तुमकुर, कर्नाटक: राहुल गांधी और उनके 150 हमसफ़र ‘भारत यात्रियों’ को कन्याकुमारी से कश्मीर तक 3,570 किलोमीटर की अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ शुरू किये हुए एक महीना से अधिक का समय हो गया है. जब तक यह यात्रा दो राज्यों (तमिलनाडु और केरल) को पार कर कर्नाटक पहुंची, तब तक कई ‘भारत यात्रियों’ को तकलीफों का अहसास होने लगा था.
जब दिप्रिंट ने इन यात्रियों के साथ तुमकुर में कुछ समय बिताया तो कई लोगों ने इस यात्रा के निशान जैसे पैरों में पड़े छाले दिखाने लगे, जबकि कई अन्य 102 डिग्री बुखार के साथ चलने की बात करने लगे. कुछ अन्य लोग अपने घर-परिवार और बच्चों को पीछे छोड़ एक ऐसे सफर पर आने की बात कही, जिसे वे ‘जीवन भर के अनुभव’ के रूप में देख रहे हैं.
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश का कहना है कि इन ‘भारत यात्रियों’ को चुनने की प्रक्रिया लगभग तीन सप्ताह लंबी थी.
रमेश कहते हैं, ‘एक दो सदस्यीय समिति बनी थी जिसमें मुकुल वासनिक और दिग्विजय सिंह शामिल थे. उन्होंने पीसीसी (प्रदेश कांग्रेस कमेटी) के माध्यम से आए हजारों आवेदनों की पड़ताल की.’
वे बताते हैं कि उम्र, फिटनेस (तंदरुस्ती), कांग्रेस में सेवा की अवधि और पीसीसी की सिफारिशें कुछ ऐसे मानक रखे गए थे जिन्हें अंतिम सूची तैयार करते समय ध्यान में रखा गया था.
उन्होंने आगे कहा कि इन 50 यात्रियों में से लगभग 30 प्रतिशत महिलाएं हैं और इस कवायद का उद्देश्य समूह को जितना हो सके उतना विविधतापूर्ण बनाना था.
इन यात्रियों के रूटीन में सुबह 4.30 बजे जागना और फिर शिविर स्थल पर सुबह 6 बजे होने वाले ध्वजारोहण और राष्ट्रगान कार्यक्रम के लिए समय पर तैयार होना शामिल है. दिन के सफर लिए तय शुरुआती बिंदु आमतौर पर शिविर वाली जगह (कैंपसाइट) से कुछ किलोमीटर की दूरी पर होता है. यात्रा प्रतिदिन सुबह 6.30 से 7 बजे के बीच शुरू होती है.
यात्री सुबह 11 बजे तक लगभग 10-11 किमी चलते हैं, जब वे दिन के ब्रेक प्वाइंट पर पहुंच जाते हैं. शाम 4 बजे से यात्रा एक बार फिर शुरू होती है और शाम 7 बजे तक 10-11 किमी की दूरी तय करने के बाद समाप्त होती है, जिसके बाद सभी प्रतिभागी शिविरों में अगले दिन के लिए आराम करने लगते हैं.
दिप्रिंट ने इस यात्रा के दौरान कर्नाटक के तुमकुर में कुछ ‘भारत यात्रियों’ से उनके विश्राम करने के लिए बने तंबुओं में बात की.
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युवा और ‘बुजुर्ग’
तेलंगाना की 27 वर्षीया अनुलेखा बूसा सबसे कम उम्र की ‘भारत यात्री’ हैं और कांग्रेस की छात्र इकाई नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया की राष्ट्रीय सचिव हैं.
वे चहकते हुए कहती हैं, ‘नव संकल्प शिविर (उदयपुर) में भी मैं ही सबसे कम उम्र की प्रतिनिधि थी.’
हालांकि यह सफर उनके लिए आसान नहीं रहा है. अपने पैर के छाले दिखाते हुए वह कहती हैं, ‘केरल में, नमी और अन्य चीजों के कारण, मैं चार दिनों तक बीमार रही. उसमें से, दो दिन मैं उठ भी नहीं पाई. तब भी, मैं आधे दिन एम्बुलेंस में होती और आधे दिन पैदल चला करती थी. इस यात्रा में कई उम्रदराज लोग भी चल रहे हैं. मैंने सोचा, ‘अगर वे चल सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं?’
