नयी दिल्ली, 30 दिसंबर (भाषा) मशहूर लेखक सलमान रुश्दी की पुस्तक ‘द सैटेनिक वर्सेज’ पर पुनः प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे मुस्लिम संगठनों का विरोध करते हुए ‘इंडियन मुस्लिम्स फॉर सेक्युलर डेमोक्रेसी’ (आईएमएसडी) ने सोमवार को मुसलमानों से आग्रह किया कि वे प्रतिष्ठित समाज सुधारक सर सैयद अहमद खान की शिक्षाओं को याद रखें और पुस्तक पर प्रतिबंध या उसे जलाने के बजाय ‘‘शब्दों का मुकाबला शब्दों से करें।’’
रुश्दी की इस किताब की फिर से बिक्री की कुछ मुस्लिम संगठनों ने कड़ी निंदा की है। 1988 में राजीव गांधी सरकार द्वारा प्रतिबंधित किए जाने के 36 साल बाद यह पुस्तक पुन: बिक्री के लिए उपलब्ध है।
आईएमएसडी ने एक बयान में कहा, ‘‘हम मुसलमानों से एक सदी से भी पहले सर सैयद अहमद खान द्वारा व्यक्त किए गए विचारों को याद करने का आह्वान करते हैं। अपने समय में, उन्होंने उन मुसलमानों का कड़ा विरोध किया, जो अपनी पसंद की किताबों को जलाते थे या अधिकारियों से उन पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते थे।’’
इसमें कहा गया, ‘‘खान की सलाह सरल थी। अगर कोई पुस्तक तर्कपूर्ण आलोचना के योग्य है तो शब्दों का मुकाबला शब्दों से करें। ऐसी पुस्तकों को जलाने या प्रतिबंधित करने का अर्थ है कि मुसलमान अपने धर्म का बौद्धिक और नैतिक आधार पर बचाव करने में असमर्थ हैं। अगर पुस्तक (कार्टून, नाटक, फिल्म) इस्लाम या उसके पैगंबर पर अनावश्यक या दुर्भावनापूर्ण हमले के अलावा कुछ नहीं है, तो उनका सुझाव था, ‘‘इसे अनदेखा करें।’’
आईएमएसडी के बयान का 42 प्रतिष्ठित नागरिकों ने समर्थन किया है, जिनमें नागरिक अधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़, इतिहासकार सोहेल हाशमी, शायर-वैज्ञानिक गौहर रजा, रंगमंच निर्देशक फिरोज अब्बास खान, वरिष्ठ पत्रकार अस्करी जैदी, लेखक शम्स-उल इस्लाम और वृत्तचित्र निर्माता शमा जैदी शामिल हैं।
भाषा शफीक मनीषा
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