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Friday, 20 December, 2024
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त्यौहारी सीजन में दालों की बढ़ती कीमतों में आई 10-15 प्रतिशत गिरावट, मोदी सरकार ने आखिर ऐसा कैसे किया

दालों के दाम में मुद्रास्फीति की स्थिति इतनी गंभीर हो गई थी कि केंद्र को महामारी खाद्य सहायता की अपनी खास योजना के तहत मुफ्त दालें वितरित करना भी बंद करना पड़ा था.

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नई दिल्ली: खाना पकाने के तेल और सब्जियों जैसी तमाम घरेलू चीजों में त्यौहारी सीजन के दौरान खासी महंगाई देखी गई लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार मुक्त आयात और स्टॉक लिमिट विकल्पों के जरिए दालों की कीमतों पर लगाम लगाने में कामयाब रही, जो पिछले कई महीनों से आसमान छू रहीं थीं.

उपभोक्ता मामलों के विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, इस समय खुदरा और थोक बाजारों में तुअर/अरहर, उड़द और मूंग जैसी दालों की कीमतें 100 रुपए प्रति किलोग्राम के आसपास हैं.

यह इस साल जून में कीमतों में जबर्दस्त उछाल की तुलना में यह लगभग 10-15 प्रतिशत कम है, जब कीमतें तकरीबन 120 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई थीं.

जून में दालों की खुदरा कीमतें मार्च की तुलना में 21 फीसदी ऊपर पहुंच गई थीं जब घरेलू बाजारों में इनके दाम चढ़ने का दौर शुरू हुआ था. इसी तरह, थोक बाजार में दालों की कीमत जून में 107 रुपए प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई थी जो मार्च की दरों की तुलना में 20 प्रतिशत अधिक थीं.

Graphic: Manisha Yadav/ThePrint
ग्राफिक: मनीषा यादव/ दिप्रिंट
Graphic: Manisha Yadav/ThePrint
ग्राफिक: मनीषा यादव/ दिप्रिंट

दालों के दाम में मुद्रास्फीति की स्थिति इतनी गंभीर हो गई थी कि केंद्र को महामारी खाद्य सहायता की अपनी खास योजना के तहत मुफ्त दालें वितरित करना भी बंद करना पड़ा था, जिसकी जानकारी दिप्रिंट ने अपनी रिपोर्ट में दी थी.

हालांकि, अक्टूबर-नवंबर के त्यौहारी सीजन से पहले मोदी सरकार की तरफ से उठाए गए दो बड़े फैसलों ने घरेलू बाजारों में थोक और खुदरा दरों में कमी ला दी थी.

15 मई को वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने अरहर, मूंग और उड़द के मुक्त आयात की अनुमति दी थी. आदेश के तहत किसी भी पार्टी को 31 अक्टूबर तक किसी भी मात्रा में आयात की छूट दी गई थी, इसके तहत अक्टूबर में कटे बिल पर आने वाली किसी भी खेप को 30 नवंबर तक मंजूरी दी गई. अगस्त 2017 के बाद पहली बार ऐसा आदेश दिया गया था.

इसके बाद सरकार ने मूंग को छोड़कर बाकी सभी दालों के लिए 2 जुलाई से 31 अक्टूबर तक स्टॉक सीमा लागू की जिसमें थोक और खुदरा विक्रेताओं, मिलों और आयातकों जैसे विभिन्न पक्षों के लिए अलग-अलग मात्रा निर्धारित की गई थी. इसके बाद आंकड़ों में थोड़ा संशोधन किया गया.

इस बीच, सरकार ने मसूर दाल पर आयात शुल्क भी घटाकर शून्य कर दिया जबकि इस पर लगाए गए कृषि उपकर को आधा कर दिया. इसने छह महीने में पहली बार इस कमोडिटी के आयात की भी अनुमति दी.


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‘नीतिगत फैसलों का सकारात्मक नतीजा निकला’

दाल के व्यापार जुड़े विभिन्न हितधारकों के मुताबिक, सरकार की पहल ने उपभोक्ता को थोड़ी राहत पहुंचाई और बाजार पर दबाव भी घटाया.

इंडिया पल्सेस एंड ग्रेन्स एसोसिएशन के वाइस चेयरमैन बिमल कोठारी ने कहा, ‘प्रमुख दालों के आयात की अनुमति देने के सरकार के नीतिगत फैसले से उपभोक्ता के लिए सकारात्मक नतीजे सामने आएं हैं. बाजार में तरलता का संकट भी है जिसकी वजह से कीमतों पर दबाव पड़ रहा था और अब इसमें मिली राहत से उपभोक्ताओं को भी फायदा पहुंचा है.’

उन्होंने कहा, ‘कीमतें अगस्त के स्तर से 8-10 प्रतिशत कम नीचे आई हैं और इस त्यौहारी सीजन के दौरान स्थिर बनी रही हैं. अरहर की कीमतों में 6-7 रुपए प्रति किलोग्राम की गिरावट आई है जबकि उड़द और मसूर की कीमतों में 5-6 रुपए प्रति किलोग्राम की गिरावट आई है.’

उपभोक्ता मामलों के विभाग के आंकड़ों के अनुसार, जून और नवंबर के बीच खुदरा दरों में 12 प्रतिशत से अधिक की कमी के साथ उड़द की कीमतों में सबसे ज्यादा गिरावट देखी गई है. मार्च और जून के बीच खुदरा और थोक दोनों बाजारों में दालों में सबसे ज्यादा उछाल उड़द में ही देखा गया था.

अन्य प्रमुख दालों जैसे अरहर, मूंग और चना में भी त्यौहारी सीजन के दौरान काफी गिरावट देखी गई. विशेषज्ञों के मुताबिक, सरकारी दखल के कारण दालों की कीमतों के गिरावट बनी रहने की उम्मीद है.

कमोडिटी मार्केट रिसर्च फर्म आईग्रेन इंडिया के एक शोधकर्ता राहुल चौहान ने कहा, ‘स्टॉक सीमा हटाई जा चुकी है लेकिन देशभर में दाल बाजारों में मंदी है क्योंकि व्यापारियों को डर है कि अगर कमोडिटी की कीमतों में तेजी आई तो सरकार स्टॉक लिमिट फिर से लागू कर देगी.’

चौहान ने कहा, ‘नई फसल भी मिलिंग और प्रोसेसिंग के बाद अगले 20 दिनों में बाजार में आना शुरू हो जाएगी. सभी स्टॉकिस्ट नई फसल आने से पहले अपना पुराना स्टॉक निकाल देंगे जिससे आने वाले दिनों में कीमतों में और गिरावट आएगी. यहां तक कि नेफेड को भी बाजार में कम कीमत की बोली के कारण चने की कई निविदाएं रद्द करनी पड़ी हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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