वह शायद इस सफर के सबसे बुजुर्ग यात्री यानि की अलवर के 58 वर्षीय विजेंद्र सिंह मेहलावत की बात कर रही थीं. यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, मेहलावत ने ‘ना’ में जवाब दिया.
वे कहते हैं, ‘पहले कुछ दिनों में, मेरे घुटनों में कुछ दर्द हुआ. लेकिन वह बहुत जल्द चला गया, इस यात्रा के लिए अपने चयन का विवरण देते हुए, मेहलावत ने कहा कि पहले-पहल पार्टी और उनका परिवार दोनों बहुत आशंकित थे. मेहलावत कहते हैं, ’जब मैंने अपने नेताओं को बताया, तो उन्होंने कहा कि मैं 58 वर्ष का हूं और मुझ पर यह बात समझाने की कोशिश कि इतनी उम्र में चलना मुश्किल होगा. उन्होंने यह भी कहा कि आवेदन करने वाले युवाओं के चुने जाने की संभावना अधिक होगी. मैंने उनसे कहा कि अगर मैं 98 साल का भी होता तो भी आवेदन जरूर करता.’
वे कहते हैं, ‘जब राजीव गांधी का बेटा पैदल चल रहा है तो मैं क्यों नहीं.’
यह पूछे जाने पर कि पिछले 30 दिनों में उनका सबसे यादगार पल कौन सा रहा है, राजस्थान के निवासी भावुक हो गए.
उन्होंने बताया, हमें निर्देश दिया गया है कि बाहर का खाना बहुत अधिक न खाएं. अगर खाते भी हैं तो हमें पैक्ड फ़ूड ही खाने को कहा जाता है. लेकिन केरल में, एक महिला, जो बताती हैं कि वह एक शिक्षक हैं, बिस्कुट लेकर आईं जिसे उन्होंने खुद ‘बेक’ किया है. उन्होंने हमसे इसे खाने के लिए आग्रह कहा. जिस तरह से हमें रास्ते भर प्यार मिल रहा है मैं उसे कभी नहीं भूल सकता.’
अनुभवी ‘राजनीतिज्ञ’
हालांकि इस यात्रा में अनुलेखा और विजेंद्र जैसे लोग भी शामिल हैं, जो पार्टी पदानुक्रम में बहुत नीचे हैं, मगर इसमें कुछ अनुभवी राजनेता भी शामिल हैं जो एक ही शिविर में रहते हैं.
उनमें से एक हैं कांग्रेस के प्रशिक्षण कार्यक्रम और पार्टी की आधिकारिक घोषणाओं को बताने वाली संस्था आईएनसी संदेश के प्रभारी प्रभारी सचिन राव.
जब उनसे इस सफर के दौरान किसी तरह की परेशानी या बुखार के बारे में पूछा गया, तो राव कहते हैं कि उनके लिए यह यात्रा अब ऐसी चीजों से परे है. वे कहते हैं, ‘मानसिक रूप से, मैं एक ऐसे स्थान पर हूं जहां मैं जिस जगह (विश्राम के लिए) अपना सिर रखता हूं, वही मेरा घर होता है. यह सामान्य नहीं है. यह रोजमर्रा की जिंदगी नहीं है. यह आध्यात्मिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से एक अलग आयाम है. दिनचर्या, घर, परेशानियों जैसे शब्द वास्तव में मायने नहीं रखते. यह एक अलग ही ब्रह्मांड है.’
वह यह भी कहते हैं कि इस यात्रा ने उन्हें कुछ ऐसा दिया है जो उन्हें अपने पूरे राजनीतिक जीवन में कभी नहीं मिला, और वह है आम लोगों द्वारा उन्हें उनका काम करने के लिए धन्यवाद देना.’
वे बताते हैं, ‘यह कुछ इस तरह से होता है: वे मुझे रोकते हैं और मुझे से पूछते हैं कि ‘आप कहां से हो’. फिर मैं कहता हूं, ‘दिल्ली’. वे फिर से पूछते हैं ‘आप कहां से चल रहे हो?’ तो मैं कहता हूं ‘कन्याकुमारी’ से. तब वे पूछते हैं, ‘अरे! आप पूरे सफर में कश्मीर तक जा रहे हैं?’ फिर जब मैं ‘हां’ कहता हूं, तो वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उन्होंने सही सुना है. फिर वे आपको शाबाशी देते हैं और कहते हैं ‘धन्यवाद’. राजनीति में आपको कितनी बार आप जो कर रहे हैं उसके लिए धन्यवाद सुनने को मिलता है? यह तो ऐसी जगह भी नहीं है जहां आप जो कर रहे हैं उसके लिए आपको सम्मान भी मिल सके. इसलिए, इतनी बार धन्यवाद मिलना एक अविश्वसनीय जगह में होने जैसा है..
