीवन बीमा और 10 लाख के स्वास्थ्य बीमा की भी मांग की गई.


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श्वेता राज के मुताबिक दिल्ली में 3000 के करीब आशा वर्कर होंगी. इन्हीं में शामिल रीता भारद्वाज ने कहा, ‘हमें 3000 रुपए इंसेंटिव के तौर पर मिलते हैं और एक घर के सर्वेलांस जैसे काम का 100 रुपए मिलता है. कितनी भी मेहनत कर लें फिर भी बड़ी मुश्किल से महीने के 8000 बनते हैं. आप ही बताओ, क्या इतनी रकम काफी है?’

करीब 90,000 आशा कार्यकर्ताओं वाले बिहार के राज्य आशा कार्यकर्ता संघ की अध्यक्ष शशि यादव ने कहा, ‘हम सरकार की हर स्कीम को घर-घर ले जाने वाले सिपाही हैं फिर भी हमें कर्यकर्ता का दर्जा हासिल है. इस महामारी में भी हम पहली कतार से लड़ाई लड़ रहे हैं. हमें सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिलना चाहिए.’

आशा कार्यकर्ताओं के सरकारी कर्मचारी के दर्जे पर मंत्रालय ने कुछ नहीं कहा

इनसे जुड़े सवालों के जवाब में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि आशा कर्यकर्ताओं के लिए कई कदम उठाए गए हैं. मंत्रालय ने कहा, ‘आशा समेत स्वास्थ्यकर्मियों को सुरक्षा देने के लिए महामारी रोग अधिनियम 1897 को सशोधित किया गया. राज्यों को निर्देश दिया गया कि आशा की सुरक्षा के लिए इन्हें पहचान पत्र दें.’

मंत्रालय के मुताबिक राज्यों को इन्हें मास्क और सैनिटाइज़र भी देने को कहा गया. हालांकि, शशि यादव का आरोप है कि बिहार में आशा कार्यकर्ताओं को सिर्फ लाइफ़ बॉय साबुन दे दिया जाता है. मास्क और सैनिटाइज़र के नाम पर खानापूर्ती होती है.

मंत्रालय ने कहा कि अतिरिक्त कार्य कर रही आशा कार्यकर्ताओं के लिए हर महीने 1000 रुपए की अतिरिक्त प्रोत्साहन राशि का भी प्रवाधान किया गया. ‘भारत कोविड-19 आपातकालीन प्रतिक्रिया और स्वास्थ्य प्रणाली की तैयारी पैकेज’ से जारी की गई रकम इन्हें मार्च 2021 तक दी जानी है.

मंत्रालय ने कहा कि इन्हें केंद्र और राज्यों के कई तरह का बीमा और पेंशन भी मिलता है. इसके लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन का ज़िक्र किया गया.


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मंत्रालय ने ये भी कहा कि इनको मिलने वाले इंसेंटिव को 2018 में बढ़ाकर दोगुना कर दिया गया. 17 राज्यों ने अलग अलग तरह के इंसेंटिव स्कीम लॉन्च किए. मंत्रालय ने कहा, ‘स्वास्थ्य राज्य का विषय है. ऐसे में कोविड-19 के दौरान राज्यों से आशा कर्यकर्ताओं के लिए 2000 रुपए का प्रवाधान करने का अनुरोध किया गया.’

इसपर श्वेता राज ने कहा कि कागज पर बीमा और पेंशन की बातें बड़ी अच्छी लगती हैं. सरकारी कर्मचारी के दर्जे पर सरकार ख़ामोश क्यों है? दिप्रिंट द्वारा आशा कार्यकर्ताओं को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिए जाने के सवाल पर मंत्रालय ने हालांकि कोई जवाब नहीं दिया.

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