राव ने केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी के बेटे और अपने हमसफ़र को भी नंगे पैर चलने के लिए प्रेरित किया.
जब चांडी से उनकी सामान्य दिनचर्या के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने शरमाते हए कहा कि वह आमतौर पर सुबह उठते समय ‘थोड़ा देर’ हो जाते हैं, लेकिन 7 सितंबर को यात्रा शुरू होने के बाद से इसमें काफी बदलाव आया है.
दिल्ली में अपने कॉलेज के दिनों को याद करते हुए, वह कहते हैं, ‘यह सेंट स्टीफंस कॉलेज की मेरी दिनचर्या से बहुत अलग है, मैं आपको यही कह सकता हूं!.’
फिर वह नंगे पांव चलने के पीछे का कारण बताते हैं. उन्होंने कहा, ‘जब मैंने शुरुआत की तो मैं नंगे पैर नहीं था. तब सचिन राव जी ने मुझे सलाह दी और जब मैं कोल्लम (केरल) में था तब मैंने इसे आजमाया. मैं 17 किमी तक नंगे पांव चला और मैंने पाया कि इससे मुझे ऊर्जा मिलती है. अगर सड़क अच्छी है, तो यह सबसे अच्छा तरीका है.’
चांडी आगे कहते हैं कि उनके लिए यात्रा का इस मुख्य आकर्षण तब था जब उनके पिता राहुल गांधी के साथ-साथ चले.
वे बताते हैं, ‘उन्होंने (राहुल ने) तीन बार जोर देकर कहा कि मेरे पिता वापस चले जाएं, ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने सोनिया गांधी के साथ किया था. दरअसल, एक बार तो उन्होंने मेरे पिता को कार में बिठाया और यहां तक कि उनके पैर भी पकड़कर कार के अंदर रख दिए क्योंकि मेरे पिता के पैरों में कुछ तकलीफ है. यह वास्तव में मुझे छू गया, खासकर तब जब मैंने उन्हें सोनिया जी के साथ ठीक वैसा ही व्यवहार करते देखा.’
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महिला यात्रीगण
केरल की 47 वर्षीया शीबा रामचंद्रन इस यात्रा में शामिल होने के लिए अपनी 9वीं कक्षा में पढ़ने वाली बेटी को अपने पति के साथ घर पर छोड़ के आई हैं.
वे कहती हैं, ‘जबसे मेरी शादी हुई है, तभी से मैंने कभी भी अपने पति से कहीं भी जाने के लिए अनुमति नहीं मांगी. चाहे वह ताजमहल हो, दार्जिलिंग हो या पेरिस. इसलिए इस बार भी, मुझे उनकी अनुमति की कोई आवश्यकता नहीं थी. उन्होंने कहा कि मैं बिना किसी सिरदर्द के जा सकती हूं और वह घर की अच्छी तरह से देखभाल करेंगें.’
वह कहती हैं कि इस यात्रा के साथ चलने के लिए उनकी प्रेरणा देश में बढ़ती बेरोजगारी, और जिस तरह से शिक्षित युवा नौकरी की तलाश में विदेश जाते हैं, है. शीबा खुद 15 साल तक सऊदी अरब में शिक्षिका के तौर पर काम कर रही थीं, इस दौरान वे प्रवासी भारतीय सांस्कृतिक कांग्रेस (ओवरसीज इंडियन कल्चरल कांग्रेस – आईसीसी) से जुड़ी रहीं थीं .
उनकी सबसे बड़ी चीयरलीडर (उत्साह बढ़ाने वाली) उनकी बेटी है.
वे कहती हैं, ‘उसने मुझसे कहा, ‘अम्मा [माँ], साहसी बनो!’. वह मुझे बहुत अच्छी तरह जानती है. मैंने हमेशा अपने परिवार और पार्टी दोनों को महत्व दिया है. इस बार भी कुछ अलग नहीं है. पार्टी का पुनरुत्थान समय की मांग है.’
विश्राम के लिए बने तंबू में शीबा के बगल में 46 वर्षीय फातिमा इब्राहिम बैठी हैं, जो बताती हैं कि वह 23 वर्षों से कांग्रेस पार्टी की सक्रिय सदस्य हैं.
दरअसल, वह गर्व से कहती हैं कि उनके तीन में से दो बच्चे भी पार्टी के साथ काम कर रहे हैं.
वह हंसते हुए कहती हैं, ‘मेरा 26 वर्षीय बेटा कॉलेज चुनाव अध्यक्ष है, जबकि मेरी 21 वर्षीय बेटी जवाहर बाल मंच की राज्य महासचिव है. मेरी तीसरा बच्ची मेरी 18 साल की बेटी है और उसे अभी इस पागलपन में शामिल होना है.’
इस यात्रा को आम लोगों से जो प्रतिक्रिया मिली है, उसने उन्हें सबसे ज्यादा प्रभावित किया है. फातिमा कहती हैं, ‘जब हम चल रहे होते हैं, तो बहुत सारे दिव्यांग लोग राहुल जी की एक झलक पाने के लिए सड़क पर इंतजार करते राहते हैं. महिलाएं अपने बच्चों को साथ लेकर आती हैं. यह वाकई दिल को छू लेने वाला है.’
लोकप्रिय न्यूरोलॉजिस्ट
48 वर्षीय शुश्रुत हैडेन शिविर के सबसे लोकप्रिय यात्रियों में से एक हैं.
उनके साथी यात्री दिप्रिंट की टीम को इस बात जोर देते हुए उनके पास ले गए कि हम उनसे जरूर बात करें.
पेशे से न्यूरोलॉजिस्ट (तान्त्रिकाविद) रहे हैडेन ने अमेरिका में प्रशिक्षण लिया है और वहां 15 साल तक रहे हैं. वह साल 2019 में भारत लौट आए थे. उनका कहना है कि वह कांग्रेस या किसी अन्य राजनीतिक दल से संबद्ध नहीं हैं.
वे कहते हैं, ‘जब मैं साल 2019 में वापस आया, तो मैंने मैसूर और उसके आसपास के लोगों के लिए कुछ सामाजिक कार्य करने का फैसला किया. हमने लगभग 3,500 लोगों का मुफ्त इलाज किया है और उनके घर तक स्वास्थ्य सेवा पहुंचाई. हमने स्वास्थ्य शिविर लगाए और वहां से आने के बाद टेलीमेडिसिन के साथ फॉलो- अप किया. यह कांग्रेस के कुछ लोगों की नजर में भी आया और उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में शामिल होना चाहता हूं.’
वे कहते हैं, ‘मेरे लिए इस यात्रा में भाग लेने का एक स्वार्थ भरा कारण भी है. मैं ग्रामीण क्षेत्रों पर एक नज़र डालना चाहता था और ग्रामीण लोगों की मदद करने के लिए एक योजना बनाना चाहता था. अगर एक और महामारी आती है, तो टेलीमेडिसिन काफी अच्छा विचार साबित होगा.’
हैडेन का कहना है कि उन्होंने राहुल के साथ तब अपनी टेलीमेडिसिन वाली योजनाओं पर चर्चा की, जब उन्हें ‘वॉकथॉन’ के दौरान उनके साथ चलने का मौका मिला.
न्यूरोलॉजिस्ट हैडेन कहते हैं, ‘मैं हैरान था कि वह कितने अधिक जानकार है. उन्होंने टेलीमेडिसिन तकनीक के बारे में काफी सारी बातें की, और फिर बताया कि क्यों इसे अभी के लिए भारत में नहीं अपनाया जा सकता है और कैसे इसे बाद में अपनाया जा सकता है. उन्होंने मुझसे ग्रामीण और शहरी स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों के बीच अंतर के बारे में भी बातें की और यह बताया कि कैसे इस क्षेत्र की बहुत सारी समस्याओं को समेकित बीमा योजनाओं के माध्यम से हल किया जा सकता है. मुझे एक सुखद आश्चर्य हुआ कि आज के समय में भी राजनेता ऐसी चीजों के बारे में सोचते हैं.
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